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=== हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ ===
* [[हिन्दी पत्रकारिता]] का आरम्भ भारत के उन क्षेत्रों से हुआ जो हिन्दी-भाषी नहीं थे/हैं ([[कोलकाता]], [[लाहौर]] आदि।
 
* हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आन्दोलन अहिन्दी भाषियों ( [[महात्मा गांधी]], [[स्वामी दयानंद सरस्वती|दयानन्द सरस्वती]] आदि) ने आरम्भ किया।
 
* [[हिन्दी पत्रकारिता]] की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।
 
* हिन्दी के विकास में राजाश्रय का कोई स्थान नहीं है; इसके विपरीत, हिन्दी का सबसे तेज विकास उस दौर में हुआ जब हिन्दी अंग्रेजी-शासन का मुखर विरोध कर रही थी। जब-जब हिन्दी पर दबाव पड़ा, वह अधिक शक्तिशाली होकर उभरी है।
 
* जब [[बंगाल]], [[उड़ीसा]], [[गुजरात]] तथा [[महाराष्ट्र]] में उनकी अपनी भाषाएँ राजकाज तथा न्यायालयों की भाषा बन चुकी थी उस समय भी संयुक्त प्रान्त (वर्तमान [[उत्तर प्रदेश]]) की भाषा हिन्दुस्तानी थी (और [[उर्दू]] को ही हिन्दुस्तानी माना जाता था जो [[फारसी]] लिपि में लिखी जाती थी)।
 
* १९वीं शताब्दी तक [[उत्तर प्रदेश]] की राजभाषा के रूप में हिन्दी का कोई स्थान नहीं था। परन्तु २० वीं सदी के मध्यकाल तक वह भारत की राष्ट्रभाषा बन गई।
 
* हिन्दी के विकास में पहले साधु-संत एवं धार्मिक नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उसके बाद हिन्दी पत्रकारिता एवं स्वतंत्रता संग्राम से बहुत मदद मिली; फिर बंबइया फिल्मों से सहायता मिली और अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी) के कारण हिन्दी समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
 
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* '''[[तत्सम]] शब्द'''- ये वो शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध दन्त , मुख ।
 
* '''[[तद्भव]] शब्द'''- ये वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या [[प्राकृत]] में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे-- आग, दूध, दाँत , मुँह ।
 
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; ध्यातव्य
* इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त वयंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। [[मराठी]] और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है ।
 
* संस्कृत में '''ष''' का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर '''श''' जैसी आवाज़ करना । शुक्ल [[यजुर्वेद]] की माध्यंदिनि शाखा में ''कुछ वाक़्यात'' में '''ष''' का उच्चारण '''ख''' की तरह करना मान्य था । आधुनिक हिन्दी में '''ष''' का उच्चारण पूरी तरह '''श''' की तरह होता है ।
 
* हिन्दी में '''ण''' का उच्चारण कभी-कभी '''ड़ँ''' की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है । परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर '''न''' की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है।