खंध
बौद्ध दर्शन में पाँच गो स्कंध या खंध (संस्कृत:स्कन्ध) मानल गइल बाड़ें जिनसे अनुभव करे वाली सत्ता या ब्यवहार में जवना के जीवात्मा कहि दिहल जाला, के रचना मानल गइल बाटे। ई पाँच गो स्कंध - रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार आ विज्ञान हवें। इनहने के क्षणिक संघात (एकट्ठा भइले) के पुद्गल या आत्मा कहल जाला।[1][नोट 1][नोट 2]
अलग-अलग भाषा में स्कंध/खंध | |
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अंग्रेजी | aggregate, mass, heap |
पाली | खन्ध (khandha) |
संस्कृत | स्कन्ध (skandha) |
बंगाली | স্কন্ধ (skandha) |
बर्मी | ခန္ဒာ (IPA: [kʰàɴdà]) |
चीनी | 蘊(T) / 蕴(S) (pinyin: yùn) |
जापानी | 五蘊 (rōmaji: go'un) |
ख्मेर | បញ្ចក្ខន្ធ |
कोरियन | 온 (RR: on) |
शान | ၶၼ်ႇထႃႇ ([khan2 thaa2]) |
तिब्बती | ཕུང་པོ་ལྔ་ (phung po lnga) |
थाई | ขันธ์ |
वियतनामी | Ngũ uẩn |
बौद्ध धर्म शब्दावली |
पाँच स्कंध, हीनयान के प्रमुख सिद्धांत क्षणभंगवाद के दू गो रूप "संतानवाद" आ "संघातवाद" में से संघातवाद के अंतर्गत आवेलें। संघात के मतलब होला एकट्ठा भइल (aggregate)। क्षणभंगवाद ई कहे ला कि चेतना से युक्त ना त आत्मा बा न भौतिक पदार्थ। ना त कौनों आत्मा या पुद्गल नाम के चेतन द्रव्य बाटे न कौनों भौतिक पदार्थ। सत् खाली क्षणिक धर्म हवे, क्षणिक विज्ञान आ क्षणिक परमाणु के प्रवाह हो रहेला। संघातवादके अनुसार ई आपस में मिल के एकट्ठा हो के पाँच परकार के खंध बनावे लें आ ई पांचो खंध एकट्ठा होके महसूस करे वाला सत्ता (आत्मा या पुद्गल) हवे।[4]
टिप्पणी
संपादन करीं- ↑ These are not physical components, but rather an agglomeration or coming together of subliminal inclinations or tendencies.[2]
- ↑ Thanissaro (2002) maintains that, according to the Pali Canon, the Buddha never defined a "person" in terms of the aggregates (Pali: khandha) per se. Thanissaro nevertheless notes that, contrary to what is actually said in the Canon, such a notion is expressed by some modern scholars as if it were pan-Buddhist. Thanissaro further writes: "This understanding of the khandhas isn't confined to scholars. Almost any modern Buddhist meditation teacher would explain the khandhas in a similar way. And it isn't a modern innovation. It was first proposed at the beginning of the common era in the commentaries to the early Buddhist canons — both the Theravadin and the Sarvastivadin, which formed the basis for Mahayana scholasticism." They serve as objects of clinging and bases for a sense of self.[3]
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ शर्मा & चन्द्रधर 1998, p. 46.
- ↑ khandro.net: Skandhas
- ↑ Thanissaro Bhikkhu, Handful of Leaves Volume 2, 2nd edition 2006, page 309.
- ↑ शर्मा & चन्द्रधर 1998, pp. 45–46.
स्रोत
संपादन करीं- शर्मा, चन्द्रधर (1998). भारतीय दर्शन:आलोचन और अनुशीलन (हिंदी में). बनारस: मोतीलाल बनारसीदास. ISBN 8120821343. Retrieved 13 मई 2016.
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