लाल किला: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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'''लाल किला''' [[भारत]] के राजधानी [[दिल्ली]] शहर में मौजूद एगो इतिहासी किला बाटे। ई किला मुगल शासक लोग के मुख्य निवासस्थान रहल, लगभग 200 साल ले जब ले कि 1857 में अंतिम मुगल बादशाह के अंगरेज लोग देस निकाला ना दे दिहल। ई दिल्ली के बीचोबीच के इलाका में बा आ इहाँ कई गो म्यूजियम स्थापित कइल गइल बाने। मुगल शासन काल में ई खाली मुगल बादशाह लोग के निवास करे के जगह भर ना रहल बलुक राजकाज से अउरी मुगल राजा लोग के पारिवारिक कारपरोज से जुड़ल आयोजन आ राजनीतिक घटना सभ के केंद्र भी रहल, आसपास के इलाका पर एह जगह के बहुत परभाव भी रहल।<ref name="unesco_whl_entry" />
 
पाँचवाँ मुग़ल बादशाह [[शाह जहाँ]] द्वारा ई किला 1639 में बनवावल गइल जब किलेबंदी (देवाल आ गेट) के भीतर ऊ आपन राजधानी शाहजहानाबाद बसवलें।<ref name="Batra2008">{{cite book|author=N. L. Batra|title=Delhi's Red Fort by the Yamuna|url=https://books.google.com/books?id=wUMWAQAAMAAJ|accessdate=5 अगस्त 2012|date=2008|publisher=Niyogi Books}}</ref> लाल रंग के बलुआ पाथर से बनल होखे के कारन एकर नाँव लाल किला रखाइल। ई किला 1546 में इस्लाम शाह सूरी के बनवावल सलीमगढ़ किला के ठीक बगल में बाटे। शाही आवास के भवन सभ एक कतार में बनल बाने आ ई एगो नहर के किनारे बनावल गइल बाने। एह नहर के ''नहर-ए-बहिश्त'' यानी "स्वर्ग के नहर" नाँव दिहल गइल रहे। किला के बनावट आ आर्किटेक्चर के परभाव एकरे बाद बने वाला कई ठोगो किला आ भवन सभ पर पड़ल।<ref name="unesco_whl_entry" />
 
1747 में जब नादिरशाह के हमला भइल, किला के नक्काशी आ सजावट में लागल कीमती पाथर सभ के ब्यापक लूटपाट भइल। 1857 के बिद्रोह के बाद किला के अंदर संगमरमर के बनल ज्यादातर चीज सभ ब्रिटिश राज में बरबाद हो गइल।<ref name="auto">{{cite book|title=दि लास्ट मुग़ल |publisher=पेंगुइन|isbn=978-0-14-310243-4|page=7|author=विलियम डेलरिंपल |chapter=Introduction}}</ref> ब्रिटिश लोग एह किला के बाहरी मजबूत देवाल सभ भर बचावे के कोसिस कइल आ बाद में एह किला के तोपखाना (गैरिसन) के रूप में इस्तेमाल भइल।<ref name="auto" /> एही किला में ब्रिटिश लोग अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह 'ज़फ़र' के सुनवाई भी कइल जेकरे बाद उनके देशनिकाला दे के 1858 में रंगून भेज दिहल गइल।<ref>{{cite book|last1=Gill|first1=M. S.|title=Trials that Changed History: From Socrates to Saddam Hussein|date=2007|publisher=Sarup & Sons|isbn=9788176257978|pages=297}}</ref>