जयप्रकाश नारायण: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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लाइन 13:
जी हाँ हम बात करतानी जयप्रकाश नारायण के जे जयप्रकाश नारायण से कम आ जे.पी. के नाम से ज्यादा विख्यात रहले। उनका सेवा भावना, त्याग आ तपस्या से प्रभावित होके लोग उनका के लोकनायक भी कहत रहे। लोकनायक के मतलब होला, जन-जन के नेता। उ सचमुच के जनता के नायक रहले। उनका जनता के पूर्ण विश्वास आ भरपुर प्रेम हासिल रहे।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जनम १ अक्टूबर १९०२ के बलिया जिला के सिताबदियारा गाँव में भईल रहे। उनका के छव साल के उमर में गाँव के प्राथमिक स्कूल में पढ़े खातिर भेजल गईल। जयप्रकाश नारायण स्वभाविक तेज तरार आ बुद्धिमान रहले। नवे साल के उमर में उ सातवाँ कलास में पहुँच गईले आ सन्‌ १९१९ में हायर सेकेंडर इम्तिहान प्रथम श्रेणी से उतीर्ण कईले।
१९ साल के उमर तक पहुँचते-पहुँचते उनका पर तत्कालीन राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रभाव पड़े लागल आ राष्ट्रीयता के संगे-संगे उ समाजवादी विचार-धारा के सम्पर्क में अईले आ जल्दिये भारतीय समाजवादी आन्दोलन के प्रमुख नेता लोग में उनकर गिनती होखे लागल। गांधीजी के आह्‌वान पर जे.पी. अध्ययन छोड़ के राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रीय भाग लिहलें , लेकिन जल्दिये इनका विदेश में शिक्षा प्राप्त करे के धुन सवार हो गईल आ अमेरिका में उच्च शिक्षा खातिर चल गईले।
इनकर बियाह १८ साल के उमर में प्रसिद्ध समाज-सेवी श्री ब्रजकिशोर प्रसाद के बेटी सुश्री प्रभावती जी से भईल। प्रभावती जी उनका जीवन के ही ना बल्की उनका समाजिक गतिविधि के भी एगो अंग बन गईली।
देश-सेवा खातिर कौ-कौ बार उनका जेल-यातना भी भोगे के परल। जे.पी. गांधी जी के विचार से बहुत प्रभावित रहलें आ जीवनभर सत्ता से दूर रहके उनका आदर्श पर चलते गइलें। नेहरू जी उनका के बहुत मानत रहलें। उ जयप्रकाश जी के अपना मंत्रिमण्डल में शामिल होखे खातिर नेवता देले रहले। लेकिन सत्ता के राजनीति में रूचि ना होखे के कारण ओकरा के उ ठुकरा दिहले।
बाद में उनका सर्वोदय विचारधारा से सम्बन्ध हो गईल। भूदान आन्दोलन में उनकर सक्रिय सहयोग महत्वपूर्ण रहे। सन्‌ १९७५ में उ देश के नवयुवकन के नेतृत्व एक बार फेर से सम्हरलें।
५ जून १९७५ ई में दिल्ली के विशाल रामलीला मैदान में उ समग्र क्रान्ति के घोषणा कइलें आ ओही रात आपात स्थिति लगाके जयप्रकाश जी के गिरफ्तार कर लेहल गईल।
जेल में ही जयप्रकाश जी के गुर्दा खराब हो गईल। उनका के दिल्ली के आर्युविज्ञान संस्थान में, फेर बाद में बम्बई के जसलोक अस्पताल में भरती कईल गईल।
डाक्टर लोग के सूझ-बूझ आ मेहनत से उनका प्राण के रक्षा कईल गईल, लेकिन तब से निरन्तर जे.पी. जी रोगशय्या पर पड़ल रहस। आखीर ई स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, चिंतक आ क्रांतिकारी व्यक्तित्व ९ अक्टूबर १९७९ के चिरनिद्रा में सुत गइलें।