माया: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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{{हिंदू धर्म}}
'''माया''' के शाब्दिक अरथ होला "धोखा" या "भरम" या "जादुई शक्ति"। संस्कृत के ई शब्द भारतीय परंपरा में कई अलग-अलग जगह पर अलग-अलग अरथ में इस्तेमाल होला। [[वैदिक]] काल में माया के प्रयोग "शक्ति" के अर्थ में भइल बा। [[उपनिषद]] में एकर समकक्षी अविद्या के मानल जा सकत बाटे<ref name="शर्मा">{{cite book|last1=शर्मा|first1=चन्द्रधर|title=भारतीय दर्शन:आलोचन एवं अनुशीलन|date=1995|publisher=मोतीलाल बनारसीदास|location=दिल्ली|page=१३13-१४14|edition=दूसरा}}</ref>, [[श्वेताश्वेतर]] उपनिषद में [[ईश्वर]] के "मायी" कहल बा जे अपने माया रुपी शक्ति से सृष्टि के रचना करे ला।<ref>श्वेताश्वेतर, (4.9.१०10)।</ref> बाद के साहित्य में माया के अरथ अइसन धोखा के रूप में लिहल गइल बा जहाँ चीज वास्तव में जवन बा ओइसन प्रतीत नइखे होखत। [[भारतीय दर्शन]] में माया अइसन चीज खातिर प्रयोग होला जवन हमेशा बदलत रहे आ एही से ऊ वास्तविक सत्य न होखे।
अद्वैत वेदांत के अनुसार "ब्रह्म सत्य हवे आ जगत् मिथ्या हवे" ब्रह्म माया भा अविद्या के कारण जगत्-प्रपंच के रूप में प्रतीत होला।<ref name="शर्मा2">{{cite book|last1=शर्मा|first1=चन्द्रधर|title=भारतीय दर्शन:आलोचन एवं अनुशीलन|date=1995|publisher=मोतीलाल बनारसीदास|location=दिल्ली|page=२३९239-५०50|edition=दूसरा}}</ref>
 
बौद्ध परंपरा में [[माया (बुद्ध के माता|माया]] [[गौतम बुद्ध]] में माता के नाँव हवे। [[महायान]] में जवना चीज के नाँव भर होखे वास्तव में अस्तित्व न होखे ओकरा के भी माया कहल गइल बाटे।<ref>"नामरूपेव माया मायैव नामरूपम्" - शतसाहस्रिका, प्र. पा.।</ref>
"https://bh.wikipedia.org/wiki/माया" से लिहल गइल