महात्मा गाँधी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

Content deleted Content added
छो clean up, replaced: हिन्दी → हिंदी (6) using AWB
missing file
लाइन 85:
 
== स्वराज और नमक सत्याग्रह ( नमक मार्च ) ==
<!--Translate this template and uncomment
 
{{main|Salt Satyagraha}}
 
-->
[[चित्र:Salt March.jpg|thumb|दांडी में गाँधी , [[5 अप्रैल|५ अप्रैल]], [[1930|१९३०]] , के अंत में [[नमक सत्याग्रह|नमक मार्च]] ([[:en:Salt Satyagraha|Salt March]]).]]
गांधी जी सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे और १९२० की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता , शराब , अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते भी रहे। उन्होंने पहले १९२८ में लौटे .एक साल पहले अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया जिसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। इसका परिणाम भारतीय राजनैतिक दलों द्वारा बहिष्कार निकला। दिसंबर १९२८ में गांधी जी ने कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के एक अधिवेशन में एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा गया था अथवा ऐसा न करने के बदले अपने उद्देश्य के रूप में संपूर्ण देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहें। गांधी जी ने न केवल युवा वर्ग [[नेताजी सुभाषचन्द्र बोस|सुभाष चंद्र बोस]] तथा [[जवाहरलाल नेहरू]] जैसे पुरूषों द्वारा तत्काल आजादी की मांग के विचारों को फलीभूत किया बल्कि अपनी स्वयं की मांग को दो साल <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.१७२ .</ref> की बजाए एक साल के लिए रोक दिया। अंग्रेजों ने कोई जवाब नहीं दिया।.नहीं [[31 दिसंबर|३१ दिसंबर]][[1929|१९२९]] , भारत का झंडा फहराया गया था लाहौर में है .[[26 जनवरी|२६ जनवरी]] [[1930|१९३०]] का दिन लाहौर में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने मनाया। यह दिन लगभग प्रत्येक भारतीय संगठनों द्वारा भी मनाया गया। इसके बाद गांधी जी ने मार्च १९३० में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया जिसे १२ [[12 मार्च|मार्च]] से [[6 अप्रैल|६ अप्रेल]] तक नमक आंदोलन के याद में ४०० किलोमीटर (२४८ मील) तक का सफर अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके। समुद्र की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने ८०,००० से अधिक लोगों को जेल भेजा।
 
[[चित्र:Gandhi Downing Street.jpg|thumb|left|१० डाउनिंग स्ट्रीट , १९३१]]
[[ई.एफएलवुड, हेलीफेक्स का १वां अर्ल|लार्ड एडवर्ड इरविन]] ([[:en:E. F. L. Wood, 1st Earl of Halifax|Lord Edward Irwin]])द्वारा प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श करने का निर्णय लिया। यह [[गांधी-इरविन समझौता|इरविन गांधी की संधि]] ([[:en:Gandhi–Irwin Pact|Gandhi–Irwin Pact]]) मार्च १९३१ में हस्ताक्षर किए थे .सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यह सम्मेलन गांधी जी और राष्ट्रीयवादी लोगों के लिए घोर निराशाजनक रहा, इसका कारण सत्ता का हस्तांतरण करने की बजाय भारतीय कीमतों एवं भारतीय अल्पसंख्‍यकों पर केंद्रित होना था। इसके अलावा , लार्ड इरविन के उत्तराधिकारी[[फ्रीमेन फ्रीमेन - थॉमस, विलिंग्डन का प्रथम मार्की|लार्ड विलिंगटन]] ([[:en:Freeman Freeman-Thomas, 1st Marquess of Willingdon|Lord Willingdon]]), ने राष्‍ट्रवादियों के आंदोलन को नियंत्रित एवं कुचलने का एक नया अभियान आरंभ करदिया। गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने उनके अनुयाईयों को उनसे पूर्णतया दूर रखते हुए गांधी जी द्वारा प्रभावित होने से रोकने की कोशिश की। लेकिन , यह युक्ति सफल नहीं थी .१९३२ में , दलित नेता [[बीआरअम्बेडकर|बी के चुनाव प्रचार के माध्यम सेआर अम्बेडकर]] ([[:en:B. R. Ambedkar|B. R. Ambedkar]]), सरकार ने अछूतों को एक नए संविधान के अंतर्गत अलग निर्वाचन मंजूर कर दिया। इसके विरोध में गांधी जी ने सितंबर १९३२ में छ: दिन का अनशन ले लिया जिसने सरकार को सफलतापूर्वक दलित क्रिकेटर से राजनैतिक नेता बने पलवंकर बालू द्वारा की गई मध्‍यस्ता वाली एक समान व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की शुरूआत थी। गांधी जी ने इन अछूतों को हरिजन का नाम दिया जिन्हें वे भगवान की संतान मानते थे। [[८ मई]] ([[:en:8 May|8 May]])[[1933|१९३३]] को गांधी जी ने हरिजन आंदोलन <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पीपी .२३० -३२ .</ref> में मदद करने के लिए आत्म शुद्धिकरण का २१ दिन तक चलने वाला उपवास किया। यह नया अभियान [[दलित|दलितों]] को पसंद नहीं आया तथापि वे एक प्रमुख नेता बने रहे।[[बीआरअम्बेडकर|बीआर अम्बेडकर]] ([[:en:B. R. Ambedkar|B. R. Ambedkar]])ने गांधी जी द्वारा ''हरिजन ''शब्द का उपयोग करने की निंदा की कि दलित सामाजिक रूप से अपरिपक्व हैं और सुविधासंपन्न जाति वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है। अम्बेडकर और उसके सहयोगी दलों को भी महसूस हुआ कि गांधी जी दलितों के राजनीतिक अधिकारों को कम आंक रहे हैं। हालांकि गांधी जी एक वैश्य जाति में पैदा हुए फिर भी उन्होनें इस बात पर जोर दिया कि वह अम्बेडकर जैसे दलित कार्यकर्ता के होते हुए भी वह दलितों के लिए आवाज उठा सकता है।