महात्मा गाँधी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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| name = मोहनदास करमचंद गाँधी
| image = MKGandhi.jpg
| caption = १९३१1931 में मोहनदास करमचंद गाँधी
| birth_date = 2 अक्तूबर [[१८६९1869]]
| birth_place = [[पोरबंदर]], [[काठियावाड़]], [[भारत]]
| death_date = ३०30 जनवरी [[१९४८1948]] (७८78 बरिस की उमिर में)
| death_place = [[नई दिल्ली]], [[भारत]]
| death_cause = गोली मार के [[हत्या]]
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'''मोहनदास करमचंद गाँधी''' (2 अक्तूबर, [[१८६९1869]] - ३०30 जनवरी, [[१९४८1948]]) भारत क आ [[आजादी क लड़ाई|आज़ादी की लड़ाई]] क एगो प्रमुख राजनैतिक आ आध्यात्मिक नेता रहलन। ऊ ''सत्याग्रह'' आ व्यापक सविनय अवज्ञा की सहारे अत्याचार की खिलाफत क शुरुआत करे वाला नेता रहलें। सत्य आ [[अहिंसा]] की आधार पर लड़ाई लड़िके भारत के [[आजादी क लड़ाई|आजादी]] दियावे खातिर उनके पूरा दुनिया में जानल जाला।
 
आम जनता उनके '''महात्मा गांधी''' की नाँव से जानले। [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]: [[महात्मा]] अथवा महान आत्मा अगो आदर-सम्मान प्रगट करे वाला शब्द ह जेवना क प्रयोग [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर|रवीन्द्रनाथ टेगौर]] कइलें। एकरी आलावा '''गान्ही महात्मा''', '''गान्ही बाबा''' आ '''बापू''' ढेर प्रचलित शब्द बाटे। [[2 अक्टूबर]] के उनकी जन्म दिन के [[गांधी जयंती]] की नाँव से मनावल जाला आ दुनियाभर में एहिदिन [[अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस|अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस]] मनावल जाला।
 
उनकर [[गाँधी टोपी]] आ [[चरखा]] उनकी बिचारधारा क प्रतीक बन चुकल बा। आज पुरा दुनियाँ में आपसी लड़ाई आ बैर मेटावे खातिर गांधीवादी बिचार क जरूरत बा।
 
== प्रारंभिक जीवन ==
[[चित्र:Mohandas K Gandhi, age 7.jpg|right|thumb|एक युवा गांधी [[लगभग|ई]] (१८८६1886)]]
मोहनदास करमचंद गांधी गुजराती(''एल में गांधी का अर्थ है " पंसारी " आर गाला, पापुलर कम्बाइन्ड डिक्शनरी, अंग्रेजी-अंग्रेजी-गुजराती एवं गुजराती-गुजराती-अंगेजी, नवनीत)'' अथवा हिंदी में परफ्यूमर ''भार्गव की मानक व्याख्‍या वाली हिंदी-अंग्रेजी ''डिक्शनरी, का जन्म [[पश्चिमी भारत]] के वर्तमान [[गुजरात]], में [[पोरबंदर]] नामक स्थान पर [[2 अक्तूबर]] [[1869|१८६९1869]] .एक तटीय शहर में हुआ। उनके पिता करमचंद गांधी [[सनातन धर्म|हिंदु]] [[मोध]] समुदाय से संबंध रखते थे और [[ब्रिटिश राज|अंग्रेजों के अधीन वाले भारत के]] [[काठियावाड़ एजेंसी|काठियावाड़ एजेन्सी]] में एक छोटी सी [[देशी राज्य|रियासत]] [[पोरबंदर|पोरबंदर प्रांत]] के [[दीवान ( शीर्षक )|दीवान]] ''अर्थात प्रधान मंत्री थे। परनामी [[वैश्य|वैष्णव]] हिंदू समुदाय की उनकी माता पुतलीबाई करमचंद की चौथी पत्नी थी, उनकी पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गई थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और उस क्षेत्र की [[जैन धर्म|जैन]] पंरपराओं के कारण युवा मोहनदास पर वे प्रभाव प्रारम्भ मे ही पड़ गए,जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले थे। इन प्रभावों में दुर्बलों में जोश की भावना, [[शाकाहार|शाकाहारी जीवन]], आत्मशुद्धि के लिए [[उपवास]] तथा विभिन्न जातियों के लोगों के बीच सहिष्णुता शामिल थीं।
 
मई १८८३1883 में जब वे १३13 साल के थे तब उनका विवाह १४14 साल की [[कस्तूरबा गांधी|कस्तूरबा माखनजी]] से कर दिया गया जिनका पहला नाम छोटा करके ''कस्तूरबा'' था और उसे लोग प्यार से ''बा'' कहते थे। यह विवाह एक [[माता पिता द्वारा तय किया गया विवाह|व्यवस्थित]] [[बाल विवाह]] था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित लेकिन , उस क्षेत्र में वहां यही रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने मातापिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था।१८८५था।1885 में , जब गांधी जी १५15 वर्ष के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रहीं और इसी साल के प्रारंभ में गांधी जी के पिता करमचंद गाधी भी चल बसे।मोहनदास और कस्तूरबा के चार संतान हुई जो सभी पुत्र थे- [[हरीलाल गांधी|हरीलाल]] १८८८1888 में जन्में, [[मणिलाल गांधी|मणिलाल]] १८९२1892 में जन्में, [[रामदास गांधी|रामदास]] , १८९७1897 में जन्में, और [[देवदास गांधी|देवदास]] १९००1900 में जन्में,पोरबंदर में उनके मिडिल स्कूल और राजकोट में उनके हाई स्कूल दोनों में ही शैक्षणिक स्तर पर गांधी जी एक औसत छात्र रहे। उन्होंने अपनी [[मैट्रिक|मेट्रिक की परीक्षा]] [[भावनगर]] [[गुजरात]] के समलदास कॉलेज कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की और जब तक वे वहां रहे अप्रसन्न ही रहे क्योंकि उनका परिवार उन्हें [[बैरिस्टर|बेरिस्टर]] बनाना चाहता था।<br />
[[चित्र:Gandhi and Kasturbhai 1902.jpg|left|thumb|गांधी और उनकी पत्नी [[कस्तूरबा गांधी|कस्तूरबा]] ( १९०२1902 )]]
अपने १९वें19वें जन्मदिन से एक महीने से भी कम [[4 सितंबर|4 सिंतबर]] 1888|१८८८1888 ]]को गांधी जी [[यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन|यूनिवर्सिटी कालेज ऑफ लंदन]] में कानून की पढाई करने और [[बैरिस्टर|बेरिस्टर]] बनने के लिए [[इंग्लैंड|इंग्लेंड]], [[लंदन]]गए। भारत छोड़ते समय जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष हिंदुओं को मांस, शराब तथा संकीर्ण विचारधारा को त्यागने के लिए अपनी अपनी माता जी को दिए गए एक वचन ने उनके शाही राजधानी [[लंदन , ब्रिटेन|लंदन]] में बिताए गए समय को काफी प्रभावित किया। हालांकि गांधी जी ने ''अंग्रेजी'' रीति रिवाजों का अनुभव भी किया जैसे उदाहरण के तौर पर नृत्य कक्षाओं में जाना फिर भी वह अपनी मकान मालकिन द्वारा मांस एवं पत्ता गोभी को हजम.नहीं कर सके।उन्होंने कुछ शाकाहारी भोजनालयों की ओर इशारा किया। अपनी माता की इच्छाओं के बारे में जो कुछ उन्होंने पढा था उसे सीधे अपनाने की बजाए उन्होंने बौद्धिकता से [[शाकाहार|शाकाहारी]] भोजन का अपना भोजन स्वीकार किया। उन्होंने [[शाकाहारी सोसायटी|शाकाहारी समाज]] की सदस्यता ग्रहण की और इसकी कार्यकारी समिति के लिए उसका चयन भी हो गया जहां इन्होंने एक स्थानीय अध्याय की नींव रखी। बाद में उन्होने संस्थाएं गठित करने में महत्वपूर्ण अनुभव का परिचय देते हुए इसे श्रेय दिया। वे जिन शाकाहारी लोगों से मिले उनमें से कुछ [[थियोसोफिकल सोसायटी]] के सदस्य थे जिसकी स्थापना १८७५1875 में विश्व बंधुत्व ,को प्रबल करने के लिए की गई जिसे [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] एवं [[सनातन धर्म|हिंदु]] साहित्य के अध्ययन के लिए समर्पित किया गया था। उन्होनें गोधी जी को ''[[श्रीमद्भगवद्गीता|भगवदगीता]] ''पढ़ने के लिए प्रेरित किया। [[हिन्दू धर्म|हिंदू धर्म]], [[ईसाई धर्म]], [[बौद्ध धर्म]], [[इस्लाम]] और अन्य धर्मों .के बारे में पढ़ने से पहले गांधी जी ने धर्म में विशेष रूचि नहीं दिखाई । द्वारा [[इंग्लैंड और वेल्स]] [[बार एसोसिएशन|बार]] ([में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आए किंतु [[मुम्बई|मुंबई]] में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। बाद में एक हाई स्कूल शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी के लिए अस्वीकार कर दिए जाने पर उन्होंने याचिकों के लिए मुकदमे लिखने के लिए राजकोट को ही अपना मुकाम बना लिया किंतु एक अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण उसे यह कारोबार भी छोड़ना पड़ा ।अपनी आत्मकथा में , उन्होंने इस घटना का वर्णन उन्होंने अपने बड़े भाई की ओर से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है। यही वह कारण था जिस वजह से उन्होंने (१८९३1893 ) में एक भारतीय फर्म से [[क्वाजुलू नेटाल प्रांत|नेटाल]] [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिणी अफ्रीका]] जो तब अंग्रेजी साम्राज्य का भाग होता था में एक वर्ष का करार स्वीकार लिया था।
 
== दक्षिण अफ्रीका (१८९३1893-१९१४1914) में नागरिक अधिकारों के आन्दोलन ==
[[चित्र:Gandhi South-Africa.jpg|right|thumb|गांधी [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]] में (१८९५1895 )]]
दक्षिण अफ्रीका में गान्धी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। आरम्भ में उन्हें प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के लिए ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। इतना ही नहीं पायदान पर शेष यात्रा करते हुए एक यूरोपियन यात्री के अन्दर आने पर चालक की मार भी झेलनी पड़ी। उन्होंने अपनी इस यात्रा में अन्य भी कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका में कई होटलों को उनके लिए वर्जित कर दिया गया। इसी तरह ही बहुत सी घटनाओं में से एक यह भी थी जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसे उन्होंने नहीं माना। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं और विद्यमान सामाजिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं तथा सामाजिक सक्रियता की व्याख्या करने में मददगार सिद्ध हुईं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये।
 
== १९०६1906 के ज़ुलु युद्ध में भूमिका ==
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१९०६1906 में , [[ज़ुलु]] ([[:en:Zulu|Zulu]]) दक्षिण अफ्रीका में नए चुनाव कर के लागू करने के बाद दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला गया।बदले में अंग्रेजों ने जूलू के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। गांधी जी ने भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। उनका तर्क था अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए। तथापि, अंग्रेजों ने अपनी सेना में भारतीयों को पद देने से इंकार कर दिया था। इसके बावजूद उन्होने गांधी जी के इस प्रस्ताव को मान लिया कि भारतीय घायल अंग्रेज सैनिकों को उपचार के लिए स्टेचर पर लाने के लिए स्वैच्छा पूर्वक कार्य कर सकते हैं। इस कोर की बागडोर गांधी ने थामी।[[जुलाई २१21|२१21 जुलाई]] ([[:en:July 21|July 21]]), [[1906|१९०६1906]] को गांधी जी ने ''[[भारतीय जनमत|इंडियन ओपिनिय]] ([[:en:Indian Opinion|Indian Opinion]])'' में लिखा कि ''२३23 भारतीय <ref>गांधी नामक दस्तावेज से अवतरित महात्मा गांधी की संग्रहित कृतियां वॉल्यूम 5 दस्तावेज # दैवत्य के मुखैटे के पीछे पेज १०६106</ref> निवासियों के विरूद्ध चलाए गए आप्रेशन के संबंध में प्रयोग द्वारा नेटाल सरकार के कहने पर एक कोर का गठन किया गया है।''दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगों से ''इंडियन ओपिनियन'' में अपने कॉलमों के माध्‍यम से इस युद्ध में शामिल होने के लिए आग्रह किया और कहा, ''यदि सरकार केवल यही महसूस करती हे कि आरक्षित बल बेकार हो रहे हैं तब वे इसका उपयोग करेंगे और असली लड़ाई के लिए भारतीयों का प्रशिक्षण देकर इसका अवसर देंगे।''<ref name=GandhismDotNet>http://www.gandhism.net/sergeantmajorgandhi.phpसार्जेंट मेजर गांधी</ref>
 
गांधी की राय में , १९०६1906 का मसौदा अध्यादेश भारतीयों की स्थिति में किसी निवासी के नीचे वाले स्तर के समान लाने जैसा था। इसलिए उन्होंने [[सत्याग्रह]] ([[:en:Satyagraha|Satyagraha]]), की तर्ज पर "[[काफिर ( जातीय कलंक )|काफिर]] ([[:en:Kaffir (ethnic slur)|Kaffir]])s " .का उदाहरण देते हुए भारतीयों से अध्यादेश का विरोध करने का आग्रह किया। उनके शब्दों में , " यहाँ तक कि आधी जातियां और काफिर जो हमसे कम आधुनिक हैं ने भी सरकार का विरोध किया है। पास का नियम उन पर भी लागू होता है किंतु वे पास <ref>महात्मा गांधी की संग्रहित रचनाएं वॉल्यूम 5 पेज ४१०410</ref> नहीं दिखाते हैं।
 
== भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए संघर्ष ( १९१६1916 -१९४५1945 ) ==
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१९१५1915 में , गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत में रहने के लिए लौट आएं।उन्होंने [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अधिवेशनों पर अपने विचार व्य‍क्त किए, लेकिन वे भारत के मुख्य मुद्दों, राजनीति तथा उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता [[गोपाल कृष्ण गोखले]] ([[:en:Gopal Krishna Gokhale|Gopal Krishna Gokhale]]), जो एक सम्मानित नेता थे पर ही आधारित थे। .
 
