रानी पद्मिनी: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

Content deleted Content added
नया आधार लेख बनावल गइल
 
No edit summary
टैग कुल: विजुअल संपादन मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
लाइन 1:
[[चित्र:22Princess Padmavati ca. 1765 Bibliothèque nationale de France, Paris.jpg|230px|thumb|अठारहवीं सदी में बनावल गइल एगो पेंटिंग में देखावल पद्मावती]]
'''रानी पद्मिनी''' भा '''पद्मावती''' कथा-कहानी में बर्णित, तेरहवीं-चौदहवीं सदी के समय के एगो रानी रहली जिनके बारे में साहित्य में बिबरन [[मलिक मुहम्मद जायसी]] के ''[[पद्मावत]]'' नाँव के काब्य में मिले ला, जवन कि उनके सभसे नीक काब्य रचना मानल जाला।<ref>{{cite book|title=जायसी ग्रंथावली|url=https://books.google.com/books?id=Gp4cpEdrkzMC&pg=PP7|year=2007|publisher=वाणी प्रकाशन|isbn=978-81-8143-618-4|pages=7–}}</ref> एह काब्य के मोताबिक - पद्मावती भा पद्मिनी, सिंघल देस के राजकुमारी रहली। चित्तौड़ के राजा रतनसेन उनका बारे में हिरामन नाँव के सुग्गा से सुन के उनके प्रेम करे लगलें आ उनसे बियाह कइलें। पद्मिनी के बारे में दिल्ली सल्तनत के सुलतान अल्लाउद्दीन[[अलाउद्दीन खिलजीख़िलजी]] भी सुन के उनका पावे के कोसिस कइलें आ चित्तौड़ के किला के घेरा डरलें। एह बीच, कुंभलनेर के राजा देवपाल के साथे भइल एगो लड़ाई में रतनसेन के मउअत हो गइल। कथा के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी से बचे खाती पद्मिनी आ उनके साथ राजपूत औरत लोग जौहर (खुद के जरा लिहल) कइ लिहल।
 
इतिहास में एह कहानी के बैधता के कौनों परमान ना मिले ला।<ref name="Gupta1998">{{cite book|author=मानिक लाल गुप्ता|title=मध्यकालीन भारत का इतिहास: खिलजी सल्तनत काल, 1290 ई॰ से 1320 ई॰ तक|url=https://books.google.com/books?id=pi3Ivk_csgMC|year=1998|publisher=अटलांटिक पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स}}</ref> हालाँकि, अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किला के घेरा डारे के बात इतिहासी चीज मानल जाला। बाद के कहानी सभ में पद्मिनी के जौहर के कई तरह से बिबरन दिहल गइल बा आ उपन्यास, सीरियल आ फिलिम सभ में एह कहानी के आधार बनावल गइल बा। राजस्थान में एगो किला में इनका नाँव पर महल भी बा, कहल जाला कि हेइजे अलाउद्दीन पहिली बेर पद्मिनी के छाहीं पानी में देखलें आ लोभित हो गइलें।<ref name="Gupta">{{cite book|author=परमिला गुप्ता|title=भारत के विश्वप्रसिद्द धरोहर स्थल|url=https://books.google.com/books?id=YWCcDAAAQBAJ&pg=PA142|isbn=978-93-84343-51-4|pages=142–}}</ref>