जिउतिया या जितिया (संस्कृत: जीवित्पुत्रिका व्रत) एक ठो हिंदू तेहवार बाटे जे भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार में आ नेपाल देस में मनावल जाला। एह तेहवार में औरत लोग बिना अन्न पानी के भुक्खे लीं।

जिउतिया
जितिया
हावड़ा में नदी के तीरे जिउतिया के पूजा करत मेहरारू लोग
मनावे वालाहिंदू
प्रकारहिंदू
Observancesएक दिन एक रात ले निराजल ब्रत
सुरूकुआर बदी सत्तिमी
अंतकुआर बदी नौमी
केतना बेरसालाना
संबंधित बालइका के सेहत आ लमहर उमिर खातिर

अवधि आ भोजपुरी संस्कृति ब्रत,तिउहार के धनि संस्कृति मानल जालिस। एहि संस्कृति में पुत्र के लम्बा आयु खाती कुआर अँधरिया के अष्टमी तिथि भा कुआर शुदी अष्टमी तिथि के मेहरारू लोग के द्वारा कइल जाएवला बहुत कठिन तिउहार ह जिउतिया । एह तिउहार में खर तक मुंह में ना लगावल जाये के कारन एकरा के खर -जिउतिया भी कहल जाला। भोजपुरी में जब केहु के कवनो बड़ दुर्धटना से जब जान बाँची जाला तब ई कहल जाला की फलाना के माई खर-जिउतिया कइले होइन्हे एहि से उनकर जान बाँचल। भोजपुरी संस्कृति में ई तिउहार कुआर अँधरिया के अष्टमी तिथि के दिन आ अवधी संस्कृति में यी तिउहार कुआर शुदी अष्टमी तिथि के दिन मनावल जाला| ई तिउहार हिंदी भाषा में "जीवित्पुत्रिका" के नाम से जानल जाला।


जीवित्पुत्रिका व्रत में पारन का बहुत महत्व हैं इसमें अगले दिन ताजा गर्म बना हुआ खाना खाते हैं उसमें मरुआ (रागी) के आंटे से बना हलवा या पराठा बना कर घर में जो बड़े बुजुर्ग व्रत रखे हो पहले उनको खिला कर बाद मे खुद खाते हैं।

पौराणिक प्रसंग

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महाभारत में द्रोणाचार्य के बेटा अश्वस्थामा जब पाण्डवं के लईकन के मारी देले त पांडव बहुत दुखी भइल रहन। तब शोक से ब्याकुल द्रोपती ऋषि धौम्य के लगे जा के लईकन के लम्बा उमिर के उपाय पुछला प ऋषि धौम्य सतयुग के राजा जीमूतवाहन के कथा सुनवाले आ एह ब्रत के उपाय बतवले रहन। तब से ई ब्रत भोजपुरी आ अवधी संस्कृति में जुट गयील।

राजा जीमूतवाहन के कथा

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सतयुग में जम्बूद्वीप नाव के जगह प एगो बहुत प्रतापी राजा रहन उनकर नाम रहे जीमूतवाहन।[1] एक हाली उ अपना मेहरारू सुभगा के संगे ससुरारी जा के रहे लगले। अचानक राति के उनका कवनो मेहरारू के रोये के आवाज सुनाई देलस। वोह आवाज के पीछा करत उ मेहरारू लगे जा के रोये के कारन पुछला प मेहरारू एगो दुष्ट गरुण के बारे में बतवलस जवन गांव के लईकन के खा जात रहे उहे गरूण आज एह मेहरारूके बेटा के उठा ले गइल रहे। राजा मेहरारू से ओकरा लईका के बचावे के बचन देके वोह जगह पहुँचले जहाँ गरूण रोज मॉस खाए आवत रहे। राजा के देख के गरूण उनका प झपटलस आ उनकर बयां बाहीं नोच लेलस तब राजा आपन दाहिना अंग ओकरा आगे क देले ई देख के गरूण उनका से पुछलस की तू त आदमी नईख बुझात, का तू कवनो देवता हव तब राजा कहले की हम सूर्यवंस में उत्पन्न शालिबाहन के पुत्र हईं। राजा के उदारता देख के गरूण राजा से बरदान मांगे के कहला प राजा आजतक के खाइल सब लईकन के जीवित होखे के आ आज बाद कवनो लईका के अकाल मृत्यु से बचावे के बरदान मंगले। तब गरुण नागलोक से अमृत ले- आके सब मरल लईकन के जिआ देले आ जिउतिया के ब्रत के बारे में बतवले आ ई ब्रत करे वाला के पुत्र के अकाल मृत्यु से बचावे के बरदान दिहले।

ब्रत के बिधि

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कुआर अंधारिया के सत्तमी तिथि के सांझी खा सतपुतिआ के तरकारी बूंट डाल के बनावल आ खाइल जाला एह दिन नदी किनारे भा पोखरी प जा के खरी और तेल नेनुआ के पत्ता पर रख के चिल्हो-सियारो के दिहल जाला।[2] आम के दतुवन से मुँह धोवल जाला सांझीखा ओठँघन पकावे आ खाए के चलन बा। । अष्टमी तिथि के भोर में सरगही खाए के चलन बा लेकिन सुरुज उगला के बाद से कुछ भी मुँह में ना डालल जाला। आदतन दांत आदि खोदे खाती खरिका आदि भी मुँह में डाले के पावंदी मानल जाला। पूरा निराजल ब्रत रहिके के सांझी खा जिउतिया के नेनुआ के पत्ता प धके पूजा करेके आ जीमूतवाहन के कथा सुने के चलन बा। कथा के बाद लईकन के जिउतिया ठेका के मेहरारू लोग पहिन लेला आ सालभर पहिरले रहेला लोग। मेहरारू के ज गो लईका लईकी रही त गो जिउतिया सोना के भा चानी के बानवे के चलन बा।जिउतिया ब्रत के पारण नवमी तिथि में कइल जाला।

ब्रत के महत्व

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ई ब्रत जहां मेहरारू के त्याग के मूर्ती प्रमाणित करेला ओहिजे महतारी के बेटा के प्रति महान प्रेम भी देखावेला। हर बेटा आज के दिन अपना खाती मतारी के भूखल देख के मन में मतारी के प्रति पवित्र भावना के बिकास करे ला जवन परिवार के बांधेवाला प्रेम बंधन के अउर मजबूत करेला। श्रद्धा सबुर आ बिस्वास के सत्यता प्रमाणित करेवाला ई तिउहार अब अन्य संस्कृति में भी लउके लागल बा।

  1. "जितिया व्रत की संपूर्ण कथा पढ़ें यहां, संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है यह व्रत". जनसत्ता.कॉम. Retrieved 18 अक्टूबर 2019.
  2. "जिउतिया पर व्रतियों ने सुनी चिल्हो-सियारो की कथा". भास्कर. Archived from the original on 2019-10-18. Retrieved 18 अक्टूबर 2019.