दोहा

दू लाइन के एगो मात्रिक छंद

दोहा एक किसिम के छंद हवे। ई दू लाइन वाला मात्रिक छंद हवे जेह में चार गो चरण होखे लें। पहिला आ तिसरा चरण में 13 मात्रा आ दुसरा आ चउथा चरण में 11 गो मात्रा होखे लीं। दुसरे आ चउथे चरण के अंत में गुरु-लघु मात्रा आ तुक के मेल होखल चाहे ला। चार गो चरण वाला ई छंद दू लाइन के कबिता होखे ला जेकरा चलते एकरा के अंग्रेजी भा पच्छिमी शैली के कबिता सभ के साथे तुलना में तुकांत कपुलेट के किसिम मानल जा सके ला। एकरे अलावा अउरी बिसेस्ता ई बाटे कि दोहा मुक्तक-काब्य खातिर इस्तेमाल होला; मने कि उर्दू के शे'र नियर हर दोहा, दू लाइन में, अपने-आप में पूरा होखे ला।

दोहा से मिलत-जुलत चाहे एह पर आधारित अउरी छंद भी बाड़ें। दोहा के मात्रा बिधान के चरण अनुसार उलट दिहल जाय तब ऊ सोरठा बन जाला। एही तरीका से रोला आ दोहा के मेल से कुंडलिया छंद बने ला।

दोहा के शुरूआत अपभ्रंश भाषा के काब्य के जमाना से मानल जाला आ आजो हिंदुस्तानी भाषा में एकर इस्तेमाल होखत बाटे। दोहा लिखे वाला कबी लोगन में गुरुनानक, कबीर, जायसी, तुलसीदास, रहीम आ बिहारी के नाम प्रमुख बाटे। सरहपा के दोहाकोश, कबीरदास के बहुत सारा साखी, तुलसीदास के दोहावली, आ बिहारी के रचना बिहारी सतसई पूरा तरीका से एही छंद में लिखल गइल हईं। कई ठे आधुनिक उर्दू शायर लोग भी एह छंद में रचना कइले बाटे, जइसे कि फ़िराक़ गोरखपुरी[1]निदा फाजली[2][3]

नाँव संपादन करीं

दोहा शब्द के उत्पत्ती आ अरथ के बारे में कई मत बाड़ें। कुछ लोगन के बिचार बा कि ई संस्कृत भाषा के द्विपद शब्द से निकलल हवे; मने की दू लाइन वाली कबिता।[4] कुछ लोग एकर उत्पत्ती संस्कृते के दोधक से बतावे ला[5], जिनहन लोग के चंद्रधर शर्मा गुलेरी "संस्कृताभिमानी" कहि के बोलवले बाड़ें आ एह मत के खंडन क के एकर उत्पत्ती दुइ के संख्या से बतवले बाड़ें।[6] दूसर मत ई बा की ई लोक जीवन के एगो ताल दुअवह से निकलल हवे जे बाद में दूहा भइल आ अंत में दोहा शब्द बन गइल।[7] कुछ लोग दोहा के अरथ "दुहे" (शब्द से भाव दुहल) से भी लगावे ला।[8]

संदर्भ संपादन करीं

  1. गोरखपुरी, फ़िराक़ (1970). बज़्मे-जिंदगी: रंगे-शायरी (हिंदी में). दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन. pp. 118~. ISBN 978-81-263-1588-8. Retrieved 19 फरवरी 2022.
  2. फ़ाज़ली, निदा (2001). निदा फ़ाज़ली: चुनी हुई नज़्में, ग़ज़लें, शे'र और जीवन-परिचय (हिंदी में). राजपाल एंड संस. pp. 17–18. ISBN 978-81-7028-389-8. Retrieved 19 फरवरी 2022.
  3. Kala ka Saundrya-1 (हिंदी में). Vani Prakashan. ISBN 978-81-8143-888-1.
  4. पाठक, पुनीत (27 अगस्त 2019). नींव का पत्थर: दोहावली (हिंदी में). नोशन प्रेस. ISBN 978-1-64650-511-1. Retrieved 19 फरवरी 2022.
  5. मिश्र, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद. हिंदी साहित्य का अतीत (हिंदी में). वाणी प्रकाशन. Retrieved 19 फरवरी 2022.
  6. गुलेरी, चंद्रधर शर्मा (2007). पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी (हिंदी में). दिल्ली: वाणी प्रकाशन. ISBN 978-81-8143-580-4. Retrieved 19 फरवरी 2022.
  7. अस्थाना, मधुकर (1 जनवरी 2015). "लोकप्रिय छंद दोहा". In नीरज, बृजेश (ed.). शब्द व्यंजना 9: जनवरी 2015 (हिंदी में). लोकोदय प्रकाशन. pp. 41–45.
  8. वर्मा, राजेन्द्र (2015). "दोहे का शिल्प". अभिव्यक्ति (हिंदी में). रचना प्रसंग. Retrieved 19 फरवरी 2022.