सतुआन: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर
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आस्था और विश्वास का महापर्व सतुआन
दो मिनट में मैगी खाने वाली पीढ़ी को यह जानकर आश्चर्य होगा, कि सतुआ गूँथने में मिनटों नहीं लगता है। और ना ही आग पर पकाने की जरूरत और ना ही बर्तन की आवश्यकता है। सात भुने अनाज के आटे से बने सतुआ को घोल कर पी भी सकते है, और इसे गुंथ कर खा भी सकते है, इसे गमछा बिछा कर पानी डाल कर और थोड़ा सा नमक मिला कर तैयार किया जा सकता है।
प्रतिवर्ष सूर्य जब मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं। तब इसके उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है। ये भी मान्यता है की जब सूर्य मीन राशि को त्याग कर मेष राशि में प्रवेश करते है। तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की रश्मियों से अमृतधारा की वर्षा होती है, जो आरोग्य वर्धक होता है। इसलिए इस दिन लोग बासी खाना भी खाते हैं। सतुआनी में दाल से बनी सत्तू खाने की परंपरा है। यह पर्व कई मायने में महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग गंगा स्नान कर मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लो स्थापित करते हैं। सत्तू, गुड़ और चीनी आदि से पूजा की जाती है। इस दौरान सोना और चाँदी आदि दान देने की भी परंपरा है। पूजा के उपरांत लोग सत्तू व आम को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है।
इसके एक दिन बाद जूड़ शीतल का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है। जुड़ शीतल का त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है। पर्व के एक दिन पूर्व मिट्टी के घड़े या शंख जल को ढंककर रखा जाता है, फिर जुड़ शीतल के दिन सुबह उठकर पूरे घर में जल का छींटा देते हैं। मान्यता है की बासी जल के छींटे से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है।
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