बियाह: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

मानव समाज के महत्वपूर्ण संस्कार
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भोजपुरी संस्कृति के सामजिक क्रिया- कलाप
(कौनों अंतर नइखे)

07:08, 10 सितंबर 2015 तक ले भइल बदलाव

जब लईका आ लईकी एक दूसरा के , समाज क़ानून या रीती रिवाज के साक्षी राखी , के एक दोसरा के आपन जीवन साथी बनावेले बिआह कहल जाला। बिआह हिंदी भाषा के " बिबाह " शब्द के अपभ्रंस रूप ह। भोजपुरी भाषा के ई देशज शब्द के श्रेणी में आवेला | उर्दू के निकाह शब्द के मतलब बिआह ना होला। इस्लाम सभ्यता में बिआह ना होला। एह संस्कृति में बंस बढ़ावे खाती चाहे मानव के मूल जरूरत मैथुन के पूर्ति खाती मेहर (धन ) देके कनिया कीनल जाला। एगो पुरुष क्ईओगो कनिया किन सकता एकर इस्लाम सभ्यता में आजादी बा।

चिंह- जान

'बिआह' शब्द के प्रयोग मुख्य रूप से दूगो अर्थ में होला । एकर पहिला अर्थ उ क्रिया, संस्कार, विधि या पद्धति ह; जेकरा से मरद-मेहरारू के स्थायी-संबंध बनेला तथा एह सबंध के परिणाम के रूप में जामल संतान के माता पिता के सम्पत्ति के अधिकार मिलेला । पुराना जमाना के आ मध्यकाल के धर्मशास्त्री के साथ वर्तमान युग के समाजशास्त्री भी , समाज से मान्यता मिलल , परिवार की स्थापना करेवाला कवनो पद्धति के बिआह मान लेत रहन लेकिन मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि (३। २०) के शब्द के अनुसार बिआह के एगो सुनिश्चित पद्धति आ अनेक विधि से संपन्न होखे वाला आ कन्या के अर्धांगिनी बनाने वाला संस्कार मानेले |भोजपुरी संस्कृति में मनु समृति के आधार प रचना भईल हिन्दू बिबाह पद्धति के प्रचलन ज्यादा बा |

बिआह के  दोसर मतलब   समाज के चलन आ समाज में मानल  विधि से अपनावल मरद-मेहरारू के   संबंध आ  पारिवारिक जीवन भी होला। एह  संबंध से मरद-मेहरारू के  अनेक प्रकार के अधिकार आ  कर्तव्य मिलेला एकरा से  एक ओर जहाँ  समाज मरद-मेहरारू  के मैथुन  के  अधिकार देला  ओहिजे दोसरा  ओर  मरद  के मेहरारू आ  संतान के पालन एवं भरणपोषण खाती मजबूर करेला । ई बिआह के दोसरका मतलब बिधवा आदि के समाज में सम्मान आ अधिकार देबे खाती ह।   बिआह समाज में जामल लईकन के  स्थिति के  निर्धारण करेला आ  संपत्ति के  उत्तराधिकार  देला भोजपुरी संस्कृति में  बिआह  से जामल संतान  के ही  उत्तराधिकार  दिहल जाला।