=== चंपारण और खेड़ा ===
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[[चित्र:Gandhi Kheda 1918.jpg|right|thumb|१९१८1918 में खेड़ा और चंपारन सत्याग्रह के समय १९१८1918 में गांधी]]
गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि १९१८1918 में [[चम्पारन]] ([[:en:Champaran|Champaran]]) और ''खेड़ा सत्याग्रह'', आंदोलन में मिली हालांकि अपने निर्वाह के लिए जरूरी खाद्य फसलों की बजाए [[इंडिगो संयंत्र|नील]] ([[:en:Indigo plant|indigo]]) नकद पैसा देने वाली खाद्य फसलों की खेती वाले आंदोलन भी महत्वपूर्ण रहे। जमींदारों (अधिकांश अंग्रेज) की ताकत से दमन हुए भारतीयों को नाममात्र भरपाई भत्ता दिया गया जिससे वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। गांवों को बुरी तरह गंदा और [[स्वच्छता|अस्वास्थ्यकर]] ([[:en:Hygiene|unhygienic]]); और शराब , [[दलित|अस्पृश्यता]] और [[पर्दा प्रथा|पर्दा]] से बांध दिया गया। अब एक विनाशकारी अकाल के कारण शाही कोष की भरपाई के लिए अंग्रेजों ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। यह स्थिति निराशजनक थी। [[खेड़ा]] ([[:en:Kheda|Kheda]]), [[गुजरात]] में भी यही समस्या थी। गांधी जी ने वहां एक [[आश्रम]] ([[:en:ashram|ashram]]) बनाया जहाँ उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया। उन्होंने गांवों का एक विस्तृत अध्ययन और सर्वेक्षण किया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। ग्रामीणों में विश्‍वास पैदा करते हुए उन्होंने अपना कार्य गांवों की सफाई करने से आरंभ किया जिसके अंतर्गत स्कूल और अस्पताल बनाए गए और उपरोक्त वर्णित बहुत सी सामाजिक बुराईयों को समाप्त करने के लिए ग्रामीण नेतृत्व प्रेरित किया।
 
लेकिन इसके प्रमुख प्रभाव उस समय देखने को मिले जब उन्हें अशांति फैलाने के लिए पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें प्रांत छोड़ने के लिए आदेश दिया गया। हजारों की तादाद में लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए ओर जेल, पुलिस स्टेशन एवं अदालतों के बाहर रैलियां निकालकर गांधी जी को बिना शर्त रिहा करने की मांग की। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को का नेतृत्व किया जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के मार्गदर्शन में उस क्षेत्र के गरीब किसानों को अधिक क्षतिपूर्ति मंजूर करने तथा खेती पर नियंत्रण , राजस्व में बढोतरी को रद्द करना तथा इसे संग्रहित करने वाले एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस संघर्ष के दौरान ही, गांधी जी को जनता ने ''बापू'' पिता और ''महात्मा'' (महान आत्मा) के नाम से संबोधित किया। खेड़ा में [[सरदार वल्लभ भाई पटेल|सरदार पटेल]] ने अंग्रेजों के साथ विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया जिसमें अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया गया था। इसके परिणामस्वरूप , गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई।
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गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ [[ब्रिटिश राज|शस्त्र]] के रूप में उपयोग किया। [[पंजाब]] में अंग्रेजी फोजों द्वारा भारतीयों पर [[जलियांवाला बाग नरसंहार|जलियावांला नरसंहार]] जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी। गांधीजी ने [[ब्रिटिश राज]] तथा भारतीयों द्वारा ‍प्रतिकारात्मक रवैया दोनों की की। उन्होंने ब्रिटिश नागरिकों तथा दंगों के शिकार लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की तथा पार्टी के आरंभिक विरोध के बाद दंगों की भंर्त्सना की। गांधी जी के भावनात्मक भाषण के बाद अपने सिद्धांत की वकालत की कि सभी हिंसा और बुराई को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.८२82 .</ref> किंतु ऐसा इस नरसंहार और उसके बाद हुई हिंसा से गांधी जी ने अपना मन संपूर्ण सरकार आर भारतीय सरकार के कब्जे वाली संस्थाओं पर संपूर्ण नियंत्रण लाने पर केंद्रित था जो जल्‍दी ही ''[[स्वराज]] ''अथवा संपूर्ण व्यक्तिगत, आध्‍यात्मिक एवं राजनैतिक आजादी में बदलने वाला था।
 
[[चित्र:Gandhi home.jpg|thumb|left|[[साबरमती आश्रम]] ([[:en:Sabarmati Ashram|Sabarmati Ashram]]), गुजरात में गांधी का घर]]
 
दिसंबर १९२१1921 में गांधी जो [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]].का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में कांग्रेस को ''स्वराज''.के नाम वाले एक नए उद्देश्‍य के साथ संगठित किया गया। पार्दी में सदस्यता सांकेतिक शुल्क का भुगताने पर सभी के लिए खुली थी। पार्टी को किसी एक कुलीन संगठन की न बनाकर इसे राष्ट्रीय जनता की पार्टी बनाने के लिए इसके अंदर अनुशासन में सुधार लाने के लिए एक पदसोपान समिति गठित की गई। गांधी जी ने अपने अहिंसात्मक मंच को [[स्वदेशी आन्दोलन|स्वदेशी नीति]] — में शामिल करने के लिए विस्तार किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इससे जुड़ने वाली उनकी वकालत का कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई ''[[खादी]]'' पहनें। गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.८९89 .</ref> को सहयोग देने के लिएपुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन ''खादी ''के लिए सूत कातने में समय बिताने के लिए कहा। यह अनुशासन और समर्पण लाने की ऐसी नीति थी जिससे अनिच्छा और महत्वाकाक्षा को दूर किया जा सके और इनके स्थान पर उस समय महिलाओं को शामिल किया जाए जब ऐसे बहुत से विचार आने लगे कि इस प्रकार की गतिविधियां महिलाओं के लिए सम्मानजनक नहीं हैं। इसके अलावा गांधी जी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं तथा अदालतों का बहिष्कार और सरकारी नौकरियों को छोड़ने का तथा सरकार से प्राप्त तमगों और [[ब्रिटिश सम्मान प्रणाली|सम्मान]] ([[:en:British honours system|honours]])को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।
 
''असहयोग को दूर-दूर से अपील और सफलता मिली जिससे समाज के सभी वर्गों की जनता में जोश और भागीदारी बढ गई। फिर जैसे ही यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुंचा वैसे फरवरी १९२२1922 में इसका अंत [[चोरी चोरा|चोरी - चोरा]] ([[:en:Chauri Chaura|Chauri Chaura]]), [[उत्तर प्रदेश|उत्तरप्रदेश]] में भयानक द्वेष के रूप में अंत हुआ। आंदोलन द्वारा हिंसा का रूख अपनाने के डर को ध्‍यान में रखते हुए और इस पर विचार करते हुए कि इससे उसके सभी कार्यों पर पानी फिर जाएगा, गांधी जी ने व्यापक असहयोग <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.१०५105 .</ref> के इस आंदोलन को वापस ले लिया। गांधी पर गिरफ्तार किया गया [[10 मार्च|१०10 मार्च]], [[1922|१९२२1922]], को राजद्रोह के लिए गांधी जी पर मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाकर जैल भेद दिया गया। [[18 मार्च|१८18 मार्च]], [[1922|१९२२1922]] से लेकर उन्होंने केवल 2 साल ही जैल में बिताए थे कि उन्हें फरवरी १९२४1924 में [[अपेंदिसायतिस|आंतों]] ([[:en:appendicitis|appendicitis]])के ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया।
 
गांधी जी के एकता वाले व्यक्तित्व के बिना इंडियन नेशनल कांग्रेस उसके जेल में दो साल रहने के दौरान ही दो दलों में बंटने लगी जिसके एक दल का नेतृत्व सदन में पार्टी की भागीदारी के पक्ष वाले [[चितरंजन दास|चित्त रंजन दास]] ([[:en:Chitta Ranjan Das|Chitta Ranjan Das]]) तथा [[मोतीलाल नेहरू]] ने किया तो दूसरे दल का नेतृत्व इसके विपरीत चलने वाले [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी|चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य]] और [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] ने किया। इसके अलावा , हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अहिंसा आंदोलन की चरम सीमा पर पहुंचकर सहयोग टूट रहा था। गांधी जी ने इस खाई को बहुत से साधनों से भरने का प्रयास किया जिसमें उन्होंने १९२४1924 की बसंत में सीमित सफलता दिलाने वाले तीन सप्ताह का उपवास करना भी शामिल था।<ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.१३१131 .</ref>
 
== स्वराज और नमक सत्याग्रह ( नमक मार्च ) ==
[[चित्र:Salt March.jpg|thumb|दांडी में गाँधी , [[5 अप्रैल|5 अप्रैल]], [[1930|१९३०1930]] , के अंत में [[नमक सत्याग्रह|नमक मार्च]] ([[:en:Salt Satyagraha|Salt March]]).]]
गांधी जी सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे और १९२०1920 की अधिकांश अवधि तक वे स्वराज पार्टी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के बीच खाई को भरने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता , शराब , अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते भी रहे। उन्होंने पहले १९२८1928 में लौटे .एक साल पहले अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक नया संवेधानिक सुधार आयोग बनाया जिसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं था। इसका परिणाम भारतीय राजनैतिक दलों द्वारा बहिष्कार निकला। दिसंबर १९२८1928 में गांधी जी ने कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के एक अधिवेशन में एक प्रस्ताव रखा जिसमें भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा गया था अथवा ऐसा न करने के बदले अपने उद्देश्य के रूप में संपूर्ण देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहें। गांधी जी ने न केवल युवा वर्ग [[नेताजी सुभाषचन्द्र बोस|सुभाष चंद्र बोस]] तथा [[जवाहरलाल नेहरू]] जैसे पुरूषों द्वारा तत्काल आजादी की मांग के विचारों को फलीभूत किया बल्कि अपनी स्वयं की मांग को दो साल <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.१७२172 .</ref> की बजाए एक साल के लिए रोक दिया। अंग्रेजों ने कोई जवाब नहीं दिया।.नहीं [[31 दिसंबर|३१31 दिसंबर]][[1929|१९२९1929]] , भारत का झंडा फहराया गया था लाहौर में है .[[26 जनवरी|२६26 जनवरी]] [[1930|१९३०1930]] का दिन लाहौर में भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस ने मनाया। यह दिन लगभग प्रत्येक भारतीय संगठनों द्वारा भी मनाया गया। इसके बाद गांधी जी ने मार्च १९३०1930 में नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नया सत्याग्रह चलाया जिसे १२12 [[12 मार्च|मार्च]] से [[6 अप्रैल|6 अप्रेल]] तक नमक आंदोलन के याद में ४००400 किलोमीटर (२४८248 मील) तक का सफर अहमदाबाद से दांडी, गुजरात तक चलाया गया ताकि स्वयं नमक उत्पन्न किया जा सके। समुद्र की ओर इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया। भारत में अंग्रेजों की पकड़ को विचलित करने वाला यह एक सर्वाधिक सफल आंदोलन था जिसमें अंग्रेजों ने ८०80,०००000 से अधिक लोगों को जेल भेजा।
 
