बिदेसिया (कैथी: 𑂥𑂱𑂠𑂵𑂮𑂱𑂨𑂰) चाहे बहरा बहार भिखारी ठाकुर के लिखल एगो भोजपुरी तमासा हऽ। ई भिखारी ठाकुर के गरीबी, पलायन आ नारी सशक्तिकरण प लिखल नाटक सभ मे से एगो बा।[1] ई नाटक आपन ख्याती के चलते एगो भोजपुरी भाषा के एगो नाट्य शैली बनि गइल, आ दोसरो भाषा मे एह शैली मे तमासा लिखाइल, ओह घड़ी के बिद्वान लोग एकर प्रसिद्धि के तुलना रामायण से कईल बा।[2]

बिदेसिया
Written byभिखारी ठाकुर
Date premiered1912
Subjectपलायन, महिला सशक्तिकरण, गरीबी
Genreरंगमंच

एह तमासा मे उनइसवा सताबदी के भोजपुरी समाज मे मेहरारुन के दुरदसा के देखावल गइल बा। एह नाटक के 1917 मे लिखल गइल रहे।[3]

एकरा पहिलका बेरा कलजुग प्रेम नांव से परकासित कईल गइल रहे, फेर बहरा बहार नांव से छपाईल, बाकिर एकर बिदेसिया नांव के पाट के चलते ई एही नांव से परसिद्ध भइल।[4]


  1. Singh, Dhananjay (September 2018). "The Image of Women in Folk-Traditions of Migration" (PDF). Journal of Migration Affairs. 1: 55 – via the image of women in Bhojpuri folk- culture/literature of migration is colourful. The women themselves are in a way suffering from migration—whether they have been left behind, or if they have been forced to migrate themselves, or if they have come with her husband to his village as an urhari. The seriousness with which Bhikhari Thakur has dealt with the travails of these women is unparalleled. In his play ‘Bidesiya’ he shows Pyari Sundari’s suffering as the ideal chaste wife waiting for her husband in the village.
  2. यांग, आनंद (2021). The Limited Raj: Agrarian Relations in Colonial India, Saran District, 1793-1920. Univ of California Press. ISBN 9780520369108.
  3. नारायन, बद्री. Culture and Emotional Economy of Migration. Taylor and Francis. p. 74.
  4. Bhikhari Thakur: Bhojpuri Ke Bharatendu. Allahabad: Aashu Prakashan.