जॉन एलिया (14 दिसंबर 1931 – 9 नवंबर 2002) ब्रिटिश भारत में जनमल, पाकिस्तानी उर्दू शायर रहलें जिनके गैर-परंपरागत आ अराजक सोच वाला, आ अपना खाती खास ठसक वाला कवी के रूप में पहिचान बा। शायरी करे के अलावा एलिया एगो चिंतक-बिचारक, जीवनीकार, अनुबादक आ बिद्वान भी रहलें। इनके जनम उत्तर प्रदेश के अमरोहा में भइल आ ई रईस अमरोहवी आ सैय्यद मुहम्मद तकी के भाई रहलें जे दुनों लोग पत्रकार आ मनोबिस्लेशक रहल। इनके चचियाउत भाई लोग में मशहूर फिलिम डाइरेक्टर कमाल अमरोहियो रहलें।

जॉन एलिया
جون ایلیا
जनम(1931-12-14)14 दिसंबर 1931
अमरोहा, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत
निधन8 नवंबर 2002(2002-11-08) (उमिर 70)
कराची, सिंध, पाकिस्तान
पेशाउर्दू शायर, बिद्वान, बिचारक
राष्ट्रियतापाकिस्तानी
बिधाग़ज़ल
प्रमुख रचनाशायद, या'नी, लेकिन, गुमान, गोया, फरनूद
जीवनसाथीज़ाहिदा हिना (अलगाव)

एलिया कई भाषा के बिद्वान रहलें आ शिया होखे के बावजूद इनके पढ़ाई सुन्नी लोग के संस्था देवबंद में भइल रहे। कई किताबन के अरबी से उर्दू में अनुबाद भी कइलेन। इनके मेहरारू प्रसिद्ध लेखिका ज़ाहिदा हिना उर्दू साहित्य में आ पत्रकारिता में खास अस्थान रखे ली, हालाँकि बाद में इनहन लोग के अलगौझा भ गइल रहल। एलिया के निधन कराची में 9 नवंबर 2002 के दमा के दौरा पड़े के बाद सत्तर साल के उमिर में भइल।

जॉन एलिया के जनम 14 दिसंबर 1931 के तत्कालीन ब्रिटिश भारत के राज्य उत्तर प्रदेश, के अमरोहा में भइल। इनके बाबूजी के नाँव सैयद शफ़ीक़ हुसैन रहल आ ई खुदे कई भाषा के जानकार आ शायर रहलें। एलिया के सुरुआती पढ़ाई अमरोहे में भइल। 1947 में भारत-पाक बाँट के बाद इनके भाई लोग 1950 में अमरोहा छोड़ पकिस्तान चल गइल आ छह बरिस के बाद इनहूँ के पाकिस्तान जाए के पड़ल, हालाँकि बतावल जाला कि अमरोहा से इनके लगाव उमिर भर रहल आ लगभग सालाना अमरोहा आइल करें।

एलिया के बियाह ज़ाहिदा हिना से भइल जे बिहारी मूल के पाकिस्तानी लेखिका आ पत्रकार रहली आ तब बीबीसी में काम करें। बाद में इनहन लोग के अलगाव भ गइल।

बाद के जिनगी, पूरा कराची में बीतल आ 9 नवंबर 2002 के इनके सत्तर बरिस के उमिर में दमा के दौरा पड़े के बाद अस्पताल में भर्ती करावल गइल जहाँ इनके निधन भ गइल।[1]

एलिया के रचना सभ में अराजकता, निराशा आ आशा के मिलजुल रूप, ठसक वगैरह के भाव देखे के मिले ला आ जिनगी के प्रति उनके ब्यंग बहुत तीखा होला। अपना के खुद के परिचय कुछ एह रूप में रखे लें:

आ जिनगी के अर्थ के बारे में परसिद्ध कहनाम कि,

बतावल जाला कि 1990 में एगो मुशायरा में शेर पढ़े के मूड में आवे खाती आपन कपार पीट-पीट के ऊ ई शे'र पढ़लें[2]:

मौत के बारे में इनके शायराना स्टाइल कोट कइल जाला[3]:

शायरी
  • शायद (1990)
  • या'नी (2003)
  • गुमान (2004)
  • लेकिन (2006)
  • गोया (2008)
  • रमूज
गद्य

एलिया खाली शायरे भर ना रहलें बलुक सूफी आ इस्माइली परंपरा के लोग के जीवनी, अउरी कई किसिम के गद्य रचना आ अरबी से उर्दू अनुबाद भी कइलेन। एह में कुछ प्रमुख के नाँव नीचे दिहल जात बा:

  • माशीह-ए-बग़दाद हल्लाज
  • जोमेट्रिया
  • तवासीन
  • ईसागोज़ी
  • रहाईशो-कुशाइश
  • हसन बिन सबा
  • मसाइले-तजरीद
  • रासैल इख्वा अल सफ़ा

एलिया पाकिस्तान के मशहूर अखबार जंग के संपादन भी कइलेन।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी इनके याद में एगो वजीफा देले।[4] पाकिस्तान सरकार इनके याद में एगो डाक टिकट जारी कइले बा आ कराची में इनके नाँव प एगो सड़क भी बा।[5]

  1. "शायर जॉन एलिया नहीं रहे | BBC Hindi". Bbc.com. Archived from the original on 2016-11-10. Retrieved 2018-03-18.
  2. Hasan, Fawad. "Not gone: Jaun Elia's ideas still reverberating in the hearts of the young - The Express Tribune". Tribune.com.pk. Retrieved 2018-03-18.
  3. "Aik hi shakhs tha jahan mein kiya?: Literatis celebrate 86th birthday of Jaun Elia – Daily Pakistan". En.dailypakistan.com.pk. 2017-12-14. Retrieved 2018-03-18.
  4. "John Elia Scholarship Endowment in Support of Veterans - University of California-Merced Scholarships". Ucmerced.academicworks.com. 1980-01-01. Retrieved 2018-03-18.
  5. "Jagran Special Shayar Jaun Elia never afraid from threat of Pakistan". Jagran.com. 2017-12-14. Retrieved 2018-03-18.

बाहरी कड़ी

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