संभोग: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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काम के बारे में काम की बातें। एक काम सेक्स है, जो सन्तति बढ़ाता है और एक काम, कर्म है जिससे सम्पदा में वृद्धि होती है। अशोक अमृतम
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amrutam.co.in !!अमृतम पत्रिका!!
[[File:Paul Avril - Les Sonnetts Luxurieux (1892) de Pietro Aretino, 2.jpg|thumb|220px|alt=Sexual Intercourse|सेक्स के सभसे आम रूप, [[मिशनरी पोजीशन]] जेह में मर्द ऊपर रहे ला]]
 
'''काम (सेक्स) के बारे में काम की बातें''' :- –
 
काम (सेक्स) के बारे में एक ऐसी रहस्यमयी साहित्यिक और वैज्ञानिक जानकारी जो आज तक किसी ने पढ़ी नहीं होगी।
 
'''काम/सेेक्स हेतु काम की बात....'''
 
'''धर्म, अर्थ (धन), काम''' (सेक्स/SEX) और '''मोक्ष''' इन चारों पुरुषार्थ के विषय में '''कामशास्त्र''' , कोकशास्त्र अनेको
 
'''धर्मग्रन्थों''' आदि लगभग 200 प्राचीन पुस्तकों से बहुत “'''काम का ज्ञान'''” एकत्रित कर आपके लिए जुटाया है।
 
इस ब्लॉग को लिखने में कई वर्षों तक अध्ययन कर '''काम (सेक्स)''' के अनुष्ठान की पूर्ण आहुति हेतु बहुत '''अनुसंधान''' (रिसर्च) किया है।
 
आइए जानते हैं-
 
'''सेक्स (काम) है क्या'''?
 
●क्यों जरूरी है '''काम/ सेक्स''' ?
 
● '''काम/सेक्स के''' आसान '''आसन'''
 
योग और क्रियाएं
 
● काम/सेक्स की '''हर्बल चिकित्सा।'''
 
● वीर्यपात, शीघ्रपतन से छुटकारा।
 
● मर्दाना ताकत कैसे वापस पायें।
 
● सम्भोग सहवास या सेक्स करने में समय कितना लगना चाहिए।
 
● गुप्तरोगों से कैसे बचें।
 
==== '''काम का प्रारंभ''' – ====
जब परमात्मा ने सृष्टि का निर्माण कर स्त्रियों और पुरुषों को बनाया, तो उन्होंने जीवन के चार जरूरी आयामों के बारे में बताया। ये चार जरूरी आयाम हैं-
 
'''धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष'''
 
इन चारों पुरुषार्थों में '''काम (सेक्स''') का विशेष महत्व है। इन चारों में सबसे पहले…
 
“'''काम'''“ यानि '''सेक्स/SEX के विषय में''' विस्तारपूर्वक जाने.....
'''काम की कलाकारी'''
 
==== '''-'''सेक्स के बारे में शास्त्रमत ज्ञान ====
'''धर्म''' के बारे में लिखा –'''महर्षि मनु''' ने, अर्थ ('''धन- सम्पदा''') की बातें लिखी गुरु बृहस्पति ने और '''काम (सेक्स/sex''') के विषय पर विस्तार से बताया '''नंदिकेश्वर''' ने।
 
'''नंदिकेश्वर की किताब''' को ‘'''काम’ का सूत्र''' यानि ‘'''कामसूत्र'''’ कहा गया। यह कामसूत्र एक हजार भागों में विभाजित थी। इसके बाद इसका संपादन कर इसे छोटा किया '''श्वेतकेतु''' ने। श्वेतकेतु महर्षि '''उद्दालक के पुत्र''' थे।
 
'''इसके बाद इसका और संपादन किया बाभ्रव्य ने, जो पांचाल देश''' (आज के दिल्ली का दक्षिण क्षेत्र) '''के''' '''राजा, ब्रह्मदत्त के राज्य में मंत्री थे। बाभ्रव्य ने कामसूत्र को सात प्रमुख भागों में विभाजित कर दिया। इन सातों भागों पर कामसूत्र की अलग-अलग किताब लिखी गई।'''
 
==== '''कामसूत्र के ये सात भाग थे:''' ====
'''1 – साधारण''' – ''सामान्य नियम''
 
2 – '''सांप्रयोगिक''' – ''शारीरिक प्रेम संबंध''
 
3- '''कन्या सांप्रसुक्तक'''
 
4 – '''भार्याधिकारिका'''
 
5 '''– पारदारिका'''
 
6 '''– वैशिका'''
 
7 – '''औपनिशादिका'''
 
'''वात्सयायन''' का समय आते-आते “'''कामशास्त्र'''” का यह '''आदिकालीन''' ग्रन्थ '''कामसूत्र''' कई बार संपादित हो चुकी थी। अब कामसूत्र के।
 
'''सात भाग''' हो चुके थे। इसलिए '''वात्स्यायन''' ने पाठकों की सहूलियत के लिए '''सातों किताबों''' को एकत्रित कर, सभी ग्रंथों की प्रमुख बातें और बिन्दु एक ही किताब में जमा कर ली थी। इस किताब को हम आज ‘'''कामसूत्र'''’ के नाम से जानते हैं।
 
