ठुमरी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के एगो बिधा हवे; एकरा के सेमी-क्लासिकल कटेगरी में रखल जाला। एह तरह के गायन में रस, रंग आ भाव के परधान अस्थान दिहल जाला। गायक-गायिका लोग छोट बंद के बोल के ले के बिबिध तरीका से उनहन में कहल भाव के प्रगट करे ला।

ठुमरी शब्द के उत्पत्ती ठुम से बतावल जाला, जे ठुमक के चलल चाहे ठुमका शब्द में आवे ला, मतलब कि छोट कदम से अइसन रुक-रुक के चलल कि गोड़ में बन्हनल पैंजनी वगैरह के घुघुर में खनक पैदा होखे।

गायकी के बिधा के रूप में एकर उत्पत्ती अवध के नबाब लोग के इहाँ से भइल बतावल जाले हालाँकि कुछ लोग इहो माने ला कि ई चलन में पहिले से रहल आ नबाव लोग एकरा के आगे बढ़ावे के काम कइल। ठुमरी के धुन भारतीय लोक संगीत से भी कई चीज लेले। कजरी, दादरा, होरी, टप्पा नियर अउरी कई गो बिधा सभ जे सेमी-क्लासिकल शैली में गिनल जालीं, कभी-कभार ठुमरिये के वर्ग में रखल जालीं आ एह पूरा संगीत के ठुमरी कहल जाला; हालाँकि, इनहन के बोल भाव वगैरह में अंतर होला। ठुमरी के भाव बहुधा शृंगार रस वाला होखे लें।