[[ई.एफएलवुड, हेलीफेक्स का १वां1वां अर्ल|लार्ड एडवर्ड इरविन]] ([[:en:E. F. L. Wood, 1st Earl of Halifax|Lord Edward Irwin]])द्वारा प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार विमर्श करने का निर्णय लिया। यह [[गांधी-इरविन समझौता|इरविन गांधी की संधि]] ([[:en:Gandhi–Irwin Pact|Gandhi–Irwin Pact]]) मार्च १९३१1931 में हस्ताक्षर किए थे .सविनय अवज्ञा आंदोलन को बंद करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। यह सम्मेलन गांधी जी और राष्ट्रीयवादी लोगों के लिए घोर निराशाजनक रहा, इसका कारण सत्ता का हस्तांतरण करने की बजाय भारतीय कीमतों एवं भारतीय अल्पसंख्‍यकों पर केंद्रित होना था। इसके अलावा , लार्ड इरविन के उत्तराधिकारी[[फ्रीमेन फ्रीमेन - थॉमस, विलिंग्डन का प्रथम मार्की|लार्ड विलिंगटन]] ([[:en:Freeman Freeman-Thomas, 1st Marquess of Willingdon|Lord Willingdon]]), ने राष्‍ट्रवादियों के आंदोलन को नियंत्रित एवं कुचलने का एक नया अभियान आरंभ करदिया। गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने उनके अनुयाईयों को उनसे पूर्णतया दूर रखते हुए गांधी जी द्वारा प्रभावित होने से रोकने की कोशिश की। लेकिन , यह युक्ति सफल नहीं थी .१९३२1932 में , दलित नेता [[बीआरअम्बेडकर|बी के चुनाव प्रचार के माध्यम सेआर अम्बेडकर]] ([[:en:B. R. Ambedkar|B. R. Ambedkar]]), सरकार ने अछूतों को एक नए संविधान के अंतर्गत अलग निर्वाचन मंजूर कर दिया। इसके विरोध में गांधी जी ने सितंबर १९३२1932 में छ: दिन का अनशन ले लिया जिसने सरकार को सफलतापूर्वक दलित क्रिकेटर से राजनैतिक नेता बने पलवंकर बालू द्वारा की गई मध्‍यस्ता वाली एक समान व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए इस अभियान की शुरूआत थी। गांधी जी ने इन अछूतों को हरिजन का नाम दिया जिन्हें वे भगवान की संतान मानते थे। [[8 मई]] ([[:en:8 May|8 May]])[[1933|१९३३1933]] को गांधी जी ने हरिजन आंदोलन <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पीपी .२३०230 -३२32 .</ref> में मदद करने के लिए आत्म शुद्धिकरण का २१21 दिन तक चलने वाला उपवास किया। यह नया अभियान [[दलित|दलितों]] को पसंद नहीं आया तथापि वे एक प्रमुख नेता बने रहे।[[बीआरअम्बेडकर|बीआर अम्बेडकर]] ([[:en:B. R. Ambedkar|B. R. Ambedkar]])ने गांधी जी द्वारा ''हरिजन ''शब्द का उपयोग करने की निंदा की कि दलित सामाजिक रूप से अपरिपक्व हैं और सुविधासंपन्न जाति वाले भारतीयों ने पितृसत्तात्मक भूमिका निभाई है। अम्बेडकर और उसके सहयोगी दलों को भी महसूस हुआ कि गांधी जी दलितों के राजनीतिक अधिकारों को कम आंक रहे हैं। हालांकि गांधी जी एक वैश्य जाति में पैदा हुए फिर भी उन्होनें इस बात पर जोर दिया कि वह अम्बेडकर जैसे दलित कार्यकर्ता के होते हुए भी वह दलितों के लिए आवाज उठा सकता है।
 
१९३४1934 की गर्मियों में , उनकी जान लेने के लिए उन पर तीन असफल प्रयास किए गए थे ।.
 
जब कांग्रेस पार्टी के चुनाव लड़ने के लिए चुना और संघीय योजना के अंतर्गत सत्ता स्वीकार की तब गांधी जी ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देने का निर्णय ले लिया। वह पार्टी के इस कदम से असहमत नहीं थे किंतु महसूस करते थे कि यदि वे इस्तीफा देते हैं तब भारतीयों के साथ उसकी लोकप्रियता पार्टी की सदस्यता को मजबूत करने में आसानी प्रदान करेगी जो अब तक कम्यूनिसटों, समाजवादियों, व्यापार संघों, छात्रों, धार्मिक नेताओं से लेकर व्यापार संघों और विभिन्न आवाजों के बीच विद्यमान थी। इससे इन सभी को अपनी अपनी बातों के सुन जाने का अवसर प्राप्त होगा। गांधी जी राज के लिए किसी पार्टी का नेतृत्व करते हुए प्रचार द्वारा कोई ऐसा लक्ष्‍य सिद्ध नहीं करना चाहते थे जिसे राज <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.२४६246 .</ref> के साथ अस्थायी तौर पर राजनैतिक व्यवस्‍था के रूप में स्वीकार कर लिया जाए।
 
गांधी जी नेहरू प्रेजीडेन्सी और कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के साथ ही १९३६1936 में भारत लौट आए।हालांकि गांधी की पूर्ण इच्छा थी कि वे आजादी प्राप्त करने पर अपना संपूर्ण ध्‍यान केंद्रित करें न कि भारत के भविष्य के बारे में अटकलों पर। उसने कांग्रेस को समाजवाद को अपने उद्देश्‍य के रूप में अपनाने से नहीं रोका।१९३८रोका।1938 में राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए सुभाष बोस के साथ गांधी जी के मतभेद थे। बोस के साथ मतभेदों में गांधी के मुख्य बिंदु बोस की लोकतंत्र में प्रतिबद्धता की कमी तथा अहिंसा में विश्वास की कमी थी। बोस ने गांधी जी की आलोचना के बावजूद भी दूसरी बार जीत हासिल की किंतु कांग्रेस को उस समय छोड़ दिया जब सभी भारतीय नेताओं ने गांधी <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पीपी .२७७277 - ८१81 .</ref> जी द्वारा लागू किए गए सभी सिद्धातों का परित्याग कर दिया गया।
 
== द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो ==
[[द्वितीय विश्वयुद्ध|द्वितीय विश्व युद्ध]] १९३९1939 में जब छिड़ने [[नाजी जर्मनी]] आक्रमण [[पोलैंड]].आरंभ में गांधी जी ने अंग्रेजों के प्रयासों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया किंतु दूसरे कांग्रेस के नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना इसमें एकतरफा शामिल किए जाने का विरोध किया। कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर <ref>आर०गांधीआर0गांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पीपी२८३पीपी283-८६86</ref> पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। लंबी चर्चा के बाद , गांधी ने घोषणा की कि जब स्वयं भारत को आजादी से इंकार किया गया हो तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए बाहर से लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध के लिए पार्टी नहीं बनेगी। जैसे जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी ने आजादी के लिए अपनी मांग को अंग्रेजों को ''[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]'' नामक विधेयक देकर तीव्र कर दिया। यह गांधी तथा कांग्रेस पार्टी का सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था जो भारतीय सीमा <ref>आर०आर0 गांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.३०९309</ref> से अंग्रेजों को खदेड़ने पर लक्षित था।
 
गांधी जी के दूसरे नंबर पर बैठे जवाहरलाल नेहरू की पार्टी के कुछ सदस्यों तथा कुछ अन्य राजनैतिक भारतीय दलों ने आलोचना की जो अंग्रेजों के पक्ष तथा विपक्ष दोनों में ही विश्‍वास रखते थे। कुछ का मानना था कि अपने जीवन काल में अथवा मौत के संघर्ष में अंग्रेजों का विरोध करना एक नश्वर कार्य है जबकि कुछ मानते थे कि गांधी जी पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहे हैं।'' भारत छोड़ो ''इस संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई।<ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.३१८318 .</ref> पुलिस की गोलियों से हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार कर लिए गए। गांधी और उनके समर्थकों ने स्पष्ट कर दिया कि वह युद्ध के प्रयासों का समर्थन तब तक नहीं देंगे तब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बार भी यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा यदि हिंसा के व्यक्तिगत कृत्यों को मूर्त रूप दिया जाता है। उन्होंने कहा कि उनके चारों ओर अराजकता का आदेश असली अराजकता से भी बुरा है। उन्होंने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को [[अहिंसा]] के साथ ''करो या मरो '' (अंग्रेजी में डू ऑर डाय) के द्वारा अन्तिम स्वतन्त्रता के लिए अनुशासन बनाए रखने को कहा।
 
गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजों द्वारा [[मुम्बई|मुबंई]] में [[9 अगस्त]] [[१९४२1942]] को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी को [[पुणे]] के [[आगा खान पैलेस|आंगा खां महल]] में दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। यही वह समय था जब गांधी जी को उनके निजी जीवन में दो गहरे आघात लगे। उनका ५०50 साल पुराना सचिव [[महादेव देसाई]] 6 दिन बाद ही दिल का दौरा पड़ने से मर गए और गांधी जी के १८18 महीने जेल में रहने के बाद [[22 फरवरी|२२22 फरवरी]] [[1944|१९४४1944]] को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत हो गया। इसके छ: सप्ताह बाद गांधी जी को भी मलेरिया का भयंकर शिकार होना पड़ा । उनके खराब स्वास्थ्‍य और जरूरी उपचार के कारण [[6 मई]] [[१९४४1944]] को युद्ध की समाप्ति से पूर्व ही उन्हें रिहा कर दिया गया। राज उन्हें जेल में दम तोड़ते हुए नहीं देखना चाहते थे जिससे देश का क्रोध बढ़ जाए।हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में आशिंक सफलता ही मिली लेकिन आंदोलन के निष्‍ठुर दमन ने १९४३1943 के अंत तक भारत को संगठित कर दिया। युद्ध के अंत में , ब्रिटिश ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि संत्ता का हस्तांतरण कर उसे भारतीयों के हाथ में सोंप दिया जाएगा। इस समय गांधी जी ने आंदोलन को बंद कर दिया जिससे कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग १००100,०००000 राजनैतिक बंदियों को रिहा कर दिया गया।
 
== स्वतंत्रता और भारत का विभाजन ==
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-->
<!-- With Mahatma Gandhi (right) in Bombay (now [[Mumbai]]) in 1944.]] what's this? -->
गांधी जी ने १९४६1946 में कांग्रेस को [[ब्रिटिश कैबिनेट मिशन|ब्रिटिश केबीनेट मिशन]] ([[:en:British Cabinet Mission|British Cabinet Mission]])के प्रस्ताव को ठुकराने का परामर्श दिया क्योकि उसे मुस्लिम बाहुलता वाले प्रांतों के लिए प्रस्तावित ''समूहीकरण ''के प्रति उनका गहन संदेह होना था इसलिए गांधी जी ने प्रकरण को एक विभाजन के पूर्वाभ्यास के रूप में देखा। हालांकि कुछ समय से गांधी जी के साथ कांग्रेस द्वारा मतभेदों वाली घटना में से यह भी एक घटना बनी (हालांकि उसके नेत्त्व के कारण नहीं) चूंकि नेहरू और पटेल जानते थे कि यदि कांग्रेस इस योजना का अनुमोदन नहीं करती है तब सरकार का नियंत्रण [[मुस्लिम लीग]] के पास चला जाएगा। १९४८1948 के बीच लगभग ५०००5000 से भी अधिक लोगों को हिंसा के दौरान मौत के घाट उतार दिया गया। गांधी जी किसी भी ऐसी योजना के खिलाफ थे जो भारत को दो अलग अलग देशों में विभाजित कर दे।भारत में रहने वाले बहुत से हिंदुओं और सिक्खों एवं मुस्लिमों का भारी बहुमत देश के बंटवारे <!--Translate this template and uncomment
{{Fact|date=July 2008}}
-->के पक्ष में था। इसके अतिरिक्त [[मुहम्मद अली जिन्ना]], मुस्लिम लीग के नेता ने, [[पंजाब (पाकिस्तान)|पश्चिम पंजाब]], [[सिंध]], [[पाकिस्तान का उत्तर पश्चिम सीमांत प्रान्त|उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत]] और [[पूर्वी बंगाल|ईस्ट बंगाल]] ([[:en:East Bengal|East Bengal]])<!--Translate this template and uncomment
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-->.में व्यापक सहयोग का परिचय दिया। व्यापक स्तर पर फैलने वाले हिंदु मुस्लिम लड़ाई को रोकने के लिए ही कांग्रेस नेताओं ने बंटवारे की इस योजना को अपनी मंजूरी दे दी थी। कांगेस नेता जानते थे कि गांधी जी बंटवारे का विरोध करेंगे और उसकी सहमति के बिना कांग्रेस के लिए आगे बझना बसंभव था चुकि पाटर्ठी में गांधी जी का सहयोग और संपूर्ण भारत में उनकी स्थिति मजबूत थी। गांधी जी के करीबी सहयोगियों ने बंटवारे को एक सर्वोत्तम उपाय के रूप में स्वीकार किया और [[सरदार वल्लभ भाई पटेल|सरदार पटेल]] ने गांधी जी को समझाने का प्रयास किया कि नागरिक अशांति वाले युद्ध को रोकने का यही एक उपाय है। मज़बूर गांधी ने अपनी अनुमति दे दी।
 
उन्होंने उत्तर भारत के साथ-साथ [[बंगाल]] में भी मुस्लिम और हिंदु समुदाय के नेताओं के साथ गर्म रवैये को शांत करने के लिए गहन विचार विमर्श किया।१९४७किया।1947 [[भारत और पाकिस्तान के १९४७1947 के युद्ध|के]] ([[:en:Indo-Pakistani War of 1947|Indo-Pakistani War of 1947]])भारत-पाकिस्तान युद्ध के बावजूद उन्हें उस समय परेशान किया गया जब सरकार ने पाकिस्तान को विभाजन परिषद द्वारा बनाए गए समझौते के अनुसार [[भारतीय रुपया|५५55]] ([[:en:Indian Rupee|Rs.]]) करोड़ [[करोड़|रू0]] ([[:en:crore|crore]])न देने का निर्णय लियाथा। [[सरदार वल्लभ भाई पटेल|सरदार पटेल]] जैसे नेताओं को डर था कि पाकिस्तान इस धन का उपयोग भारत के खिलाफ़ जंग छेड़ने में कर सकता है। जब यह मांग उठने लगी कि सभी मुस्लिमों को पाकिस्तान भेजा जाए और मुस्लिमों और हिंदु नेताओं ने इस पर असंतोष व्य‍क्त किया और एक दूसरे <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.४६२462 .</ref> के साथ समझौता करने से मना करने से गांधी जी को गहरा सदमा पहुंचा। उन्होंने [[दिल्ली]] में अपना पहला आमरण अनशन आरंभ किया जिसमें साम्प्रदायिक हिंसा को सभी के लिए तत्काल समाप्त करने और पाकिस्तान को 55 करोड़ रू0 का भुगतान करने के लिए कहा गया था।गांधी जी को डर था कि पाकिस्तान में अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और बढ़ जाएगा तथा सीमा पर हिंसा फैल जाएगी। उन्हें आगे भी डर था कि हिंदु और मुस्लिम अपनी शत्रुता को फिर से नया कर देंगे और उससे नागरिक युद्ध हो जाने की आशंका बन सकती है। जीवन भर गांधी जा का साथ देने वाले सहयोगियों के साथ भावुक बहस के बाद गांधी जी ने बात का मानने से इंकार कर दिया और सरकार को अपनी नीति पर अडिग रहना पड़ा तथा पाकिस्तान को भुगतान कर दिया। हिंदु मुस्लिम और सिक्ख समुदाय के नेताओं ने उन्हें विश्‍वास दिलाया कि वे हिंसा को भुला कर शांति लाएंगे। इन समुदायों में [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ]] और [[हिंदू महासभा]] ([[:en:Hindu Mahasabha|Hindu Mahasabha]]) शामिल थे। इस प्रकार गांधी जी ने संतरे का जूस <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पीपी .४६४464 - ६६66 .</ref> पीकर अपना अनशन तोड़ दिया।
 
