संधि: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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==अरथ==
संधि शब्द के उत्पत्ती सम् + धि से बतावल जाले। [[पाणिनि]] के ''[[अष्टाध्यायी]]'' में दू तरह के चीज बतावल गइल बा: '''संहिता''' आ संयोग। वर्ण सभ के बहुत निकटता के संहिता कहल गइल बा। सूत्र '''परः संनिकर्षः संहिता''' (अष्टा. 1। 4। 108) के लघुसिद्धान्तकौमुदी में व्याख्या कइल गइल बा: ''वर्णानामतिशयितः सन्निधिः संहिता-संज्ञः स्यात्।'' अतिशय सन्निधि यानी नजदीकी के अरथ बतावल जाला कि दू गो वर्ण सभ के बीच में आधी मात्रा से कमबेसी के व्यवधान ना होखे तब एकरा के संहिता कहल जाला।<ref name="भीमसेन">शास्त्री, भीमसेन (2000). ''लघुसिद्धान्तकौमुदी: भैमी व्याख्या''. 4था संस्करण. भैमी प्रकाशन, दिल्ली. pp. 31</ref> संयोग के परिभाषा{{efn|सूत्र '''हलोऽनन्तरा संयोगः''' (अष्टा. 1। 1। 7) ''अज्भिरव्यवहिता हलः संयोग-संज्ञाः स्युः'' - लघुसिद्धांतकौमुदी।}} दिहल जाले कि जब दू गो हल् (व्यंजन वर्ण) के बीच स्वर वर्ण न होखे। एही संहिता आ संयोग से संधि होला।<ref name="भीमसेन" />
 
संहिता कब कइल जाय एकरा खाती बिधान बा कि जब एकही पद होखे, धातु आ उपसर्ग (जोड़े) में आ समास में हमेशा संहिता करे के चाहीं, वाक्य में ई वक्ता (लेखक) के मर्जी पर बा कि ऊ संहिता करे या ना करे।
"https://bh.wikipedia.org/wiki/संधि" से लिहल गइल