'''काम/सेक्स औऱ काम(कर्म/Work) में फर्क।'''
 
सनातन धर्म या अन्य धर्मों में '''कर्म और सेक्स''' दोनों को “'''काम'''” कहा गया है।
 
'''कर्म''' व '''काम'''(सेक्स) को '''चारों पुरुषार्थों''' में तीसरा स्थान प्राप्त है।
 
'''कामशास्त्र के अनुसार''' : – –
 
'''©■''' इन्द्रियों की स्वविषयो की तरफ प्रवृत्ति, ©■ मैथुन की इच्छा, ©■ कामवासना, ©■ चंद्रमा की कला, ©■ कामातुर होना, ©■ काम-ताप, ©■ काम-ज्वर, ©■ कामान्ध, ©■ ब्याह-शादी, ©■ कन्दर्प, ©■ अनंग, ©■ कामइच्छा
 
'''क्या कहते हैं — धर्मग्रंथ'''
 
सेक्स (काम) के इतिहास में प्राचीनकाल से ही
 
भारत की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही है क्योंकि भारत में ही सबसे पहले कामग्रन्थ “कामसूत्र” की रचना हुई जिसमें संभोग को धर्म एवं विज्ञान के रूप में देखा गया। लाखों वर्षों से “कामकला” साहित्य के माध्यम से '''यौन शिक्षा'''('''सेक्स एजुकेशन''') का अग्रदूत ('''गुरु''') भारत ही रहा है। इस ग्रंथ में बताया है कि काम/सेक्स भी एक कला है।
 
'''कामसूत्र'''” का नाम सुनते ही लोग सचेत हो जाते हैं, इस शब्द का उपयोग करने से हर कोई कतराता है। ना केवल इस ग्रंथ को, बल्कि '''कामसूत्र''' '''शब्द को ही बुरा''' माना गया है। जबकि हकीकत यह है कि किसी भी अन्य हिन्दू ग्रंथ की तरह ‘कामसूत्र’ भी महज एक ग्रंथ है जिसमें जनमानस के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की गई हैं।
 
'''काम (सेक्स) है क्या बला'''–
 
इस लेख में काम (सेक्स) के बारे में काम की बातें जानना जरूरी है।
 
'''सुलझाएं : “ग्रंथो की ग्रन्थियां'''”
 
काम के लिये संस्कृत भाषा में बहुत कुछ लिख गया। कुछ अंश प्रस्तुत हैं :
 
'''शतायुर्वै पुरुषो विभज्य कालम्'''
 
'''अन्योन्य अनुबद्धं परस्परस्य'''
 
'''अनुपघातकं त्रिवर्गं सेवेत।'''
 
(कामसूत्र 1.2.1)
 
'''बाल्ये विद्याग्रहणादीन् अर्थान्'''
 
(कामसूत्र 1.2.2)
 
'''कामं च यौवने''' (1.2.3)
 
'''स्थाविरे धर्मं मोक्षं च''' (1.2.4)
 
संस्कृत के पुराणोक्त इन श्लोकों का सार अर्थ यही है कि
 
पुरुष को सौ वर्ष की आयु को तीन भागों
 
में बाँटकर '''●''' बाल्यकाल (बचपन) में विद्या ,
 
'''●''' युवावस्था में अर्थ (धन-सम्पदा) का अर्जन अर्थात कमाई या संग्रह करना चाहिये,
 
'''● काम (सेक्स''') की पूर्ति या तृप्ति यौवनकाल में तथा
 
● '''बुढ़ापे''' में धर्म और मोक्ष
 
का अर्जन करना चाहिये।
 
'''कामसूत्र’ की कुछ अनजानी बातें'''
 
1 – सनातन धर्म में कई ऐसे शास्त्रीय ग्रंथ, पुराण और भाष्य हैं, जिनमें मनुष्य के अच्छे भविष्य और जीवन सुधार हेतु अदभुत ज्ञान भरा पड़ा है। इन ग्रंथो के अनुसार शास्त्रीय बातों का ध्यान रखकर मनुष्य सफल जीवन जी सकता है। कामसूत्र में भी ऐसी ही बातें लिखी हुई हैं, जो मनुष्य और समाज के लिए बहुत फायदेमंद है। समाज ने भले ही इसे ‘हौवा’ बना दिया हो, किंतु सच्चाई इससे परे है। जबकि जीवन में ‘'''काम'''’ यानी '''संभोग''' का होना भी आवश्यक माना गया है। ।
 
'''काम सेक्स या सम्भोग की प्रसिद्ध''' रचनाएं : – ‘कामसूत्र’ पर वीरभद्र कृत ‘कंदर्पचूड़ामणि’, भास्करनृसिंह कृत ‘कामसूत्र-टीका’ तथा यशोधर कृत ‘कंदर्पचूड़ामणि’ नामक टीकाएं उपलब्ध हैं। इसी प्रकार कामग्रन्थ-शास्त्रों में आगे लिखा है कि
 
'''एषां समवाये पूर्वः पूर्वो गरीयान'''
 
(कामसूत्र, 1.2.14)
 
'''अर्थश्च राज्ञः/ तन्मूलत्वाल्'''
 
'''लोकयात्रायाः/ वेश्यायाश्'''
 
