जनेव, जनेऊ, यज्ञोपवीत भा उपनयन हिंदू लोग के एगो संस्कार हवे। ई संस्कार लड़िकाईं के बाद के उमिर में शिक्षा खातिर गुरु के लगे ले जाये के चीन्हा हवे।[नोट 1] जनेव ओह सूत के बनल चीज के भी कहल जाला जेकरा एह संस्कार में पहिरल जाला आ एकरे बाद संन्यास तक ले या फिर जिनगी भर पहिरल जाला। ई तीन गो धागा आ खास किसिम के गाँठ लगा के बनावल चीज होला जेकरा बायाँ कान्ही पर पहिरल जाला।

जनेव पहिरत बरुआ आ गुरु
संस्कार के दौरान पुरोहित लड़िका के जनेव पहिरावत बाने

जवना जाति सभ में ई संस्कार होला ओह जाति सभ के द्विज कहल जाला।[नोट 2] हालाँकि, वैदिक काल के कुछ ग्रंथ सभ में, जइसे कि बौधायन के गृह्यसूत्र में सभ जाति (वर्ण) के लोग के ई संस्कार करावे के उल्लेख बतावल जाला। औरतन के भी एह संस्कार के बिबरन मिले ला। बाद के समय में ई खाली बाभन, क्षत्री आ अन्य सवर्ण भा द्विज के रूप में प्रतिष्ठित जाति सभ ले सीमित रह गइल।

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टीका-टिप्पणी आ नोट

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  1. उपनीयते गुरुसमीपं प्राप्यते अनेनेति उपनयम्[1]
  2. "जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्द्विज उच्यते" - मनुस्मृति।[1]
  1. 1.0 1.1 मिश्र, श्रीधर. भोजपुरी लोक साहित्य: सांस्कृतिक अध्ययन (हिंदी में) (पहिला ed.). इलाहाबाद: हिन्दुस्तानी एकेडेमी. p. 96.