भारतीय लोक संगीत अपने-आप में बहुत बिबिधता लिहले बा। भारत के क्षेत्र बिस्तार के अलग-अलग इलाका में लोक संगीत, गीत आ बाजा सभ में पर्याप्त अंतर देखे के मिले ला। सिनेमा आ आधुनिक संगीत के चलते लोक संगीत के बिधा के महत्त्व भी कम भइल बा आ कलाकार लोग के संख्या भी गिर रहल बा। एही के साथ, नया माध्यम में भी कुछ लोग अपना इलाका के संस्कृति के प्रति पोढ़ लगाव के कारण एकरा बचावे के कोसिस भी कर रहल बा आ एह कारन लोक संगीत में ब्यापक बदलाव भी देखे के मिलत बा।

भारतीय लोक संगीत के परंपरा हमेशा से लोकगीत आ लोकनाच आधारित रहल बा। एह गीतन के रचना आ संरक्षण में संत कवी लोग के बहुत योगदान रहल बा। बाद के समय में लोकगीतन के धुन ले के भा परंपरागत लोक संगीत के साज-बाज के साथ नया रचना सभ के भी लोकगीत के नाँव से चलावल गइल। एह नवका लोकगीत आ संगीत सभ के भी आपन अलगे जगह बा।

बिबिध रूप

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गरबा गुजरात के लोकगीत आ लोकनाच हवे। उत्पत्ती गर्भघट से बतावल जाले, जहाँ एगो औरत घइली के अंदर दिया रख के नाचे ले आ बाकी सखी लोग सहायक के रूप में रहे ला।

डांडिया भी गुजरात के लोकनाच हवे। मरद-मेहरारू दुन्नो मिल के हाथ में लकड़ी के छोट-छोट डंडी ले के नाचे ले आ ताल के साथ डंडी लड़ावे लें।

उत्तराखंड के कुमाऊ आ गढ़वाल दुनों के लोकगीत आ संगीत।

पांडवानी

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राजस्थान के लोकसंगीत।

बंगाल में संत लोग द्वारा 18वीं, 19वीं आ 20वीं सदी में प्रचलित ई एक तरह के सूफी गीत नियर परंपरा हवे। खामक, एकतारा आ दुतारा नियर बाजा सहायक के रूप में लिहल जालें आ गीत भक्ति आ रहस्य, अपना अंदर के मानुष के खोज से जुड़ल होलें।

आसाम के प्रसिद्ध गीत आ नाच हवे।

बंगाल के मल्लाह आ मछेरा लोग के गीत-संगीत हवे।

भांगड़ा आ गिद्धा

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पंजाब के लोकगीत आ नाच।

कर्नाटक संगीत के शास्त्रीय परंपरा के समानांतर हल्का (सहज) संगीत जे काफी कुछ ग़ज़ल गायकी नियर होला।

महाराष्ट्र के गीत-संगीत।

इहो देखल जाय

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