'''चैति त्रिवर्गप्रतिपत्तिः'''
 
(कामसूत्र 1.2.15)
 
अर्थात — सामान्य लोगों के लिये '''धर्म''', अर्थ से '''श्रेष्ठ'''है ; अर्थ, (धन) '''काम से श्रेष्ठ''' है। लेकिन राजा को अर्थ अर्थात धन को प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि अर्थ ही लोकयात्रा, प्रजा एवं जीवन का आधार है।
 
'''काम शास्त्र के ज्ञाता''' –
 
आचार्य “''ज्योतिरीश्वर''“
 
'''कृत पंचसायक ग्रन्थ''' :- –
 
मिथिला नरेश हरिसिंहदेव के सभापण्डित कविशेखर “'''ज्योतिरीश्वर'''” ने प्राचीन कामशास्त्रीय ग्रंथों के आधार को ग्रहण कर इस ग्रंथ का प्रणयन किया। यानि कामशास्त्र के इस अदभुत ग्रन्थ का सम्पादन किया इस '''396 श्लोकों''' एवं 7 सायकरूप अध्यायों में निबद्ध यह ग्रन्थ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है।
 
==== '''पद्मश्रीज्ञान कृत नागरसर्वस्व:-''' ====
'''काम-कला मर्मज्ञ ब्राह्मण''' विद्वान '''वासुदेव''' से संप्रेरित होकर बौद्धभिक्षु पद्मश्रीज्ञान इस ग्रन्थ का '''प्रणयन(पूरा''') किया था। यह '''ग्रन्थ 313''' '''श्लोकों''' एवं '''38 परिच्छेदों''' (परिच्छेदों यानि किसी प्राचीन ग्रन्थ का सरल भाषा में अलग अलग विभाजन, बंटवारा करना) में निबद्ध है। यह ग्रन्थ “'''दामोदर गुप्त'''” के “'''कुट्टनीमत'''” का निर्देश करता है और “'''नाटकलक्षणरत्नकोश'''” एवं “'''शार्ंगधरपद्धति'''” में स्वयंनिर्दिष्ट है। इसलिए इसका समय दशम शती का अंत में स्वीकृत है।
 
'''जयदेव कृत रतिमंजरी''' :-
 
'''60 श्लोकों''' में निबद्ध अपने लघुकाय रूप में निर्मित यह ग्रंथ आलोचकों में पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। यह ग्रन्थ '''डॉ॰ संकर्षण त्रिपाठी''' द्वारा हिन्दी भाष्य सहित चौखंबा विद्याभवन, वाराणसी से प्रकाशित है।
 
'''कामशास्त्र का सागर — कोकशास्त्र'''
 
आचार्य कोक्कोक कृत रतिरहस्य :-
 
यह ग्रन्थ कामसूत्र के पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध ग्रन्थ है। परम्परा '''काम''' (सेक्स) विशेषज्ञ “'''कोक्कोक'''” को कश्मीरी स्वीकारती है।
 
कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्ररुक्तक, (अर्थ की पूरी सूची बनाना) भार्याधिकारिक, (पत्नी रखने का अधिकार) पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार पर '''पारिभद्र के पौत्र''' तथा '''तेजोक''' के '''पुत्र कोक्कोक''' द्वारा रचित इस ग्रन्थ में '''555 श्लोकों''' एवं 15 परिच्छेदों में निबद्ध है। इनके समय के बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि '''कोक्कोक''' नामक यह विद्वान सप्तम से दशम शतक के मध्य हुए थे।
 
'''कोकशास्त्र नामक''' यह कृति जनमानस में इतनी प्रसिद्ध हुई सर्वसाधारण '''कामशास्त्र''' के पर्याय के रूप में “कोकशास्त्र” नाम प्रख्यात हो गया।
 
'''कवि कल्याणमल का काम (सेक्स''')
 
कल्याणमल्ल कृत '''अनंगरंग''':- मुस्लिम शासक लोदीवंशावतंश अहमदखान के पुत्र लाडखान के कुतूहलार्थ भूपमुनि के रूप में प्रसिद्ध कलाविदग्ध कल्याणमल्ल ने इस ग्रन्थ का प्रणयन किया था। यह ग्रन्थ '''420 श्लोकों''' एवं '''10 स्थलरूप'''अध्यायों में निबद्ध है।
 
'''आचार्य कोक्कोक''' द्वारा संस्कृत में रचित “'''रतिरहस्य'''” कामसूत्रके पश्चात दूसरा ख्यातिलब्ध कामशास्त्रीय ग्रन्थ है।
 
परम्परा कोक्कोक को कश्मीरीय विद्वान स्वीकारती है। कामसूत्र के सांप्रयोगिक, कन्यासंप्रयु्क्तक, भार्याधिकारिक, पारदारिक एवं औपनिषदिक अधिकरणों के आधार ग्रहण करते हुये पण्डित पारिभद्र के पौत्र तथा पण्डित तेजोक के पुत्र “आचार्य कोक्कोक” द्वारा रचित यह ग्रन्थ '''555 श्लोकों''' एवं 15 '''परिच्छेदों''' में निबद्ध है। आचार्य कोक्कोक ने इस ग्रन्थ की रचना किसी '''वैन्यदत्त''' के मनोविनोदार्थ अर्थात हँसी-मजाक के लिए की थी।
 