== हत्या ==
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[[चित्र:Gandhis ashes.jpg|thumb|left|[[राज घाट और अन्य स्मारक|राज घाट]] ([[:en:Raj Ghat and other memorials|Raj Ghat]]):आगा खान पैलेस में गांधी की अस्थियां ( पुणे , भारत ) .]]
मैनचेस्टर गार्जियन , [[18 फरवरी|१८18 फरवरी]], [[1948|१९४८1948]], की गलियों से ले जाते हुआ दिखाया गया था।
 
[[30 जनवरी|३०30 जनवरी]], [[1948|१९४८1948]], गांधी की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई जब वे [[नई दिल्ली]] ([[:en:New Delhi|New Delhi]]).के ''बिड़ला भवन'' ([[बिरला हाउस]] ([[:en:Birla House|Birla House]])) के मैदान में रात चहलकदमी कर रहे थे। गांधी का हत्यारा [[नाथूराम गोडसे|नाथूराम गौड़से]] ([[:en:Nathuram Godse|Nathuram Godse]])हिन्दू राष्ट्रवादी थे जिनके कट्टरपंथी [[हिंदू महासभा|हिंदु महासभा]] ([[:en:Hindu Mahasabha|Hindu Mahasabha]])के साथ संबंध थे जिसने गांधी जी को पाकिस्तान <ref>आरगांधी , ''पटेल : एक जीवन'', पी.४७२472 .</ref> को भुगतान करने के मुद्दे को लेकर भारत को कमजोर बनाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था। गोड़से और उसके उनके सह षड्यंत्रकारी [[नारायण आप्टे]] ([[:en:Narayan Apte|Narayan Apte]]) को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा [[15 नवंबर|१५15 नवंबर]][[1949|१९४९1949]].को इन्हें फांसी दे दी गई। '') [[राज घाट और अन्य स्मारक|राजधाट]] ([[:en:Raj Ghat and other memorials|Rāj Ghāt]]), [[नई दिल्ली]] ([[:en:New Delhi|New Delhi]]), में गांधी जी के स्मारक ( या ''समाधि पर "[[देवनागरी]]:में '' हे राम " लिखा हुआ है।राम'' या , ''वह [[राम|( ( IAST | राम) )]]'') , जिसका अनुवाद " अरे परमेश्वर " .किया जा सकता है। ऐसा व्यापक तोर पर माना जाता है कि जब गांधी जी को गोली मारी गई तब उनके मुख से निकलने वाले ये अंतिम शब्द थे। हालांकि इस कथन पर विवाद उठ खड़े हुए हैं।<ref>विनय लाल .[http://www.sscnet.ucla.edu/southasia/History/Gandhi/HeRam_gandhi.html ' हे राम ' : गांधी के अंतिम शब्दों की राजनीति] ह्यूमेन 8 , संख्या. 1 ( जनवरी २००१2001 ): पीपी३४पीपी34 - ३८38 .</ref>[[जवाहरलाल नेहरू]] ने रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को संबोधित किया :
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गांधी जी की राख को एक अस्थि-रख दिया गया और उनकी सेवाओं की याद दिलाने के लिए संपूर्ण भारत में ले जाया गया। इनमें से अधिकांश को [[इलाहाबाद में संगम|इलाहाबाद के संगम]] ([[:en:Sangam at Allahabad|Sangam at Allahabad]])पर [[12 फरवरी|१२12 फरवरी]] [[1948|१९४८1948]] को जल में विसर्जित कर दिया गया किंतु कुछ को अलग <ref name="Guardian-2008-ashes">[http://www.guardian.co.uk/world/2008/jan/16/india.international "गांधी जी की राख को समुद्र में आराम करने के लिए रखा गया"] [[The Guardian]] ([[:en:The Guardian|The Guardian]]), [[16 जनवरी|१६16 जनवरी]] [[२००८2008]]</ref> पवित्र रूप में रख दिया गया। १९९७1997 में , [[तुषार गांधी|तुषार गाँधी]] ([[:en:Tushar Gandhi|Tushar Gandhi]]) ने बैंक में नपाए गए एक अस्थि-कलश की कुछ सामग्री को अदालत के माध्यम से ,[[इलाहाबाद में संगम]] ([[:en:Sangam at Allahabad|Sangam at Allahabad]]).<ref name="Guardian-2008-ashes" /><ref>[http://www.highbeam.com/doc/1G1-67892813.html गांधी जी की राख को [[30 जनवरी|३० जनवरी]] [[1997|१९९७1997]] को ][[सिनसिनअति पोस्ट|सिनसिनाती चौकी]] ([[:en:The Cincinnati Post|The Cincinnati Post]])पर बिखेर दिया गया था। '' कारण किसी को पता नहीँ था राख के एक भाग को [[नई दिल्ली]] ([[:en:New Delhi|New Delhi]])के दक्षिणपूर्व में एक [[सुरक्षित जमा बॉक्स|सुरक्षित डिपाजिट बॉक्स]] ([[:en:safe deposit box|safe deposit box]])में [[कटक]] , <!--Translate this template and uncomment
{{convert|1100|mi|km}}
-->के निकट समुद्र तट पर रख दिया गया था। [[तुषार गांधी|तुषार गाँधी]] ([[:en:Tushar Gandhi|Tushar Gandhi]]) ने १९५५1955 में अखबारों द्वारा समाचार प्रकाशित किए जाने पर कि गांधी जी की राख बैंक में रखी हुई है, को अपनी हिरासत में लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।</ref> नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया। [[30 जनवरी|३०30 जनवरी]][[२००८2008]] को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी द्वारा गांधी जी की राख वाले एक अन्य अस्थि-कलश को [[मुम्बई|मुंबई]] संग्रहालय <ref name="Guardian-2008-ashes" /> में भेजने के उपरांत उन्हें [[गिरगोम चोपट्टी|गिरगाम चौपाटी]] ([[:en:Girgaum Chowpatty|Girgaum Chowpatty]]) नामक स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया। एक अन्य अस्थि कलश [[आगा खां|आगा खान]] ([[:en:Aga Khan|Aga Khan]]) जो [[पुणे]]<ref name="Guardian-2008-ashes" /> में है, ( जहाँ उन्होंने १९४२1942 से कैद करने के लिए किया गया था १९४४1944 ) वहां समाप्त हो गया और दूसरा [[आत्मबोध फैलोशिप झील मंदिर]] ([[:en:Self-Realization Fellowship Lake Shrine|Self-Realization Fellowship Lake Shrine]]) में [[लॉस ऐन्जेलिस|लॉस एंजिल्स]].<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite news | last =Ferrell | first =David | title =A Little Serenity in a City of Madness | newspaper = Los Angeles Times | pages =B 2 | date = 2001-09-27}}
--></ref> रखा हुआ है। इस परिवार को पता है कि इस पवित्र राख का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरूपयोग किया जा सकता है लेकिन उन्हें यहां से हटाना नहीं चाहती हैं क्योंकि इससे मंदिरों .<ref name="Guardian-2008-ashes" /> को तोड़ने का खतरा पैदा हो सकता है।
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== लेखन ==
गाँधी जी एक सफल लेखक थे.कई दशकों तक वे अनेक पत्रों का संपादन कर चुके थे जिसमे ''[[हरिजन|गुजराती]] ([[:en:Harijan|Harijan]])'', [[गुजराती भाषा|हिंदी]] और [[हिंदी|अंग्रेजी]] में ''[[इंडियन ओपिनियन|हरिजन]] ([[:en:Indian Opinion|Indian Opinion]])'', ''इंडियन ओपिनियन [[युवा भारत|( जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे) और अंग्रेजी में]] ([[:en:Young India|Young India]])यंग इंडिया'', और जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने नवजीवन नामक मासिक पत्रिका निकाली. बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिंदी में भी हुआ.<ref>वि.एन द्वारा [http://www.lifepositive.com/Spirit/masters/mahatma-gandhi/journalist.asp अद्वितीय संचारक] नारायणन जीवन सकारात्मकता के साथ, अक्टूबर-दिसम्बर २००२2002</ref> इसके अलावा उन्होंने लगभग हर रोज व्यक्तियों और समाचार पत्रों को पत्र लिखा
 
गाँधी ने कुछ किताबें भी लिखी अपनी आत्मकथा के साथ, ''[[द स्टोरी ऑफ़ माय एक्स्प्रिमेंट विथ ट्रुथ|एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग]] ([[:en:The Story of My Experiments with Truth|An Autobiography or My Experiments with Truth]])'', ''दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह'', वहां के संघर्षो के बारें में, ''[[हिंद स्वराज या इंडियन होम रुल]] ([[:en:Hind Swaraj or Indian Home Rule|Hind Swaraj or Indian Home Rule]])'', राजनैतिक प्रचार पत्रिका, और [[जॉन रस्किन]] ([[:en:John Ruskin|John Ruskin]]) की ''[[अन्टू दिस लास्ट]] ([[:en:Unto This Last|Unto This Last]])'' की गुजराती में व्याख्या की है.<ref name="Unto this last"><!--Translate this template and uncomment
लाइन 152:
--></ref> अन्तिम निबंध को उनका अर्थशास्त्र से सम्बंधित कार्यक्रम कहा जा सकता है उन्होंने शाकाहार ,भोजन और स्वास्थ्य, धर्म, सामाजिक सुधार पर भी विस्तार से लिखा है.गाँधी आमतौर पर गुजराती में लिखतें थे परन्तु अपनी किताबों का हिदी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते थे.
 
गाँधी का पूरा कार्य ''महात्मा गाँधी के संचित लेख'' नाम से १९६०1960 में भारत सरकार द्वारा प्रकाशित किया गया है.यह लेखन लगभग ५००००50000 पन्नों में समाविष्ट है और तक़रीबन सौ खंडों में प्रकाशित है.सन २०००2000 में गाँधी के पुरा कार्यों का संशोधित संस्करण विवादों के घेरे में आ गया क्योंकि गाँधी के अनुयायियों ने सरकार पर राजनितिक उदेश्यों के लिए परिवर्तन शामिल करने का आरोप लगाया.<ref>[http://archive.is/20120524200743/http://www.gandhiserve.org/cwmg/cwmg_controversy.html महात्मा गाँधी के संचित लेख (सी डब्लू एम् जी ) विवाद] ( गाँधी सेवा)</ref>
 
=== गाँधी पर पुस्तकें ===
कई जीवनी लेखकों ने गाँधी के जीवन वर्णन का कार्य लिया है उनमें से दो कार्य अलग हैं;डीजी तेंदुलकर अपने ''महात्मा के साथ. मोहनदास करमचंद गाँधी'' का जीवन आठ खंडों में है और ''महात्मा गाँधी'' के साथ [[प्यारेलाल]] ([[:en:Pyarelal|Pyarelal]]) और [[सुशीला नायर]] ([[:en:Sushila Nayyar|Sushila Nayar]]) १०10 खंडों में है.कर्नल जी बी अमेरिकी सेना के सिंह ने कहा की अपने तथ्यात्मक शोध पुस्तक [[देवत्व के मुखौटे के पीछे गाँधी|गाँधी: बेहायिंड द मास्क ऑफ़ डिविनिटी]] ([[:en:Gandhi Behind the Mask of Divinity|Gandhi: Behind the Mask of Divinity]]) के मूल भाषण और लेखन के लिए उन्होंने अपने २०20 वर्ष<ref name="ReviewBaldevSingh"><!--Translate this template and uncomment
{{cite web| title=Gandhi Behind the Mask of Divinity |url=http://www.sikhspectrum.com/082004/gandhi_mask.htm | accessdate=2007-12-17}}
--></ref> लगा दिए
लाइन 173:
-->
 
