मुहम्मद आजम शाह: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर
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==निजी जीवन==
आज़म की शादी सबसे पहले 13 मई 1668 को
3 जनवरी 1669 को, आजम ने अपनी
▲13 मई 1668 को, आजम ने एक अहोम राजकुमारी, रमानी गभरू से शादी की, जिसका नाम बदलकर रहमत बानो बेगम कर दिया गया। वह अहोम राजा, स्वर्गदेव जयध्वज सिंह की बेटी थीं, और शादी एक राजनीतिक थी।
▲3 जनवरी 1669 को, आजम ने अपनी पहली चचेरी बहन, राजकुमारी जहांजेब बानो बेगम से शादी की, जो उनके सबसे बड़े चाचा क्राउन प्रिंस दारा शिकोह और उनकी प्यारी पत्नी नादिरा बानो बेगम की बेटी थी।
जहाँज़ेब उसकी मुख्य पत्नी और उसकी पसंदीदा पत्नी थी, जिसे वह बहुत प्यार करता था। उन्होंने 4 अगस्त 1670 को अपने सबसे बड़े बेटे को जन्म दिया। उनके दादा औरंगजेब ने उनका नाम 'बीदर बख्त' रखा था। औरंगजेब ने अपने पूरे जीवन में, आज़म और जहांजेब (जो उनकी पसंदीदा बहू) और राजकुमार बीदर बख्त, जो एक वीर और सफल सेनापति थे, इन तीनों से हमेशा प्रेम किया। बीदर बख्त औरंगजेब के पसंदीदा पोते भी थे।
राजनीतिक गठबंधन के तहत, आजम ने बाद में अपनी तीसरी (और अंतिम) पत्नी, शाहर बानो बेगम (पादशाह बीबी) से 1681 में शादी की। वह आदिल शाही वंश की राजकुमारी थीं और शासक अली आदिल शाह द्वितीय की बेटी थीं। बीजापुर एवं अपनी अन्य शादियों के बावजूद, आज़म का जहाँज़ेब के लिए प्यार अपरिवर्तित रहा। क्योंकि जब 1705 में उसकी मृत्यु हुई, तो वह बहुत दुःख और निराशा से भर गया जिसने उसके शेष जीवन को अंधकारमय कर दिया।
==बीजापुर की घेराबंदी==
वर्ष 1685 में औरंगजेब ने बीजापुर किले पर कब्जा करने और बीजापुर के शासक सिकंदर आदिल शाह को हराने के लिए अपने बेटे मुहम्मद आजम शाह को लगभग 50,000 पुरुषों के बल के साथ भेजा, जिन्होंने एक जागीरदार बनने से इनकार कर दिया था। मुहम्मद आजम शाह के नेतृत्व में मुगल मुख्य रूप से दोनों तरफ तोप की बैटरी का बेहतर उपयोग के कारण बीजापुर किले पर कोई प्रगति नहीं कर सके। गतिरोध से नाराज औरंगजेब खुद 4 सितंबर 1686 को पहुंचे और आठ दिनों की लड़ाई के बाद बीजापुर की घेराबंदी की कमान संभाली और मुगल विजयी हुए।
==बंगाल के सूबेदार==
प्रिंस आज़म को उनके पूर्ववर्ती, आजम खान कोका की मृत्यु के बाद १६७८ में बंगाल का राज्यपाल (सुबेदार) नियुक्त किया गया था। उन्होंने 15 माह तक बंगाल का सूबेदार रहते हुए ढाका में लालबाग किले की स्थापना की।
प्रिंस आज़म को औरंगज़ेब ने वापस बुला लिया और 6 अक्टूबर 1679 को ढाका छोड़ दिया और लाल बाग किले के निर्माण का ज़िम्मा नरेंद्र सूबेदार शाहिस्ता खां को सौंपा गया।
लाल बाग किला निर्माण के दौरान 1684 में सूबेदार शाहिस्ता खां की बेटी पारि बीबी का आक्स्मिक निधन हो गया।
बाद में वे 1701 से 1706 तक गुजरात के राज्यपाल बने।
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