'''यशोधर पण्डित''' (11वीं-12वीं शताब्दी)[1] जयपुर (राजस्थान) के राजा जय सिंह प्रथम के दरबार के प्रख्यात विद्वान थे जिन्होने कामसूत्र की ‘'''जयमंगला'''’ नामक टीका ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होने वात्स्यायन द्वारा उल्लिखित चित्रकर्म के छः अंगों (षडंग) की विस्तृत व्याख्या की है।
 
''रूपभेदः प्रमाणानि भावलावण्ययोजनम।''
 
''सादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्रं षडंगकम्॥''
 
'''वात्स्यायन''' विरचित ‘कामसूत्र’ में वर्णित उपरोक्त श्लोक में आलेख्य (अर्थात चित्रकर्म) के छह अंग बताये गये हैं, जिन्हें आगे लेख में षडंग कहा गया है।
 
'''रूपभेद,'''
 
'''प्रमाण,'''
 
'''भाव,'''
 
'''लावण्ययोजना,'''
 
'''सादृश्य और'''
 
'''वर्णिकाभंग।'''
 
किसी लेख में षडंग के बारे में विस्तार से बताया जाएगा।
 
‘'''जयमंगला'''’ नामक ग्रंथ में यशोधर पण्डित ने चित्रकर्म के षडंग की विस्तृत विवेचना की है।
 
प्राचीन भारतीय चित्रकला में यह षडंग हमेशा ही महत्वपूर्ण और सर्वमान्य रहा है। आधुनिक चित्रकला पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने के वावजूद भी यह महत्वहीन नहीं हो सका। क्योंकि षडंग वास्तव में चित्र के सौन्दर्य का शाश्वत आधार है। इसलिए चित्रकला का सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन के लिए इसकी जानकारी आवश्यक है।
 
==== '''क्या है अष्टांग योग? —''' ====
महर्षि पतंजलि ने योग को ‘चित्त की वृत्तियों के निरोध’ (योगः चित्तवृत्तिनिरोधः) के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने ‘योगसूत्र’ नाम से योगसूत्रों का एक संकलन किया है, जिसमें उन्होंने पूर्ण कल्याण तथा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों वाले योग का एक मार्ग विस्तार से बताया है। अष्टांग योग (आठ अंगों वाला योग), को आठ अलग-अलग चरणों वाला मार्ग नहीं समझना चाहिए; यह आठ आयामों वाला मार्ग है जिसमें आठों आयामों का अभ्यास एक साथ किया जाता है। योग के ये आठ अंग हैं:
 
1) '''यम''', 2) '''नियम''', 3) '''आसन''', 4) '''प्राणायाम''', 5) '''प्रत्याहार''', 6) '''धारणा''' 7) '''ध्यान''' 8) समाधि
 
==== '''सम्भोग के योग को समझें –'''– ====
सम्भोग दो शब्दों से मिलकर बनता है।
 
'''सम+भोग''' । यह स्त्री और पुरुष दोनों का '''शारीरिक मिलन''' है।
 
सहवास के द्वारा दोनों को सम यानि बराबर सुख की प्राप्ति होती है इसलिए इसे शास्त्रों में सम्भोग कहा गया है। सहवास, सेक्स इसके अन्य नाम भी हैं।
 
==== '''क्या है सम्भोग''' — ====
सम्भोग (अंग्रेजी: Sexual intercourse) या सेक्सुअल इन्टरकोर्स) सहवास, मैथुन या सेक्स की उस क्रिया को कहते हैं जिसमे '''नर का लिंग मादा की योनि''' में प्रवेश करता हैं। सम्पूर्ण जीव-जगत इसके बिना '''अपूर्ण''' है। सम्भोग अलग अलग जीवित प्रजातियों के हिसाब से अलग अलग प्रकार से हो सकता हैं।
 
इन ग्रंथों में सम्भोग को योनि मैथुन, काम-क्रीड़ा, रति-क्रीड़ा आदि कहा गया है।
 
==== '''क्यों जरूरी है — काम (सेक्स)''' ====
सृष्टि में आदि काल से सम्भोग का मुख्य काम वंश को आगे चलाना व बच्चे पैदा करना है। जहाँ कई जानवर व पक्षी सिर्फ अपने बच्चे पैदा करने के लिए उपयुक्त मौसम में ही सम्भोग करते हैं, वहीं '''इंसानों में सम्भोग''' का कोई समय निश्चित नहीं है।
 
इंसानों में सम्भोग बिना वजह के भी हो सकता हैं। सम्भोग इंसानों में '''सुख प्राप्ति''' या प्यार या '''जज्बात''' दिखाने का भी एक रूप हैं।
 
सम्भोग अथवा मैथुन से पूर्व की क्रिया, जिसे अंग्रेजी में '''फ़ोरप्ले''' कहते हैं, के दौरान हर प्राणी के शरीर से कुछ विशेष प्रकार की गन्ध (फ़ीरोमंस) उत्सर्जित होती है जो '''विषमलिंगी''' को मैथुन के लिये अभिप्रेरित व उत्तेजित करती है।
 