महत्वपूर्ण नेता और राजनीतिक गतिविधियाँ गाँधी से प्रभावित थी अमेरिका के [[अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रीय अधिकार आन्दोलन|नागरिक अधिकार आन्दोलन]] ([[:en:African-American Civil Rights Movement (1955–1968)|civil rights movement]]) के नेताओं में [[मार्टिन लूथर किंग]] ([[:en:Martin Luther King|Martin Luther King]]) और [[जेम्स लाव्सन]] ([[:en:James Lawson|James Lawson]]) गाँधी के लेखन जो उन्हीं के सिद्धांत अहिंसा को विकसित करती है से काफी आकर्षित हुए थे.<ref>[http://sfgate.com/cgi-bin/article.cgi?file=/chronicle/archive/2003/01/20/ED163673.DTL कोम्मेमोरातिंग मार्टिन लुथेर किंग जूनियर. राजा पर गाँधी का प्रभाव]</ref> विरोधी-[[पृथग्वासन|रंगभेद]] कार्यकर्ता और [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]] के पूर्व राष्ट्रपति [[नेल्सन मंडेला]], गाँधी जी से प्रेरित थे.<ref name="Mandela-2000">[[नेल्सन मंडेला]], [http://www.time.com/time/time100/poc/magazine/the_sacred_warrior13a.html एक पवित्र योद्धा: दक्षिण अफ्रीका के मुक्तिदाता भारत के मुक्तिदाता] के मौलिक कार्यों को देखतें हैं. ''टाइम मैगजीन'', [[3 जनवरी|3 जनवरी]] , [[2000|२०००2000]].</ref> और दुसरे लोग [[खान अब्दुल गफ्फार खान|खान अब्दुल गफ्फेर खान]] ([[:en:Khan Abdul Ghaffar Khan|Khan Abdul Ghaffar Khan]]),<ref>[http://archive.is/20120524200747/findarticles.com/p/articles/mi_m1295/is_2_66/ai_83246175/print पाकिस्तानी शांतिवाद के समर्थक अब्दुल गफ्फार खान एक शांतिवादी तथा खुले विचार के थे]</ref>[[स्टीव बिको]] ([[:en:Steve Biko|Steve Biko]]), और [[औंग सां सू कई|औंग सू कई]] ([[:en:Aung San Suu Kyi|Aung San Suu Kyi]]) हैं.<ref>[http://www.tribuneindia.com/2004/20040222/spectrum/book1.htm एक वैकल्पिक गाँधी]</ref>
 
गाँधी का जीवन तथा उपदेश कई लोगों को प्रेरित करती है जो गाँधी को अपना गुरु मानते है या जो गाँधी के विचारों का प्रसार करने में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं. यूरोप के, [[रोमां रोलां|रोमेन रोल्लांड]] पहला व्यक्ति था जिसने १९२४1924 में अपने किताब ''महात्मा गाँधी'' में गाँधी जी पर चर्चा की थी और ब्राजील की [[बागी|अराजकतावादी]] ([[:en:anarchist|anarchist]]) और [[नारीवाद|नारीवादी]] [[मारिया लासर्दा दा मौर|मारिया लासर्दा दे मौरा]] ([[:en:Maria Lacerda de Moura|Maria Lacerda de Moura]]) ने अपने कार्य शांतिवाद में गाँधी के बारें में लिखा.१९३१1931 में उल्लेखनीय भौतिक विज्ञानी [[अल्बर्ट आइनस्टाइन|अलबर्ट आइंस्टाइन]], गाँधी के साथ पत्राचार करते थे और अपने बाद के पत्रों में उन्हें "आने वाले पीढियों का आदर्श" कहा.<ref>[http://www.gandhiserve.org/streams/einstein.html गाँधी पर आइन्स्टीन]</ref>[[लांजा देल वास्तो|लांजा देल वस्तो]] ([[:en:Lanza del Vasto|Lanza del Vasto]]) महात्मा गाँधी के साथ रहने के इरादे से सन १९३६1936 में भारत आया; और बाद में गाँधी दर्शन को फैलाने के लिए वह यूरोप वापस आया और १९४८1948 में उसने [[सम्मुदाय का संदूक|कम्युनिटी ऑफ़ द आर्क]] ([[:en:Community of the Ark|Community of the Ark]]) की स्थापना की.( गाँधी के आश्रम से प्रभावित होकर)[[मदेलेइने स्लेड|मदेलिने स्लेड]] ([[:en:Madeleine Slade|Madeleine Slade]]) (मीराबेन) ब्रिटिश नौसेनापति की बेटी थी जिसने अपना अधिक से अधिक व्यस्क जीवन गाँधी के भक्त के रूप में भारत में बिताया था.
 
इसके अतिरिक्त, ब्रिटिश संगीतकार [[जॉन लेनन]] ([[:en:John Lennon|John Lennon]]) ने गाँधी का हवाला दिया जब वे अहिंसा पर अपने विचारों को व्यक्त कर रहे थे.<ref>[http://www.rollingstone.com/news/story/8898300/lennon_lives_forever अमर लेनन] ''rollingstone.com'' से लिया गया है [[२०20 मई]] ([[:en:May 20|May 20]]), [[२००७2007]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref> २००७2007 में [[लायंस कान अंतर्राष्ट्रीय समारोह|केन्स लिओंस अन्तर राष्ट्रीय विज्ञापन महोत्सव]] ([[:en:Cannes Lions International Advertising Festival|Cannes Lions International Advertising Festival]]), अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति और पर्यावरणविद [[अल्बर्ट गोर|अल गोर]] ने उन पर गाँधी के प्रभाव को बताया.<ref>[http://www.exchange4media.com/Cannes/2007/fullstory2007.asp?section_id=13&news_id=26524&tag=21387&pict=2 गांधीगिरी और ग्रीन लिओन, अल गोरे ने केन्स का दिल जीत लिया] ''exchange4media.com'' से लिया गया है [[23 जून|२३23 जून]] [[२००७2007]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref>
 
== पैतृक सम्पति ==
[[चित्र:PMBGandhistatue.jpg|left|thumb|शत वर्षीय महात्मा गाँधी की मूर्ति व्यापारिक क्षेत्र के केंद्रीय स्थान [[पीटरमैरित्स्बुर्ग|पिएतेर्मारित्ज्बुर्ग]] ([[:en:Pietermaritzburg|Pietermaritzburg]]), [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]] में है.]]
[[2 अक्टूबर]] ([[:en:2 October|2 October]]) गाँधी का जन्मदिन है इसलिए [[गाँधी जयंती]] ([[:en:Gandhi Jayanti|Gandhi Jayanti]]) के अवसर पर भारत में [[भारत में राष्ट्रीय छुट्टियाँ|राष्ट्रीय अवकाश]] ([[:en:national holiday in India|national holiday in India]]) होता है [[15 जून|१५15 जून]] [[२००७2007]] को यह घोषणा की गई थी कि "[[सयुंक्त राष्ट्र महासभा|सयुंक्त राष्ट्र महा सभा]] ([[:en:United Nations General Assembly|United Nations General Assembly]])" एक प्रस्ताव की घोषणा की, कि [[2 अक्टूबर]] ([[:en:2 October|2 October]]) को "[[अन्तर राष्ट्रीय अहिंसा दिवस|अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस]] ([[:en:International Day of Non-Violence|International Day of Non-Violence]])" के रूप में मनाया जाएगा.<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite news | first=Nilova| last=Chaudhury| url=http://www.hindustantimes.com/storypage/storypage.aspx?id=54580f5e-15a0-4aaf-baa3-8f403b5688fa&&Headline=October+2+is+Int'l+Non-Violence+Day| title=October 2 is global non-violence day| work=hindustantimes.com|publisher=Hindustan Times| date=[[15 June]] [[2007]]| accessdate=2007-06-15}}
--></ref>
 
अक्सर पश्चिम में ''[[महात्मा]] ([[:en:Mahatma|Mahatma]])'' शब्द का अर्थ ग़लत रूप में ले लिया जाता है उनके अनुसार यह [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] से लिया गया है जिसमे ''महा'' का अर्थ ''महान'' और ''आत्म'' का अर्थ ''आत्मा'' होता है.ज्यादातर सूत्रों के अनुसार जैसे दत्ता और रोबिनसन के ''रबिन्द्रनाथ टगोर: संकलन'' में कहा गया है कि [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर|रबिन्द्रनाथ टगोर]] ने सबसे पहले गाँधी को ''महात्मा'' का खिताब दिया था.<ref>दत्ता, कृष्ण और एंड्र्यू रोबिनसन, ''रबिन्द्रनाथ टेगोर: एक संकलन'', p.2</ref> अन्य सूत्रों के अनुसार [[नौतम लाल भगवानजी मेहता.|नौतामलाल भगवानजी मेहता]] ([[:en:Nautamlal Bhagavanji Mehta|Nautamlal Bhagavanji Mehta]]) ने [[21 जनवरी|२१21 जनवरी]] [[1915|१९१५1915]] में उन्हें यह खिताब दिया था.<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite web|url=http://kamdartree.com/mahatma_kamdar.htm|title=Kamdartree: Mahatma and Kamdars}}
--></ref> हालाँकि गाँधी ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि उन्हें कभी नही लगा कि वे इस सम्मान के योग्य हैं.<ref>[http://kamdartree.com/Dr%20PJ%20Mehta.htm एम्.के.गाँधी: एक आत्मकथा].[[21 मार्च|२१21 मार्च]] [[2006|२००६2006]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref> ''मानपत्र'' के अनुसार, गाँधी को उनके न्याय और सत्य के सराहनीये बलिदान के लिए ''महात्मा'' नाम मिला है.<ref>[http://kamdartree.com/mahatma_kamdar.htm मोहनदास कैसे और कब प्रलेखन. गाँधी अपने नाम के अनुरूप ही "महात्मा"] बन गए [[21 मार्च|२१21 मार्च]] [[2006|२००६2006]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref>
 
''[[टाइम (पत्रिका)|१९३०1930 में टाइम]] ([[:en:Time (magazine)|Time]])'' पत्रिका ने महात्मा गाँधी को [[साल का पुरूष|वर्ष का पुरूष]] ([[:en:Person of the Year|Man of the Year]]) का नाम दियाI १९९९1999 में गाँधी [[अल्बर्ट आइनस्टाइन|अलबर्ट आइंस्टाइन]] जिन्हे [[सदी का पुरूष]] ([[:en:Person of the Century|Person of the Century]]) नाम दिया गया के मुकाबले द्वितीय स्थान जगह पर थे . टाइम पत्रिका ने [[तेनजिन ग्यात्सो.|दलाई लामा]] ([[:en:Tenzin Gyatso|The Dalai Lama]]) , [[लेच वालेसा]] ([[:en:Lech Wałęsa|Lech Wałęsa]]) , [[मार्टिन लूथर किंग|डॉ मार्टिन लूथर किंग, जूनियर]] ([[:en:Martin Luther King|Dr. Martin Luther King, Jr.]]) , [[सेसर शावेज़]] ([[:en:Cesar Chavez|Cesar Chavez]]), [[औंग सान सू कई]] ([[:en:Aung San Suu Kyi|Aung San Suu Kyi]]) , [[बेन्गिनो अकुइनो, जूनियर|बेनिग्नो अकुइनो जूनियर]] ([[:en:Benigno Aquino, Jr.|Benigno Aquino, Jr.]]), [[डेसमंड टूटू]] ([[:en:Desmond Tutu|Desmond Tutu]]) और [[नेल्सन मंडेला]] को ''गाँधी के पुत्र'' के रूप में कहा और उनके अहिंसा के आद्यात्मिक उतराधिकारी.<ref>[http://www.time.com/time/magazine/article/0, ९१७१,९९३०२६,००.एच. टी.एम. एल गाँधी के बच्चे].'' [[टाइम (पत्रिका )|टाइम (पत्रिका)]] ([[:en:Time (magazine)|Time (magazine)]])''.[[21 अप्रैल|२१21 अप्रैल]] [[२००७2007]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref> [[भारत सरकार]] प्रति वर्ष उल्लेखनीय सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं और नागरिकों को [[महात्मा गाँधी शान्ति पुरुस्कार|महात्मा गाँधी शांति पुरुस्कार]] ([[:en:Mahatma Gandhi Peace Prize|Mahatma Gandhi Peace Prize]]) से पुरुस्कृत करती है. [[नेल्सन मंडेला]], साऊथ अफ्रीका के नेता जो कि जातीय मतभेद और पार्थक्य के उन्मूलन में संघर्षरत रहे हैं, इस पुरूस्कार के लिए एक प्रवासी भारतीय के रूप में प्रबल दावेदार हैं.
 
