तिलका माँझी
तिलका माँझी भा जबरा पहड़िया एगो आदिवासी बिद्रोही रहलें जे 1784 के आसपास के समय में, मंगल पांडे से लगभग 100 बरिस पहिले, ब्रिटिश राज के खिलाफ बिद्रोह कइलें। ई तत्कालीन संथाल परगना के आसपास के इलाका में, आदिवासी लोग के एकट्ठा क के हथियारबंद मंडली बना के अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ बगावत कइलें आ अंगरेज लोग आ उनके संसाधन पर हमला कइलें। एह लड़ाई में ऊ अंगरेज कमिश्नर ऑगस्टस क्लीवलैंड के तीर से मार के गिरा देहले रहलें।[1] एकरे बाद अंग्रेजी हकूमत बरियार फोर्स ले के आदिवासी लोग पर हमला कइल जेह में तिलका माँझी के गिरफ्तार कइल गइल आ भागलपुर में इनके बरगद के एगो फेड़ा से लटका दिहल गइल।[2]
भारत आजादी के बाद ओह जगह के आज तिलका माँझी चौक के नाँव से जानल जाला।[2] वर्तमान में इनका नाँव पर भागलपुर इन्वर्सिटी के नाँव रखल भी गइल बा।
लेखिका महाश्वेता देवी, इनके जिनगी पर आधारित एगो उपन्यास शालगिरर डाके बंगाली भाषा में लिखले बाड़ी।
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ Anuśabda; Cāru Goyala; Nanditā Datta (Editor) (2017). Lok Aur Shastra : Janjatiya Sahitya. Vani Prakashan. pp. 25–. ISBN 978-93-5229-379-7.
{{cite book}}
:|author3=
has generic name (help) - ↑ 2.0 2.1 K. Guru Rajesh. Sarfarosh: A Naadi Exposition of the Lives of Indian Revolutionaries. Notion Press. pp. 46–. ISBN 978-93-5206-173-0.
ई जीवनी लेख एगो आधार बाटे। जानकारी जोड़ के एकरा के बढ़ावे में विकिपीडिया के मदद करीं। |