कुछ प्राणियों में यह '''मौसम के अनुसार''' भी पाया जाता है। वस्तुत: फ़ोर प्ले से लेकर '''चरमोत्कर्ष की प्राप्ति''' तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया ही '''सम्भोग''' कहलाती है बशर्ते कि लिंग व्यवहार का यह कार्य '''विषमलिंगियों''' (स्त्री-पुरुषों) के बीच हो रहा हो।
 
कई ऐसे प्रकार के सम्भोग भी हैं जिसमें लिंग का उपयोग नर और मादा के बीच नहीं होता जैसे '''मुख मैथुन''' अथवा '''गुदा मैथुन''' उन्हें मैथुन तो कहा जा सकता है परन्तु सम्भोग कदापि नहीं।
 
उपरोक्त प्रकार के '''मैथुन अस्वाभाविक''' अथवा अप्राकृतिक व्यवहार के अन्तर्गत आते हैं या फिर सम्भोग के साधनों के अभाव में उन्हें केवल मनुष्य की स्वाभाविक '''आत्मतुष्टि''' का उपाय ही कहा जा सकता है, सम्भोग नहीं।
 
==== ‘'''आनंद’ व ‘संतुष्टि’ में फर्क है''' ====
''किंसले इंस्टिट्यूट'' के शोध में – पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी यह माना कि उन्‍हें '''कंडोम''' के बिना यौन संबंध ज्‍यादा अच्‍छा लगता है। पर महिलाओं ने यह भी माना कि दरअसल '''संभोग के दौरान''' कंडोम का इस्‍तेमाल किए जाने पर उन्‍हें ज्‍यादा सुकून मिलता है. यह '''सुकून सुरक्षा''' (प्रोटेक्‍शन) को लेकर होता है।
 
सर्वे में शामिल महिलाओं ने कहा कि कंडोम यौन रोगों से बचाव का यह कारगर तरीका है.
 
निर्देश है कि सेक्स के मामले कभी जल्दबाजी नहीं करना चाहिए। लम्बे समय तक सम्भोग की इच्छा हो, तो प्राकुतिक चिकित्सा या आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करना हितकर होता है।
 
'''शुद्ध शिलाजीत''' , तालमखाना, सहस्त्रवीर्या, वंग भस्म, स्वर्ण भस्म, युक्त ओषधियाँ उत्प्रेरक होती हैं जो हमेशा सेक्स की इच्छा बनाये रखती हैं
 
'''ऐसा ही एक योग है,'''
 
'''बी फेराल गोल्ड मा'''ल्ट एवं कैप्सूल,
 
जो आयुर्वेद की असरदार जड़ीबूटियों से निर्मित है। इसका नियमित उपयोग करने से सेक्स की इच्छा दिनोदिन बढ़ती जाती है। शरीर में चुस्ती फुर्ती रहती है।
 
सेक्स के प्रति यह हमेशा शक्ति व ऊर्जा में बनाये रखता है।
 
सेक्स अच्छा है या बुरा
 
'''कामसूत्र महर्षि वात्स्यायन''' द्वारा रचित भारत का एक प्राचीन कामशास्त्र (en:Sexology) ग्रंथ है। कामसूत्र को उसके विभिन्न काम/ सेक्स आसनों के लिए ही जाना जाता है। महर्षि वात्स्यायन का कामसूत्र विश्व की प्रथम यौन संहिता है जिसमें यौन प्रेम के ''मनोशारीरिक सिद्धान्तों'' तथा प्रयोग की विस्तृत व्याख्या एवं विवेचना की गई है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य के अर्थशास्त्र का है, काम (सेक्स) के क्षेत्र में वही स्थान कामसूत्र का है।
 
अधिकृत प्रमाण के अभाव में महर्षि कौटिल्य का जन्मकाल निर्धारण नहीं हो पाया है। परन्तु अनेक विद्वानों तथा शोधकर्ताओं के अनुसार महर्षि ने अपने विश्वविख्यात ग्रन्थ कामसूत्र की रचना ईसा की तृतीय शताब्दी के मध्य में की होगी। तदनुसार
 
विगत सत्रह शताब्दियों से कामसूत्र का वर्चस्व समस्त संसार में छाया रहा है और आज भी कायम है। संसार की हर भाषा में इस ग्रन्थ का अनुवाद हो चुका है !
 
इसके अनेक भाष्य एवं संस्करण भी प्रकाशित हो चुके हैं, वैसे इस ग्रन्थ के ''जयमंगला भाष्य'' को ही प्रामाणिक माना गया है। कोई दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध ''भाषाविद सर रिचर्ड एफ़ बर्टन'' (Sir Richard F. Burton) ने जब ब्रिटेन में इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करवाया तो चारों ओर तहलका मच गया ओर इसकी एक-एक प्रति 100 से 150 पौंड तक में बिकी। विख्यात कामशास्त्र ‘'''सुगन्धित बाग'''’ (Perfumed Garden) पर भी इस ग्रन्थ की अमिट छाप है।
 
