महात्मा गाँधी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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लाइन 253:
--></ref> यह ध्यान देने योग्य हैं कि गाँधी के समय में ''काफिर'' का [[काफिर (दक्षिण अफ्रीका में ऐतिहासिक इस्तेमाल)|वर्तमान में]] ([[:en:Kaffir (Historical usage in southern Africa)|a different connotation]])इस्तेमाल हो रहे अर्थ से एक [[काफिर (जातीय कलंक)|अलग अर्थ था]] ([[:en:Kaffir (ethnic slur)|its present-day usage]]). गाँधी के इन कथनों ने उन्हें कुछ लोगों द्वारा नसलवादी होने के आरोप को लगाने का मौका दिया है.<ref name="guardian_racist">रोरी कैरोल, [http://www.guardian.co.uk/world/2003/oct/17/southafrica.india "गाँधी को नस्लवादी कहा गया जैसे ही जोहान्सबर्ग में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान दिया गया"], ''द गार्डीयन'', [[१७ अक्तूबर|अक्तूबर १७]] ([[:en:October 17|October 17]]), [[2003|२००३]].</ref>
 
इतिहास के दो प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, जो दक्षिण अफ्रीका के इतिहास पर महारत रखते हैं, ने अपने मूलग्रन्थ ''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका ,१८९३ - १९१४ में इस विवाद की जांच की है.''(नई दिल्ली:मनोहर,२००५).<ref>[https://www.vedamsbooks.com/no49854.htm एक राजनैतिक सुधारक का सृजन: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३-१९१४]</ref> अध्याय एक के केन्द्र में,"गाँधी, औपनिवेशिक स्थिति में जन्मे अफ्रीकी और भारतीय" जो कि "श्वेत आधिपत्य" में अफ्रीकी और भारतीय समुदायों के संबंधों पर है तथा उन नीतियों पर जिनकी वजह से विभाजन हुआ(और वे तर्क देते हैं कि इन समुदायों के बीच संघर्ष लाजिमी सा है) इस सम्बन्धसंबंध के बारे में वे कहते हैं, "युवा गाँधी १८९० में उन विभाजीय विचारों से प्रभावित थे जो कि उस समय प्रबल थीं."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका,१८९३-१९१४.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद,२००५.</ref> साथ ही साथ वे यह भी कहते हैं, "गाँधी के जेल के अनुभव ने उन्हें उन लोगों कि स्थिति के प्रति अधीक संवेदनशील बना दिया था...आगे गाँधी दृढ़ हो गए थे; वे अफ्रीकियों के प्रति अपने अभिव्यक्ति में पूर्वाग्रह को लेकर बहुत कम निर्णायक हो गए, और वृहत स्तर पर समान कारणों के बिन्दुओं को देखने लगे थे. जोहान्सबर्ग जेल में उनके नकारात्मक दृष्टिकोण में ढीठ अफ्रीकी कैदी थे न कि आम अफ्रीकी."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३-१९१४.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५:पृष्ठ ४५.</ref>
 
[[दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति|दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति]] ([[:en:President of South Africa|President of South Africa]]) [[नेल्सन मंडेला]] गाँधी के अनुयायी हैं,<ref name="Mandela-2000" /> २००३ में गाँधी के आलोचकों द्वारा प्रतिमा के अनावरण को रोकने की कोशिश के बावजूद उन्होंने उसे [[जोहान्सबर्ग]] ([[:en:Johannesburg|Johannesburg]]) में अनावृत किया.<ref name="guardian_racist"/> भाना और वाहेद ने अनावरण के इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं पर ''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १९१३-१९१४'' में टिप्पणी किया है. अनुभाग " दक्षिण अफ्रीका के लिए गाँधी के विरासत" में वे लिखते हैं " गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका के सक्रिय कार्यकर्ताओं के आने वाली पीढियों को श्वेत अधिपत्य को ख़त्म करने के लिये प्रेरित किया. यह विरासत उन्हें [[नेल्सन मंडेला]] से जोड़ती हैं..माने यह कि जिस कम को गाँधी ने शुरू किया था उसे मंडेला ने खत्म किया."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३ - १९१४.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, पृ १४९.</ref> वे जारी रखते हैं उन विवादों का हवाला देते हुए जो गाँधी कि प्रतिमा के अनावरण के दौरान उठे थे.<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३-१९१४.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५: पीपी. १५०-१.</ref> गाँधी के प्रति इन दो दृष्टिकोणों के प्रतिक्रिया स्वरुप, भाना और वाहेद तर्क देते हैं : वे लोग को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के पश्चात अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए गाँधी को सही ठहराना चाहते हैं वे उनके बारे में कई तथ्यों को नजरंदाज करते हुए कारन में कुछ ज्यादा मदद नही करते; और जो उन्हें केवल एक नस्लवादी कहते हैं वे भी ग़लत बयानी के उतने ही दोषी हैं/विकृति के उतने ही दोषी हैं."<ref>''एक राजनैतिक सुधारक का निर्माण: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३-१९१४.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५: पृ. १५१.</ref>