१९९६1996 में, [[भारत सरकार]] ने महात्मा गाँधी की श्रृंखला के [[भारतीय रुपये|नोटों]] ([[:en:Indian Rupee|rupee]]) के मुद्रण को 1 ,5 ,१०10 ,२०20, ५०50 ,१००100 ,५००500 और १०००1000 के अंकन के रूप में आरम्भ किया. आज जितने भी नोट इस्तेमाल में हैं उनपर महात्मा गाँधी का चित्र है.१९६९1969 में यूनाइटेड किंगडम ने डाक टिकेट की एक श्रृंखला महात्मा गाँधी के शत्वर्शिक जयंती के उपलक्ष्य में जारी की.
[[चित्र:Gandhi site.jpg|thumb|नई दिल्ली में [[नई दिल्ली|गाँधी स्मृति]] ([[:en:New Delhi|New Delhi]]) पर सहादत स्तम्भ उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ पर उनकी हत्या हुयी.]]
यूनाइटेड किंगडम में ऐसे अनेक गाँधी जी की प्रतिमाएँ उन ख़ास स्थानों पर हैं जैसे [[ताविस्तोक स्क्वायर|लन्दन विश्वविद्यालय कालेज]] ([[:en:Tavistock Square|Tavistock Square]]) के पास [[लंदन|ताविस्तोक चौक]] ,[[लन्दन विश्वविद्यालय कालेज|लन्दन]] ([[:en:University College London|University College London]]) जहाँ पर उन्होंने कानून की शिक्षा प्राप्त की. [[30 जनवरी|यूनाइटेड किंगडम]] में [[संयुक्त राजशाही (ब्रिटेन)|जनवरी ३०30]] को “राष्ट्रीय गाँधी स्मृति दिवस” मनाया जाता है.[[संयुक्त राज्य अमेरिका|संयुक्त राज्य]] में , गाँधी की प्रतिमाएँ [[यूनियन स्क्वायर (न्यू यार्क शहर)|न्यू यार्क शहर]] ([[:en:Union Square (New York City)|Union Square]]) में [[न्यूयॉर्क शहर|यूनियन स्क्वायर]] के बहार और [[मार्टिन लूथर किंग जूनियर, राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थल|अटलांटा]] ([[:en:Martin Luther King, Jr. National Historic Site|Martin Luther King, Jr. National Historic Site]]) में [[अटलांटा|मार्टिन लूथर किंग जूनियर राष्ट्रीय ऐतिहासिक स्थल]] और [[वाशिंगटन डी.सी सी|वाशिंगटन डी सी में भारतीय दूतावास के समीप मेसासुशैट्स मार्ग में हैं.सी.]] ([[:en:Washington, D. C.|Washington, D. C.]]), भारतीय दूतावास के समीप [[पीटरमैरिट्सबर्ग|पितर्मरित्ज़्बर्ग]] ([[:en:Pietermaritzburg|Pietermaritzburg]]) , [[दक्षिण अफ़्रीका|दक्षिण अफ्रीका]], जहाँ पर १८९३1893 में गाँधी को प्रथम-श्रेणी से निकल दिया गया था वहां उनकी स्मृति में एक प्रतिमा स्थापित की गए है.गाँधी की प्रतिमाएँ [[मदाम टुसौड्स|मदाम टुसौड]] ([[:en:Madame Tussauds|Madame Tussaud's]]) के मोम संग्रहालय, [[लंदन|लन्दन में]], [[न्यूयॉर्क शहर|न्यू यार्क]] और विश्व के अनेक शहरों में स्थापित हैं.
 
गाँधी को कभी भी [[नोबेल शान्ति पुरुस्कार|शान्ति का नोबेल पुरस्कार]] ([[:en:Nobel Peace Prize|Nobel Peace Prize]]) प्राप्त नही हुआ, हालाँकि उनको १९३७1937 से १९४८1948 के बीच, पाँच बार मनोनीत किया गया जिसमे [[अमरीकी मित्र सेवा समिति|अमेरिकन फ्रेंड्स सर्विस कमिटी द्वारा दिया गया नामांकन भी शामिल है]] ([[:en:American Friends Service Committee|American Friends Service Committee]]).<ref>[http://www.afsc.org/about/nobel/past-nominations.htm AFSC की पूर्व नोबेल नामांकन].</ref> दशको उपरांत नोबेल समिति ने सार्वजानिक रूप में यह घोषित किया कि उन्हें अपनी इस भूल पर खेद है, और यह स्वीकार किया कि पुरूस्कार न देने की वजह विभाजित राष्ट्रीय विचार थे.महात्मा गाँधी को यह पुरुस्कार १९४८1948 में दिया जाना था, परन्तु उनकी हत्या के कारण इसे रोक देना पड़ा.उस साल दो नए राष्ट्र [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] में युद्ध छिड़ जाना भी एक जटिल कारण था.<ref>अमित बरुआ [http://www.hindu.com/2006/10/17/stories/2006101704971200.htm "गाँधी को नोबेल न मिलना भारी भूल थी"].''[[द हिंदू]] ([[:en:The Hindu|The Hindu]])'',२००६2006. [[१७17 अक्तूबर]] ([[:en:17 October|17 October]]) [[2006|२००६2006]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref> गाँधी के मृत्यु वर्ष १९४८1948 में पुरस्कार इस वजह से नही दिया गया कि कोई जीवित योग्य उम्मीदवार नही था, और जब १९८९1989 में [[तेनजिन ग्यातसो|दलाई लामा]] ([[:en:Tenzin Gyatso|Dalai Lama]]) को पुरुष्कृत किया गया तो समिति के अध्यक्ष ने ये कहा कि "यह महात्मा गाँधी की याद में श्रधांजलि का ही हिस्सा है."<ref>ओयेविंद टोंनेस्सों [http://nobelprize.org/nobel_prizes/peace/articles/gandhi/index.html महात्मा गाँधी, भूले हुए सम्मानित व्यक्ति] नोबेल-ई-संग्रहालय शान्ति संपादक/संपादन, १९९८1998-२०००2000.[[21 मार्च|२१21 मार्च]] [[2006|२००६2006]] को पुनः प्राप्त किया गया</ref>
 
[[चित्र:Gandhi Memorial.jpg|thumb|left|[[राज घाट और उससे जुड़े स्मारक|राज घाट]] ([[:en:Raj Ghat and associated memorials|Rajghat]]), [[नई दिल्ली|नई-दिल्ली]] ([[:en:New Delhi|New Delhi]]), [[भारत|भारत में]] , उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ पर १९४८1948 में गाँधी का दाह-संस्कार हुआ था]]
बिरला भवन ( या बिरला हॉउस ), नई दिल्ली जहाँ पर [[30 जनवरी|३०जन्वरी30जन्वरी]], [[1948|१९४८1948]] को गाँधी की हत्या की गयी का अधिग्रहण भारत सरकार ने १९७१1971 में कर लिया तथा १९७३1973 में गाँधी स्मृति के रूप में जनता के लिए खोल दिया. यह उस कमरे को संजोय हुए है जहाँ गाँधी ने अपने आख़िर के चार महीने बिताये और वह मैदान भी जहाँ रात के टहलने के लिए जाते वक्त उनकी हत्या कर दी गयी. एक शहीद स्तम्भ अब उस जगह को चिन्हित करता हैं जहाँ पर उनकी हत्या कर दी गयी थी.
 
प्रति वर्ष [[30 जनवरी|३०30 जनवरी]] को, महात्मा गाँधी के पुण्यतिथि पर कई देशों के स्कूलों में [[अहिंसा और शान्ति का स्कूल दिवस .|अहिंसा और शान्ति का स्कूली दिन]] ([[:en:School Day of Non-violence and Peace|School Day of Non-violence and Peace]]) ( [[डी.ई.एन.ई.पी|DENIP]] ([[:en:DENIP|DENIP]]) ) मनाया जाता है जिसकी स्थापना १९६४1964 [[स्पेन]] में हुयी थी. वे देश जिनमें दक्षिणी गोलार्ध कैलेंडर इस्तेमाल किया जाता हैं, वहां [[30 मार्च|३०30 मार्च]] को इसे मनाया जाता है.
 
== आदर्श और आलोचनाएँ ==
लाइन 207:
 
=== विभाजन की संकल्पना ===
नियम के रूप में गाँधी [[विभाजन(राजनीति)|विभाजन]] ([[:en:Partition (politics)|partition]]) की अवधारणा के खिलाफ थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के दृष्टिकोण के प्रतिकूल थी.<ref>''[http://www.amazon.com/gp/reader/0394714660/ The एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह].'' लुईस फिशर, २००२2002 (पुनर्मुद्रित संस्करण) पीपी.१०६106-१०८108</ref> 6 [[भारत का विभाजन|अक्तूबर १९४६1946]] में ''[[हरिजन]] ([[:en:Harijan|Harijan]])'' में उन्होंने [[6 अक्तूबर|भारत]] ([[:en:6 October|6 October]]) का विभाजन [[1946|पाकिस्तान बनाने के लिए, के बारे में लिखा]]:
 
<blockquote>(पाकिस्तान की मांग) जैसा की मुस्लीम लीग द्वारा प्रस्तुत किया गया गैर-इस्लामी है और मैं इसे पापयुक्त कहने से नही हिचकूंगाइस्लाम मानव जाति के भाईचारे और एकता के लिए खड़ा है, न कि मानव परिवार के एक्य का अवरोध करने के लिए.इस वजह से जो यह चाहते हैं कि भारत दो युद्ध के समूहों में बदल जाए वे भारत और इस्लाम दोनों के दुश्मन हैं. वे मुझे टुकडों में काट सकते हैं पर मुझे उस चीज़ के लिए राज़ी नहीं कर सकते जिसे मैं ग़लत समझता हूँ[...] हमें आस नही छोडनी चाहिए, इसके बावजूद कि ख्याली बाते हो रही हैं कि हमें मुसलमानों को अपने प्रेम के कैद में अबलाम्बित कर लेना चाहिए.<ref>''[http://www.amazon.com/gp/reader/0394714660/ The एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित हुवा : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह].''
लूईस फिशर, २००२2002(पुनर्मुद्रित संस्करण) पी.३०८308-9</ref></blockquote>
 
फिर भी, जैक होमर गाँधी के [[मुहम्मद अली जिन्ना|जिन्ना]] के साथ पाकिस्तान के विषय को लेकर एक लंबे पत्राचार पर ध्यान देते हुए कहते हैं- "हालाँकि गांधी वैयक्तिक रूप में विभाजन के खिलाफ थे, उन्होंने सहमति का सुझाव दिया जिसके तहत कांग्रेस और मुस्लिम लीग अस्थायी सरकार के नीचे समझौता करते हुए अपनी आजादी प्राप्त करें जिसके बाद विभाजन के प्रश्न का फैसला उन जिलों के जनमत द्वारा होगा जहाँ पर मुसलमानों की संख्या ज्यादा है."<ref>जैक, होमर .''[http://books.google.com/books?id=XpWO-GoOhVEC&pg=PR13&lpg=PR11&dq=The+Gandhi+Reader:+A+Sourcebook+of+His+Life+and+Writings&sig=mu7B1to2ve7qqIYNmXQMd5jifsY गाँधी के पाठक]'',p ४१८418</ref>.
 
भारत के विभाजन के विषय को लेकर यह दोहरी स्थिति रखना, गाँधी ने इससे हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों तरफ़ से आलोचना के आयाम खोल दिए. [[मुहम्मद अली जिन्ना]] तथा समकालीन पाकिस्तानियों ने गाँधी को मुस्लमान राजनैतिक हक़ को कम कर आंकने के लिए निंदा की.[[विनायक दामोदर सावरकर|विनायक दामोदर सावरकार]] और उनके सहयोगियों ने गाँधी की निंदा की और आरोप लगाया कि वे राजनैतिक रूप से मुसलमानों को मनाने में लगे हुए हैं तथा हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के प्रति वे लापरवाह हैं और पाकिस्तान के निर्माण के लिए स्वीकृति दे दी है (हालाँकि सार्वजानिक रूप से उन्होंने यह घोषित किया था कि विभाजन से पहले मेरे शरीर को दो हिस्सों में काट दिया जाएगा).<ref>[http://news.bbc.co.uk/2/hi/50664.stm बी.बी.सी समाचार पर "महात्मा गाँधी का जीवन और मृत्य"], देखिये अनुभाग "स्वतंत्रता और विभाजन. "</ref> यह आज भी राजनैतिक रूप से विवादस्पद है, जैसे कि पाकिस्तानी-अमरीकी इतिहासकार [[आयशा जलाल|आयेशा जलाल]] ([[:en:Ayesha Jalal|Ayesha Jalal]]) यह तर्क देती हैं कि विभाजन की वजह गाँधी और कांग्रेस मुस्लीम लीग के साथ सत्ता बांटने में इक्छुक नही थे, दुसरे मसलन [[हिंदू राष्ट्रवादी]] ([[:en:Hindu nationalist|Hindu nationalist]]) राजनेता [[प्रवीण तोगडिया]] ([[:en:Pravin Togadia|Pravin Togadia]]) भी गाँधी के इस विषय को लेकर नेतृत्व की आलोचना करते हैं, यह भी इंगित करते हैं की उनके हिस्से की अत्यधिक कमजोरी की वजह से भारत का विभाजन हुआ.
 