महर्षि के कामसूत्र ने न केवल '''दाम्पत्य जीवन''' का श्रृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी सम्पदित किया है। राजस्थान की दुर्लभ यौन चित्रकारी तथा '''खजुराहो, कोणार्क''' आदि की जीवन्त शिल्पकला भी कामसूत्र से अनुप्राणित (प्रेरित या Animated) है। रीतिकालीन कवियों ने कामसूत्र की मनोहारी झांकियां प्रस्तुत की हैं, तो “'''गीत गोविन्द'''” के गायक '''जयदेव''' ने अपनी लघु पुस्तिका ‘'''रतिमंजरी'''’ में कामसूत्र का सार संक्षेप प्रस्तुत कर अपने काव्य कौशल का अद्भुत परिचय दिया है।
 
रचना की दृष्टि से कामसूत्र कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ के समान है—चुस्त, गम्भीर, अल्पकाय होने पर भी विपुल अर्थ से मण्डित। दोनों की शैली समान ही है— सूत्रात्मक। रचना के काल में भले ही अंतर है,
 
'''अर्थशास्त्र''' मौर्यकाल का और '''कामूसूत्र गुप्तकाल''' का है।
 
==== '''आयुर्वेद की काम शक्तिवर्द्धक ओषधियाँ''' ====
शुक्राणु, काम शक्ति वृद्धि एवं वीर्य स्तंभन हेतु एक अद्भुत अमृतम योग श्री काशी संस्कृत “ग्रंथमाला” 161 के “वनोषधि-चंद्रोदय” भाग-2 (''AN ENCYCLOPAEDIA OF।''
 
''INDIAN BOTANIES & HERBS)'' लेखक- ''श्री चन्द्रराज भण्डार'' ‘विशारद’प्रकाशक- चौखम्बा संस्कृत संस्थानवाराणसी-221001 (भारत)
 
एवं दूसरी पुस्तक
 
“'''औषधीय पादपों का कृषिकरण'''“
 
लेखक- ''डॉ.गुरपाल सिंह जरयाल। डॉ.मायाराम उनियाल।''
 
प्रकाशक- ''इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रो बिसिनेस प्रोफेसनल'' इन किताबों में सेक्स संतुष्टि के बहुत ही उम्दा तुरन्त असरदायक हर्बल योगों का वर्णन है। '''सहवास के सरताज''' बनाने के लिए एकप्राकृतिक फार्मूला घर में बनाकर उपयोग कर सकते हैं-
 
√ 100 ग्राम धुली उड़द की दाल
 
√ 200 ml प्याज के रस में डालकर 24 घंटे तक फुलाएं। फिर, दाल को सुखाकर रख लें। प्रतिदिन '''15 से 20 ग्राम दाल''' दूध की खीर बनाकर सुबह खाली पेट खाएं दुपहर में खाने से एक घंटे पूर्व
 
◆ 3 ग्राम ईसबगोल का पाउडर
 
◆ 1 ग्राम सालम मिश्री
 
◆ 1 ग्राम पिसी मुलेठी
 
◆ 1 ग्राम शतावर
 
◆ 1 ग्राम अश्वगंधा
 
सबकी मिलाकर खावें फिर, 100 या 200 ग्राम गर्म दूध ऊपर से पियें। रात्रि में सोते समयखाने से 1-2 घण्टे पहले
 
'''बी.फेराल कैप्सूल-'''1
 
'''बी.फेराल gold माल्ट।'''
 
2 चम्मच गर्म दूध के साथ 15 दिन तक सेवन करें।
 
नपुंसकता से निराश व नर्वस हो चुके पुरुषों के लिए यह बेहद लाभकारी ऒर चमत्कारी दवा है। यह अद्भुत योग
 
'''चालीस के बाद शरीर को खाद''' देकर '''पचास''' की उम्र में भी '''खल्लास''' नहीं होने देता।
 
'''शुक्राणुओं की वृद्धि करता है'''
 
'''बी फेराल गोल्ड माल्ट'''
 
बी फेराल गोल्ड माल्ट
 
परम् प्रसन्नता देने वाला प्रकृति प्रदत्त यह शुद्ध '''हर्बल बाजीकरण''' योग है। कामातुर रमणियों, स्त्रियों
 
==== ‘ में काम की कामना शांत करता है। ====
'''बी फेराल माल्ट एवं कैप्सूल।'''
 
“नंपुसकता का नाश” करता है।
 
वीर्य को गाढ़ा करने एवं सहवास के समय में वृद्धि करने वाले अनेकों प्रामाणिक प्रयोगों निर्मित है।
 
यह इतना उपयोगी है कि –
 
– '''साठ के बाद खाट और'''
 
'''सत्तर के पश्चात बिस्तर'''
 
पर नहीं पड़ना पड़ता। यह देशी दवा अनेकों रोग मिटाकर जीवनिय शक्ति में बढोत्तरी कर जीव व '''जीवन का कायाकल्प''' कर देती हैं।
 
©■ '''मदन''' आदि काम के अर्थ हैं। यहां “'''मदन” का मतलब''' है ….जो व्यक्ति'''कामपीड़ित''' , कामातुर, कामारि,
 
'''कामायनी स्त्री का मान-मर्दन''' कर उसे संतुष्ट कर दे। पूरी तरह तृप्ति प्रदान करे। जो '''नांरी के अंग-अंग''' में ,'''रग-रग''' में अपना '''रंग जमा''' दे।
 
