पंचायती राज, जेकर अर्थ होला पंचाइत के राज, एक किसिम के राजनीतिक सिस्टम हवे जे भारतीय उपमहादीप में पैदा भइल आ वर्तमान में ई भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, आ नेपाल में मिले ला। ई भारतीय उपमहादीप में सभसे पुराना लोकल सरकार के सिस्टम हवे जेकरा इतिहासी परमान कम से कम 250 ईसवी तक पुरान होखले के मिले ला।[1] परंपरागत रूप से गाँव सभ में बूढ़ बुजुर्ग लोग में से पंच चुनल जाँय जिनहन लोग के गाँव के लोग आम सहमती से लोकल लेवल पर फैसला लेवे वाला माने। हालाँकि, अइसन सिस्टम के कई अलग-अलग रूप मौजूद रहलें। अइसन पंचाइत सभ के परंपरागत काम लोकल लेवल पर बिबाद में फैसला कइल रहे। पंचाइत के मुख्य ब्यक्ति के सरपंच, मुखिया चाहे परधान कहल जाय।

मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ में एगो खुला मैदान में पंचाइत हो रहल बा।

भारत में पंचायती राज के नवका सिस्टम आ ग्राम पंचायत सभ के एह परंपरागत सिस्टम से अलगा बूझल जाये के चाहीं जे संबिधान के अनुसार गठित लोकल सरकार के सिस्टम हवे। उत्तरी भारत में चलनसार खाप पंचायत के सिस्टम, जे गैर-संबैधानिक सिस्टम हवे, के भी एह परंपरागत पंचायती राज से अलगा बूझल जाये के चाहीं।[2]

महात्मा गाँधी पंचायत राज के वकालत करें आ एकरा के भारतीय राजनीतिक बेवस्था के आधार मानें। उनका बिचार में ई एक किसिम के बिकेंद्रित तरीका के सरकार होखे वाली रहल जेह में हर गाँव के अपना मामिला सभ खातिर खुदे जिम्मेदार होखे के रहल।[3][4] एह तरीका के बिचार खातिर ग्राम स्वराज के नाँव दिहल गइल रहे। एकरा बिपरीत भारत में बहुते केंद्रित सरकार के गठन भइल।[5] हालाँकि, बाद में जाके लोकल लेवल पर ग्राम पंचायत सभ के कई सारा काम आ अधिकार दिहल गइल आ भारत के केंद्रित शासन के कुछ हद तक बिकेंद्रित कइल गइल।[6] गाँधी के सोच अनुसार होखे वाली बेवस्था में आ वर्तमान में लागू ग्राम पंचायत सिस्टम जे 1992 में संबिधान संसोधन से आइल, कई तरह के अंतर बा।[7]

ई सिस्टम के चलन ट्रिनिडाड अउरी टोबैगो में भी बाटे।[8][9][10]

  1. P.B. Udgaonkar, Political Institutions & Administration, Motilal Banarasidass Publishers, 1986, ISBN 978-81-20-82087-6, ... these popular courts are first mentioned by Yajnavalkya and then by Narada, Brishaspati, Somadeva and Sukra. These writers covered a period of about a thousand years, c. 100 to 1950 A.D., and they could not have mechanically referred to the popular courts if they were not actually functioning ...
  2. Mullick, Rohit; Raaj, Neelam (9 September 2007). "Panchayats turn into kangaroo courts". The Times of India. {{cite news}}: Unknown parameter |lastauthoramp= ignored (help)
  3. Sisodia, R. S. (1971). "Gandhiji's Vision of Panchayati Raj". Panchayat Aur Insan. 3 (2): 9–10.
  4. Sharma, Manohar Lal (1987). Gandhi and Democratic Decentralization in India. New Delhi: Deep and Deep Publications. OCLC 17678104. Hathi Trust copy, search only
  5. Hardgrave, Robert L.; Kochanek, Stanley A. (2008). India: Government and Politics in a Developing Nation (seventh ed.). Boston, Massachusetts: Thomson/Wadsworth. p. 157. ISBN 978-0-495-00749-4. {{cite book}}: Unknown parameter |lastauthoramp= ignored (help)
  6. Pellissery, S. (2007). "Do Multi-level Governance Meet Local Aspirations?". Asia Pacific Journal of Public Administration. 28 (1): 28–40.
  7. Singh, Vijandra (2003). "Chapter 5: Panchayate Raj and Gandhi". Panchayati Raj and Village Development: Volume 3, Perspectives on Panchayati Raj Administration. Studies in public administration. New Delhi: Sarup & Sons. pp. 84–90. ISBN 978-81-7625-392-5.
  8. "The Panchayat system as an early form of conflict resolution in Trinidad. - GCSE History - Marked by Teachers.com". www.markedbyteachers.com.
  9. "Carmona wants "Panchayat' system to resolve conflicts - Trinidad and Tobago Newsday Archives". 30 मई 2016.
  10. "Return of the panchayat - Trinidad and Tobago Newsday Archives". 12 मई 2005.