पंचसिद्धांतिका
पंचसिद्धंतिका भारतीय ज्योतिष के एगो ग्रंथ हवे जेकर रचना वराहमिहिर 575 ईस्वी के आसपास के समय में कइलेन। एह ग्रंथ में, जइसे कि एकरे नाँव से साफ बाटे, वराहमिहिर के ज़माना से पहिले के पाँच किसिम के सिद्धांत सभ के बिबरन बाटे; साथे-साथ उनुके खुद के दिहल कुछ चीज भी बा। मिहिर के वेदांगज्योतिष आ यूनानी ज्योतिष के सिद्धांत सभ के जानकारी के एकट्ठा करे खातिर जानल जाला।[नोट 1] उनुके अउरी परसिद्ध ग्रंथ सभ में बृहज्जातक आ बृहत्संहिता के गिनल जाला।
पंचसिद्धंतिका में पाँच प्रमुख सिद्धांत सभ के बिबरन आ ब्याख्या बाटे:
- सूर्य्यसिद्धांत
- वसिष्ठसिद्धांत
- पोलिशसिद्धांत
- रोमकसिद्धांत
- पितामहसिद्धांत
एह सभ में ग्रह आ चंद्रमा के गति, स्थिति आ उनहन के आकाश में लोकेशन के अनुमान लगावे संबंधी गणना के बिसय में बतावल गइल बाटे।
वराहमिहिर अपना ग्रंथ पंचसिद्धंतिका में ट्रिगनामेट्री (त्रिकोणमिति) के कई सूत्र सभ बतवले बाने।
नोट
संपादन करीं- ↑ The Pañca-siddhāntikā ("Five Treatises"), a compendium of Greek, Egyptian, Roman and Indian astronomy. Varāhamihira's knowledge of Western astronomy was thorough. In 5 sections, his monumental work progresses through native Indian astronomy and culminates in 2 treatises on Western astronomy, showing calculations based on Greek and Alexandrian reckoning and even giving complete Ptolemaic mathematical charts and tables.[1]
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ "Varahamihira". Encyclopædia Britannica. 2007.