'''आयुर्वेद की प्राचीन परम्परा'''
 
भारत की लाखों वर्ष पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति '''वेदों के अनुसार''' दुनिया में पहली बार
 
'''माल्ट (अवलेह''') की एक विशाल रेंज लेकर आये हैं
 
अमृतम द्वारा सभी रोगों के लिए अलग-अलग
 
माल्ट का निर्माण
 
★ आँवला मुरब्बा, ★ सेव मुरब्बा,
 
★हरड़ हरीतकी मुरब्बा
 
★ पपीता, ★ करोंदा, मुरब्बा
 
★ गाजर, ★ बेल मुरब्बा,
 
★गुलकन्द, ★ मेवा-मसाले
 
■जड़ी-बूटियों के काढ़े <'''रसोषधियों''' आदि के मिश्रण से परपम्परागत प्राचीन पद्धति से आधुनिक अनुभवी चिकित्सकों की देख-रेख में निर्मित किये जाते हैं।
 
'''कैसे मिले बीमारियों से मुक्ति'''
 
'''असाध्य रोग''' केवल प्राकृतिक चिकित्सा औऱ आयुवेदिक ओषधियों से ही ठीक हो पाते हैं, क्योंकि इनमें सबका मङ्गल व भला करने की शक्ति समाहित होती है।
 
आयुर्वेद के महान ग्रन्थ “'''योगरत्नाकर'''” के '''श्लोक 15'''में लिखा गया कि –
 
''पुण्यैश्च भेषजै: शान्तास्ते ज्ञेया: कर्म दोषजा:।''
 
''विज्ञेया दोषजास्तवन्ये केवल वाsथ संकरा:। ।''
 
''ओषधम मंगलं मन्त्रो…… …….. सिध्यन्ति गतायुषि। ।''
 
आयुर्वेद के प्राचीन शास्त्र
 
“'''माधव निदान'''“के अनुसार
 
'''तीन प्रकार के दोष''' से तन रोगों का पिटारा बन जाता है।
 
1- “'''कर्मदोषज व्याधि'''” प्रकृति द्वारा निर्धारित नियमों के विपरीत चलने से यह दोष उत्पन्न होता है। जैसे-सुबह उठते ही जल न पीना, रात में दही खाना, समय पर भोजन न करना,
 
व्यायाम-कसरत न करना आदि।
 
2- '''दोषज व्याधि'''– पेट साफ न होना, बार-बार कब्ज होना, भूख न लगना, खून की कमी, आंव, अम्लपित्त (एसिडिटी), पाचन क्रिया की गड़बड़ी, हिचकी आदि
 
3-'''मिश्रित रोग'''– जो रोग अचानक हो, बार-बार हों,
 
''एक के बाद एक रोग हों'' । विभिन्न चिकित्सा, अन्यान्य विविध क्रियायों द्वारा शान्त न हों-ठीक न हों, उन्हें मिश्रित रोग जानना चाहिए।
 
आयुर्वेद दवाएँ भी उनके लिए ही साध्य हैं, जिनकी आयु शेष है। अन्य या गतायुष के लिए असाध्य हैं।
 
''एक श्लोक में उल्लेख है कि अपने इष्ट की प्रार्थना करते रहने से अनेक रोग शान्त हो सकते हैं।''
 
आगे “'''अथदूत परीक्षा'''” के श्लोक 19 में अनेक वेद्यों (प्राचीन चिकित्सकों) को आयुर्वेद का ज्ञान देते हुए बताया गया कि-
 
'''मूर्खश्चोरस्तथा…..भवति पापभाक। ।'''
 
अर्थात- शरीर में कोई न कोई रोग हमेशा बने रहते हैं।
 
''लापरवाही व मूर्खता (अज्ञानता'') के कारण अनेक ज्ञात-अज्ञात विकार बाधाएं खड़ी करते हैं।
 
अतः हमें, हमेशा रोगों से अपनी रक्षा करना चाहिये।
 
'''शरीर में प्रोटीन, कैल्शियम,'''
 
खनिज पदार्थों की कमी तथा जीवनीय शक्ति का ह्रास होने से रोग सदा सताते हैं।
 
'''क्या है अमृतम-'''
 
दुनिया के सभी धर्मग्रंथों ने प्रकृति से उत्पन्न पदार्थों, वस्तुओं, नियमों तथा प्राकृतिक चिकित्सा व यूनानी, ''आयुर्वेदिक ओषधियों'' को ही अमृत माना है।
 
'''अमृतम फार्मास्युटिकल्स''', ग्वालियर, मध्यप्रदेश द्वारा आयुर्वेद के महान ऋषियों जैसे
 
~ '''''आचार्य चरक,'''''
 
'''''~ ऋषि विश्वाचार्य,'''''
 
'''''~ आयुर्वेदाचार्य नारायण ऋषि''''',
 
~ '''बागभट्ट''' एवं ~ '''भास्कराचार्य''' आदि द्वारा आयुर्वेद के लिखे, रचित प्राचीन ग्रंथों यथा-
 