गाँधी ने १९३०1930 के अंत-अंत में [[विभाजन#राजनैतिक भूगोल|विभाजन]] ([[:en:Partition#Political geography|partition]]) को लेकर इस्राइल के निर्माण के लिए [[१९४७1947, संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना|फिलिस्तीन के विभाजन के प्रति भी अपनी अरुचि जाहिर की थी]] ([[:en:1947 UN Partition Plan|partition of Palestine to create Israel]]). ''२६26 अक्तूबर'' [[२६26 अक्तूबर|१९३८1938]] ([[:en:26 October|26 October]]) को उन्होंने [[1938|हरिजन में कहा था]]:
 
<blockquote>मुझे कई पत्र प्राप्त हुए जिनमे मुझसे पूछा गया कि मैं घोषित करुँ कि जर्मनी में यहूदियों के [[यहूदियों का जर्मनी में इतिहास#यहूदी नाजियों के अधीन (१९३०1930 - १९४०1940 )|उत्पीडन और अरब-यहूदियों के बारे में क्या विचार रखता हूँ]] ([[:en:History of the Jews in Germany#Jews under the Nazis (1930s-1940)|persecution of the Jews in Germany]]). ऐसा नही कि इस कठिन प्रश्न पर अपने विचार मैं बिना झिझक के दे पाउँगा. मेरी सहानुभूति यहुदिओं के साथ है.मैं उनसे दक्षिण अफ्रीका से ही नजदीकी रूप से परिचित हूँ कुछ तो जीवन भर के लिए मेरे साथी बन गए हैं.इन मित्रों के द्वारा ही मुझे लंबे समय से हो रहे उत्पीडन के बारे में जानकारी मिली. वे ईसाई धर्म के अछूत रहे हैं पर मेरी सहानुभूति मुझे न्याय की आवश्यकता से विवेकशून्य नही करती यहूदियों के लिए एक राष्ट्र की दुहाई मुझे ज्यादा आकर्षित नही करती. जिसकी मंजूरी बाईबल में दी गयी और जिस जिद से वे अपनी वापसी में फिलिस्तीन को चाहने लगे हैं. क्यों नही वे, पृथ्वी के दुसरे लोगों से प्रेम करते हैं, उस देश को अपना घर बनाते जहाँ पर उनका जन्म हुआ और जहाँ पर उन्होंने जीविकोपार्जन किया. फिलिस्तीन अरबों का हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह इनलैंड अंग्रेजों का और फ्रांस फ्रंसिसिओं का. यहूदियों को अरबों पर अधिरोपित करना अनुचित और अमानवीय है जो कुछ भी आज फिलिस्तीन में हो रहा हैं उसे किसी भी आचार संहिता से सही साबित नही किया जा सकता.<ref>''[http://www.amazon.com/gp/reader/0394714660/ द एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह].'' लुईस फिशर,२००२2002 (पुनर्मुद्रित संस्करण)२८६286-२८८288</ref><ref>[http://lists.ifas.ufl.edu/cgi-bin/wa.exe?A2=ind0109&L=sanet-mg&P=31587. एस.ऐ.ऍन.ई.टी-एमजी संग्रह-सितम्बर २००१ (#३०३)]</ref></blockquote>
 
=== हिंसक प्रतिरोध की अस्वीकृति ===
लाइन 224:
 
इस आलोचना के लिए गाँधी ने कहा,"एक ऐसा समय था जब लोग मुझे सुना करते थे की किस तरह अंग्रेजो से बिना हथियार लड़ा जा सकता है क्योंकि तब हथयार नही थे...पर आज मुझे कहा जाता है कि मेरी अहिंसा किसी काम की नही क्योंकि इससे हिंदू-मुसलमानों के दंगो को नही रोका जा सकता इसलिए आत्मरक्षा के लिए सशस्त्र हो जाना चाहिए."<ref>''[http://www.amazon.com/gp/reader/0394714660/ द एसेंसियल गाँधी में पुनः प्रकाशित: उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह:]''
लुईस फिशर, २००२2002(पुनर्मुद्रित संस्करण) पी.३११311</ref>
 
उन्होंने अपनी बहस कई लेखो में की, जो की होमर जैक्स के ''द गाँधी रीडर: एक स्रोत उनके लेखनी और जीवन का'' . १९३८1938 में जब पहली बार "यहूदीवाद और सेमेटीसम विरोधी" लिखी गई, गाँधी ने १९३०1930 में हुए [[जर्मनी में यहूदियों का इतिहास#यहूदी नाजियों के अधीन|जर्मनी में यहूदियों पर हुए उत्पीडन]] ([[:en:History of the Jews in Germany#Jews under the Nazis (1930s-1940)|persecution of the Jews in Germany]]) को [[सत्याग्रह]] ([[:en:Satyagraha|Satyagraha]]) के अंतर्गत बताया उन्होंने जर्मनी में यहूदियों द्वारा सहे गए कठिनाइयों के लिए अहिंसा के तरीके को इस्तेमाल करने की पेशकश यह कहते हुए की
 
<blockquote>अगर मैं एक यहूदी होता और जर्मनी में जन्मा होता और अपना जीविकोपार्जन वहीं से कर रहा होता तो जर्मनी को अपना घर मानता इसके वावजूद कि कोई सभ्य जर्मन मुझे धमकाता कि वह मुझे गोली मार देगा या किसी अंधकूपकारागार में फ़ेंक देगा, मैं तडीपार और मतभेदीये आचरण के अधीन होने से इंकार कर दूँगा . और इसके लिए मैं यहूदी भाइयों का इंतज़ार नाहे करूंगा कि वे आयें और मेरे वैधानिक प्रैत्रोध में मुझसे जुडें,बल्कि मुझे आत्मविश्वास होगा कि आख़िर में सभी मेरा उदहारण मानने के लिए बाध्य हो जायेंगे. यहाँ पर जो नुस्खा दिया गया है अगर वह एक भी यहूदी या सारे यहूदी स्वीकार कर लें, तो उनकी स्थिति जो आज है उससे बदतर नही होगी. और अगर दिए गए पीडा को वे स्वेच्छापूर्वक सह लें तो वह उन्हें अंदरूनी शक्ति और आनंद प्रदान करेगा, और हिटलर की सुविचारित हिंसा भी यहूदियों की एक साधारण नर संहार के रूप में निष्कर्षित हो तथा यह उसके अत्याचारों की घोषणा के खिलाफ पहला जवाब होगी. अगर यहूदियों का दिमाग स्वेच्छयापूर्वक पीड़ा सहने के लिए तयार हो, मेरी कल्पना है कि संहार का दिन भी धन्यवाद ज्ञापन और आनंद के दिन में बदल जाएगा जैसा कि जिहोवा ने गढा.. एक अत्याचारी के हाथ में अपनी ज़ाति को देकर किया. इश्वर का भय रखने वाले, मृत्यु के आतंक से नही डरते.<ref>जैक, होमर.'' [http://books.google.com/books?id=XpWO-GoOhVEC&pg=PR13&lpg=PR11&dq=The+Gandhi+Reader:+A+Sourcebook+of+His+Life+and+Writings&sig=mu7B1to2ve7qqIYNmXQMd5jifsY गाँधी के पाठक]'', पी पी ३१९319-२०20</ref></blockquote>
 
गाँधी की इन वक्तव्यों के कारण काफ़ी आलोचना हुयी जिनका जवाब उन्होंने "यहूदियों पर प्रश्न" लेख में दिया साथ में उनके मित्रों ने यहूदियों को किए गए मेरे अपील की आलोचना में समाचार पत्र कि दो कर्तने भेजीं दो आलोचनाएँ यह संकेत करती हैं कि मैंने जो यहूदियों के खिलाफ हुए अन्याय का उपाय बताया, वह बिल्कुल नया नही है....मेरा केवल यह निवेदन हैं कि अगर हृदय से हिंसा को त्याग दे तो निष्कर्षतः वह अभ्यास से एक शक्ति सृजित करेगा जो कि बड़े त्याग कि वजह से है.<ref name="Homer-322">जैक होमर.'' गाँधी के पाठक'' ,पी ३२२322</ref> उन्होंने आलोचनाओं का उत्तर "यहूदी मित्रो को जवाब"<ref name="Homer-323-324">जैक होमर .''गाँधी के पाठक'' , पी पी ३२३323-4</ref> और "यहूदी और फिलिस्तीन"<ref name="Homer-324-326">जैक होमर '', गाँधी के पाठक '', पी पी ३२४324-6</ref> में दिया यह जाहिर करते हुए कि "मैंने हृदय से हिंसा के त्याग के लिए कहा जिससे निष्कर्षतः अभ्यास से एक शक्ति सृजित करेगा जो कि बड़े त्याग कि वजह से है.<ref name="Homer-322" />
 
यहूदियों की [[यहूदी अग्निकांड|आसन्न आहुति]] को लेकर गाँधी के बयान ने कई टीकाकारों की आलोचना को आकर्षित किया.<ref>डेविड लुईस स्केफर [http://www.nationalreview.com/comment/comment-schaefer042803.asp गाँधी ने क्या किया?] .''''२८28 [[28 अप्रैल|अप्रैल]] [[2003|२००३2003]] को राष्ट्रीय समीक्षा [[21 मार्च|२१21]] [[2006|मार्च २००६2006]], रिचर्ड ग्रेनिएर द्वारा पुनः प्राप्त किया गया.[http://eserver.org/history/ghandi-nobody-knows.txt "द गाँधी नोबडी नोस"].''[[टीका पत्रिका|कमेंटरी पत्रिका]] ([[:en:Commentary Magazine|Commentary Magazine]])''. मार्च १९८३1983 .[[21 मार्च|२१21]] [[2006|मार्च २००६2006]] को पुनः समीक्षा किया गया</ref>[[मार्टिन बूबर]] ([[:en:Martin Buber|Martin Buber]]), जो की स्वयं यहूदी राज्य के एक विरोधी हैं ने गाँधी को [[24 फरवरी|२४24 फरवरी]], [[1939|१९३९1939]] को एक तीक्ष्ण आलोचनात्मक पत्र लिखा. बूबर ने दृढ़ता के साथ कहा कि अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों के साथ जो व्यवहार किया गया वह नाजियों द्वारा यहूदियों के साथ किए गए व्यवहार से भिन्न है, इसके अलावा जब भारतीय उत्पीडन के शिकार थे, गाँधी ने कुछ अवसरों पर बल के प्रयोग का समर्थन किया.<ref>हर्त्ज्बर्ग, आर्थर यहूदी विचार पी.ऐ : यहूदी समाज का प्रकाशन, १९९७1997, पीपी.४६३463-४६४464; गार्डन हेम, भी देखें "अध्यात्मिक साम्राज्यवाद की अस्वीकृति:गाँधी को बूबर के पत्रों का परावर्तन ."''सार्वभौमिक अध्यन की पत्रिका'', [[22 जून|२२22 जून]], [[1999|१९९९1999]].</ref>
 
गाँधी ने १९३०1930 में [[जर्मनी में यहूदियों का इतिहास#यहूदी नाजियों के अधीन (१९३०1930-१९४०1940)|जर्मनी में यहूदियों]] ([[:en:History of the Jews in Germany#Jews under the Nazis (1930s-1940)|persecution of the Jews in Germany]]) के उत्पीडन को [[सत्याग्रह]] ([[:en:Satyagraha|Satyagraha]]) के भीतर ही संदर्भित कहा. नवम्बर १९३८1938 में उपरावित यहूदियों के नाजी उत्पीडन के लिए उन्होंने अहिंसा के उपाय को सुझाया:
 
<blockquote>आभास होता है कि यहूदियों के जर्मन उत्पीडन का इतिहास में कोई सामानांतर नही. पुराने जमाने के तानाशाह कभी इतने पागल नही हुए जितना कि हिटलर हुआ और इसे वे धार्मिक उत्साह के साथ करते हैं कि वह एक ऐसे अनन्य धर्म और जंगी राष्ट्र को प्रस्तुत कर रहा है जिसके नाम पर कोई भी अमानवीयता मानवीयता का नियम बन जाती है जिसे अभी और भविष्य में पुरुस्कृत किया जायेगा. जाहिर सी बात है कि एक पागल परन्तु निडर युवा द्वारा किया गया अपराध सारी जाति पर अविश्वसनीय उग्रता के साथ पड़ेगा.यदि कभी कोई न्यायसंगत युद्ध मानवता के नाम पर , तो एक पुरी कॉम के प्रति जर्मनी के ढीठ उत्पीडन के खिलाफ युद्ध को पूर्ण रूप से उचित कहा जा सकता हैं.पर मैं किसी युद्ध में विश्वास नही रखता. इसे युद्ध के नफा-नुकसान के बारे में चर्चा मेरे अधिकार क्षेत्र में नही है. परन्तु जर्मनी द्वारा यहूदियों पर किए गए इस तरह के अपराध के खिलाफ युद्ध नही किया जा सकता तो जर्मनी के साथ गठबंधन भी नही किया जा सकता यह कैसे हो सकता हैं कि ऐसे देशों के बीच गठबंधन हो जिसमे से एक न्याय और प्रजातंत्र का दावा करता हैं और दूसरा जिसे दोनों का दुश्मन घोषित कर दिया गया है?"<ref>जैक, होमर.'' गाँधी के पाठक'' , ''हरिजन'' ,[[26 नवंबर|२६26]] [[1938|नवम्बर १९३८1938]], पीपी. ३१७317-३१८318</ref><ref>मोहनदास.के गाँधी [http://lists.ifas.ufl.edu/cgi-bin/wa.exe?A2=ind0109&L=sanet-mg&P=31587 २६] नवम्बर'' ''१९३८1938 [[26 नवंबर|में प्रकाशित]] हरिजन [[1938|में युद्ध और हिंसा के प्रति एक अहिंसात्मक दृष्टिकोण.]]</ref></blockquote>
 