【】भावप्रकाश, 【】अर्क प्रकाश,
 
【】मंत्रमहोदधि, 【】भृगु सहिंता,
 
【】रावण सहिंता, 【】रसतंत्रसार,
 
【】सिद्धयोग संग्रह, 【】रस समुच्चय,
 
【】आयुर्वेद निघंटु 【】भेषजयरत्नावली
 
आदि शास्त्रों से फार्मूले लेकर 50 प्रकार की अमृतम हर्बल ओषधियाँ एवं 45 तरह के माल्ट बनाये।
 
'''आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा'''
 
आज से वर्षो पूर्व '''वैद्यों''' द्वारा '''अवलेह (माल्ट)''' बनाकर रोगों की चिकित्सा की जाती थी। आयुर्वेद की ये दवाएँ, अवलेह बनाने की प्रक्रिया बहुत जटिल व खर्चीली थी। प्राचीनकाल में ये “'''अवलेह'''” के नाम से जाने जाते थे। वर्तमान में इन्हें “माल्ट” कहते हैं। ■ द्राक्षाअवलेह, ■ दाडिमावलेह,
 
■ कुष्मांड अवलेह, ■ बादाम पाक,
 
■ च्यवनप्राश अवलेह ■ कुटजावलेह
 
■ अष्टाङ्गावलेह ■ कोंच पाक
 
■ माजून मुलाइयन ■ ब्राह्मी रसायन
 
आदि दवाओं की जानकारी भारतीय आयुर्वेद '''भाष्यों''' में उपलब्ध है। इन्हें '''शास्त्रोक्त''' '''ओषधियाँ''' कहा जाता है।
 
वर्तमान में कड़ी '''प्रतिस्पर्द्धा''', उत्पाद की लागत बढ़ने तथा '''इनकी मांग कम''' होने के कारण इन अवलेह को अधिकांश हर्बल कम्पनियों ने बनाना कम कर दिया, अब आयुर्वेद की कुछ ही कंपनियां इनका निर्माण करती हैं, किन्तु महंगी लागत व बिक्री घटने के कारण अपने उत्पाद को इतना असरकारक नहीं बना पा रही हैं।
 
'''केवल पुरुषों के लिए-'''
 
'''बी.फेराल गोल्ड माल्ट''' एवं '''कैप्सूल'''
 
'''B. FERAL GOLD MALT/CAPSULE'''
 
मादक पदार्थ रहित कामोद्दीपक शुद्ध आयुर्वेदिक पदार्थो,
 
जड़ीबूटियों तथा प्राकृतिक
 
■ प्रोटीन,
 
■■ मिनरल्स, विटामिन युक्त
 
ओषधियों से बनाया गया है।
 
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या '''हानिकारक दुष्प्रभाव''' नहीं है। बल्कि साइड बेनिफिट बहुत ज्यादा हैं। यह विशुद्ध हर्बल दवा है।
 
'''बी.फेराल गोल्ड माल्ट/कैप्सूल'''
 
नशीले पदार्थो से मुक्त एक ऐसा अद्वितीय हर्बल योग है जो सम्पूर्ण पुरुषत्व, ओज औऱ शक्ति-स्फूर्ति प्रदान कर वैवाहिक जीवन को आनंदमय व प्रफुल्लित बनाता है।
 
तीन महीने नियमित सेवन करें[[File:Paul Avril - Les Sonnetts Luxurieux (1892) de Pietro Aretino, 2.jpg|thumb|220px|alt=Sexual Intercourse|सेक्स के सभसे आम रूप, [[मिशनरी पोजीशन]] जेह में मर्द ऊपर रहे ला]]
 
 
'''सेक्स''' ({{lang-sa|<small>संभोग</small>}}) अपना [[मनुष्य में सेक्स संबंधी क्रिया|ब्यापक अरथ]] में नर आ मादा के बीच कामुक (सेक्सुसल) आनंद आ [[मजा]] खाती कइल जाए वाला सगरी काम के कहल जाला जेह में, चुंबन, स्पर्श, कामुक तरीका से ताकल, अकवारी मे भरल इत्यादि सगरी क्रिया सामिल कइल जाला जबकि, खास छोट अरथ में, ई मर्द द्वारा औरत के [[जञनी]] में आपन [[शिशन]] प्रवेश कराके धक्का देवे के क्रिया हवे जेकरा शारीरिक आ मानसिक मजा आ आनंद खाती, लइका जनमावे ला, चाहे फिन दुनों मकसद से कइल जाला। एकरा के अंगरेजी में ''सेक्सुअल इंटरकोर्स'' भा संस्कृत में ''मैथुन'' कहल जाला। ऊपर बतावल आम तरीका के जञनी संबंधी सेक्स कहल जाला; एकरे अलावा पाछे से मलदुआर में लिंग घुसा के (गुदा मैथुन), मुँह में घुसा के (मुख मैथुन), अँगुरी से, या कौनों अन्य चीज (जइसे कि डिलडो घुसा के) से कइल सेक्स भी सामिल बा। एह क्रिया में शारीरिक जुड़ाव महसूस कइल जाला आ ई खाली शारीरिक सुख खाती, मानसिक संतुष्टी खाती कइल जा सके ला या फिर सेक्स से दू लोग में आपसी भावनात्मक लगाव भी बढ़ सके ला।
 
"https://bh.wikipedia.org/wiki/संभोग" से लिहल गइल