=== दक्षिण अफ्रीका के प्रारंभिक लेख ===
 
गाँधी के दक्षिण अफ्रीका को लेकर शुरुआती लेख काफी विवादस्पद हैं [[7 मार्च|7 मार्च]], [[1908|१९०८1908]] को, गाँधी ने ''[[भारतीय मत|इंडियन ओपिनियन]] ([[:en:Indian Opinion|Indian Opinion]])'' में दक्षिण अफ्रीका में उनके कारागार जीवन के बारे में लिखा "काफिर शासन में ही असभ्य हैं - कैदी के रूप में तो और भी. वे कष्टदायक, गंदे और लगभग पशुओं की तरह रहते हैं."<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite book|title=The Collected Works of Mahatma Gandhi|volume=8|pages=199}}
--></ref> १९०३1903 में अप्रवास के विषय को लेकर गाँधी ने टिप्पणी की कि "मैं मानता हूँ कि जितना वे अपनी जाति की शुद्धता पर विश्वास करते हैं उतना हम भी...हम मानते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में जो गोरी जाति है उसे ही श्रेष्ट जाति होनी चाहिए."<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite book|title=The Collected Works of Mahatma Gandhi|volume=3|pages=255}}
--></ref> दक्षिण अफ्रीका में अपने समय के दौरान गाँधी ने बार-बार भारतियों का अश्वेतों के साथ सामाजिक वर्गीकरण को लेकर विरोध किया, जिनके बारे में वे वर्णन करते हैं कि " निसंदेह पूर्ण रूप से काफिरों से श्रेष्ठ हैं".<ref><!--Translate this template and uncomment
{{cite book|title=The Collected Works of Mahatma Gandhi|volume=2|pages=270}}
--></ref> यह ध्यान देने योग्य हैं कि गाँधी के समय में ''काफिर'' का [[काफिर (दक्षिण अफ्रीका में ऐतिहासिक इस्तेमाल)|वर्तमान में]] ([[:en:Kaffir (Historical usage in southern Africa)|a different connotation]])इस्तेमाल हो रहे अर्थ से एक [[काफिर (जातीय कलंक)|अलग अर्थ था]] ([[:en:Kaffir (ethnic slur)|its present-day usage]]). गाँधी के इन कथनों ने उन्हें कुछ लोगों द्वारा नसलवादी होने के आरोप को लगाने का मौका दिया है.<ref name="guardian_racist">रोरी कैरोल, [http://www.guardian.co.uk/world/2003/oct/17/southafrica.india "गाँधी को नस्लवादी कहा गया जैसे ही जोहान्सबर्ग में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान दिया गया"], ''द गार्डीयन'', [[१७17 अक्तूबर|अक्तूबर १७17]] ([[:en:October 17|October 17]]), [[2003|२००३2003]].</ref>
 
इतिहास के दो प्रोफ़ेसर सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, जो दक्षिण अफ्रीका के इतिहास पर महारत रखते हैं, ने अपने मूलग्रन्थ ''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका ,१८९३1893 - १९१४1914 में इस विवाद की जांच की है.''(नई दिल्ली:मनोहर,२००५2005).<ref>[https://www.vedamsbooks.com/no49854.htm एक राजनैतिक सुधारक का सृजन: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३-१९१४]</ref> अध्याय एक के केन्द्र में,"गाँधी, औपनिवेशिक स्थिति में जन्मे अफ्रीकी और भारतीय" जो कि "श्वेत आधिपत्य" में अफ्रीकी और भारतीय समुदायों के संबंधों पर है तथा उन नीतियों पर जिनकी वजह से विभाजन हुआ(और वे तर्क देते हैं कि इन समुदायों के बीच संघर्ष लाजिमी सा है) इस संबंध के बारे में वे कहते हैं, "युवा गाँधी १८९०1890 में उन विभाजीय विचारों से प्रभावित थे जो कि उस समय प्रबल थीं."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका,१८९३1893-१९१४1914.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद,२००५2005.</ref> साथ ही साथ वे यह भी कहते हैं, "गाँधी के जेल के अनुभव ने उन्हें उन लोगों कि स्थिति के प्रति अधीक संवेदनशील बना दिया था...आगे गाँधी दृढ़ हो गए थे; वे अफ्रीकियों के प्रति अपने अभिव्यक्ति में पूर्वाग्रह को लेकर बहुत कम निर्णायक हो गए, और वृहत स्तर पर समान कारणों के बिन्दुओं को देखने लगे थे. जोहान्सबर्ग जेल में उनके नकारात्मक दृष्टिकोण में ढीठ अफ्रीकी कैदी थे न कि आम अफ्रीकी."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३1893-१९१४1914.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५2005:पृष्ठ ४५45.</ref>
 
[[दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति|दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति]] ([[:en:President of South Africa|President of South Africa]]) [[नेल्सन मंडेला]] गाँधी के अनुयायी हैं,<ref name="Mandela-2000" /> २००३2003 में गाँधी के आलोचकों द्वारा प्रतिमा के अनावरण को रोकने की कोशिश के बावजूद उन्होंने उसे [[जोहान्सबर्ग]] ([[:en:Johannesburg|Johannesburg]]) में अनावृत किया.<ref name="guardian_racist"/> भाना और वाहेद ने अनावरण के इर्द-गिर्द होने वाली घटनाओं पर ''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १९१३1913-१९१४1914'' में टिप्पणी किया है. अनुभाग " दक्षिण अफ्रीका के लिए गाँधी के विरासत" में वे लिखते हैं " गाँधी ने दक्षिण अफ्रीका के सक्रिय कार्यकर्ताओं के आने वाली पीढियों को श्वेत अधिपत्य को ख़त्म करने के लिये प्रेरित किया. यह विरासत उन्हें [[नेल्सन मंडेला]] से जोड़ती हैं..माने यह कि जिस कम को गाँधी ने शुरू किया था उसे मंडेला ने खत्म किया."<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३1893 - १९१४1914.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, पृ १४९149.</ref> वे जारी रखते हैं उन विवादों का हवाला देते हुए जो गाँधी कि प्रतिमा के अनावरण के दौरान उठे थे.<ref>''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका, १८९३1893-१९१४1914.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५2005: पीपी. १५०150-1.</ref> गाँधी के प्रति इन दो दृष्टिकोणों के प्रतिक्रिया स्वरुप, भाना और वाहेद तर्क देते हैं : वे लोग को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के पश्चात अपने राजनैतिक उद्देश्य के लिए गाँधी को सही ठहराना चाहते हैं वे उनके बारे में कई तथ्यों को नजरंदाज करते हुए कारन में कुछ ज्यादा मदद नही करते; और जो उन्हें केवल एक नस्लवादी कहते हैं वे भी ग़लत बयानी के उतने ही दोषी हैं/विकृति के उतने ही दोषी हैं."<ref>''एक राजनैतिक सुधारक का निर्माण: दक्षिण अफ्रीका में गाँधी, १८९३1893-१९१४1914.'' सुरेन्द्र भाना और गुलाम वाहेद, २००५2005: पृ. १५१151.</ref>
 
=== राज्य विरोधी ===
लाइन 258:
 
-->
गाँधी [[राज्य विरोधी|राज विरोधी]] ([[:en:Antistatism|anti statist]]) उस रूप में थे जहाँ उनका दृष्टिकोण उस भारत का हैं जो कि किसी सरकार के अधीन न हो.<ref>जेसुदासन, ईग्नेसिअस आजादी के लिए गाँधी का धर्मग्रन्थ गुजरात साहित्य प्रकाशन: आनंद इंडिया , १९८७1987, पीपी २३६236-२३७237</ref> उनका विचार था कि एक देश में सच्चे [[स्वराज|स्वशासन]] ([[:en:Swaraj|self rule]]) का अर्थ है कि प्रत्यक व्यक्ति ख़ुद पर शासन करता हैं तथा कोई ऐसा राज्य नही जो लोगों पर कानून लागु कर सके.<ref>मूर्ती, श्रीनिवास महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७1987 पीपी १३13</ref><ref>मूर्ति , श्रीनिवास .महात्मा गाँधी और लियो टालस्टाय के पत्र लांग बीच प्रकाशन : लांग बीच, १९८७1987, पीपी १८९189.</ref> कुछ मौकों पर उन्होंने स्वयं को एक [[दार्शनिक अराजकतावाद|दार्शनिक अराजकतावादी कहा है]] ([[:en:Philosophical Anarchism|philosophical anarchist]]).<ref>[http://www.mkgandhi.org/articles/snow.htm गाँधी पर और उनके द्वारा आलेखों को], [[7 जून|7 जून]], [[२००८2008]] को पुनः समीक्षा किया गया</ref> उनके अर्थ में एक स्वतंत्र भारत का अस्तित्व उन हजारों छोटे छोटे आत्मनिर्भर समुदायों से है (संभवतः [[लेव तालस्तोय|टालस्टोय]] का विचार) जो बिना दूसरो के अड़चन बने ख़ुद पर राज्य करते हैं.इसका यह मतलब नही था कि ब्रिटिशों द्वारा स्थापित प्रशाशनिक ढांचे को भारतियों को स्थानांतरित कर देना जिसके लिए उन्होंने कहा कि ''हिंदुस्तान को इंगलिस्तान बनाना है''.<ref>छठा अध्याय, ''हिंद स्वराज'', मोहनदास करमचंद द्वारा .गांधी</ref> ब्रिटिश ढंग के संसदीय तंत्र पर कोई विश्वास न होने के कारण वे भारत में आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग कर [[प्रत्यक्ष लोकतंत्र]] ([[:en:direct democracy|direct democracy]]) प्रणाली को <ref>भट्टाचार्य , बुधदेवगाँधी के राजनैतिक दर्शन का विकास कलकत्ता पुस्तक घर: कलकत्ता, १९६९1969, पीपी ४७९479</ref> स्थापित करना चाहते थे.<ref>छठा अध्याय, ''हिंद स्वराज'', मोहनदास करमचंद द्वारागाँधी</ref>
 
== गांधी जी की आलोचना ==
लाइन 269:
* [[चौराचौरी कांड]] के बाद असहयोग आन्दोलन को सहसा रोक देना
* भारत की स्वतंत्रता के बाद [[जवाहरलाल नेहरू|नेहरू]] को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाना
* स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को ५५55 करोड़ रूपये देने की जिद पर अनशन करना
 
== इसे भी देखें ==
लाइन 278:
 
=== आगे के अध्ययन के लिए ===
* भाना, सुरेन्द्र और गुलाम वाहेद.''द मेकिंग ऑफ़ अ पोलिटिकल रिफोर्मार : गाँधी इन साऊथ अफ्रीका , १८९३1893-१९१४1914.'' नई दिल्ली: मनोहर, २००५2005
* बोंदुरंत्त, जुआअन वी.'' हिंसा की जीत: गाँधीवादी दर्शन का संघर्ष''. प्रिन्सटन यूपी, १९९८1998 आईएसबीऍन 0-६९१691-०२२८१02281-X
* चेर्नस, ईरा.'' अमरीकी अहिंसा: विचारों का इतिहास'', सातवाँ अध्याय .आईएसबीऍन 1-५७०७५57075-५४७547-7
* चड्ढा, योगेश .''गाँधी: एक जीवन .''आईएसबीऍन 0-४७१471-३५०६२35062-1
* डेलटन, डेनिस (ईडी) .''महात्मा गाँधी: चुनिन्दा राजनैतिक लेख ''.इंडियानापोलिस/कैमब्रिज : [[हैकट प्रकाशन कंपनी|हैकट प्रकशन कंपनी]] ([[:en:Hackett Publishing Company|Hackett Publishing Company]]), १९९६1996 आईएसबीऍन 0-८७२२०87220-३३०330-1
* गाँधी, महात्मा .''महात्मा गाँधी के संचित लेख .''नई दिल्ली: प्रकाशन विभाग, सुचना एवम प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, १९९४1994.
* [[एकनाथ इश्वरण|इश्वरण, एकनाथ]] ([[:en:Eknath Easwaran|Eswaran, Eknath]]).''गाँधी एक मनुष्य ''.आईएसबीऍन 0-९१५१३२915132-९६96-6
* फिशर, लुईस .''द एसेनसियल गांधी : उनके जीवन, कार्यों, और विचारों का संग्रह ''. प्राचीन: न्यूयार्क, २००२2002. (पुनर्मुद्रित संस्करण), आईएसबीऍन 1-४०००4000-३०५०3050-1
* गाँधी, एम.के.'' गाँधी के पाठक: उनके जीवन और लेखन का एक स्रोत पुस्तक''.होमर जैक(ईडी) ग्रोव प्रेस, न्यू योर्क, १९५६1956
* <!--Translate this template and uncomment
 
लाइन 292:
 
-->
* गाँधी, राजमोहन .''पटेल: एक जीवन ''.नवजीवन प्रकाशन घर, १९९०1990 आईएसबीऍन ८१81-७२२९7229-१३८138-8
* हंट, जेम्स डी. ''लन्दन में गाँधी ''. नई दिल्ली: प्रोमिला एवं कंपनी , प्रकाशक, १९७८1978
* मान्न, बर्नहार्ड, ''महात्मा गाँधी और पाउलो फरेरी के शैक्षणिक अवधारणाएं.'' क्लौबें, बी, में .(ईडी) राजनैतिक समाजीकरण एव शिक्षा में अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन बीडी. 8.हैम्बर्ग १९९६1996.आईएसबीऍन 3-९२६९५२926952-९७97-0
* रूहे, पीटर. ''गाँधी: एक छायाचित्र जीवनी .''आईएसबीऍन 0-७१४८7148-९२७९9279-3
* शार्प, जीन.'' गाँधी एक राजनैतिक नीतिज्ञ के रूप में, अपने मूल्यों और राजनैतिक निबंधो के साथ''. बोस्टन: एक्सटेंडिंग होराइज़ोन पुस्तकें, १९७९1979.
* सोफ्री, गियान्नी.'' गाँधी और भारत: केन्द्र में एक सदी ''(१९९५1995) आईएसबीएन 1-९००६२४900624-१२12-5
* गौरडन, हैम.''आध्यात्मिक साम्राज्यवाद से अस्वीकृति: गाँधी को बूबर के पत्रों की झलकी .''''सार्वभौमिक अध्ययन की पत्रिका'', [[22 जून|२२22 जून]] [[1999|१९९९1999.]]
* गाँधी, एम.के [http://www.forget-me.net/en/Gandhi/satyagraha.pdf "दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह"]
 
लाइन 316:
[[श्रेणी:भारत के अर्थशास्त्री]]
[[श्रेणी:भारत के नेता]]
[[श्रेणी:१८६९1869 जन्म]]