भोजपुरी साहित्य: रिवीजन सभ के बीचा में अंतर

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भोजपुरी सहित्य के सुरुआत सातवीं सदी से मानल जाला।{{sfn|तिवारी|2014|pp=48}} उद्धरण दिहल जाला की [[हर्षवर्धन]] (सन् 606 - 648 ई) के समय के संस्कृत कवि [[बाणभट्ट]] अपन बेर के दू गो कबी लोगन के नाँव गिनवले बाड़ें जे लोग संस्कृत आ प्राकृत दुनु के छोड़ के अपन देहाती बोली में रचना करे। ई कबी लोग बाटे [[ईसानचंद्र]] आ [[बेनीभारत]]। ईसानचंद्र बिहार में सोन नदी के पच्छिमी आरी के पिअरो गाँव (प्रीतिकूट) के रहे वाला रहलें।
 
बाद के साहित्य के सिद्ध साहित्य याभा संत साहित्य कहल जाला। [[पूरन भगत]] (नवीं सदी) के गीत में भोजपुरी के झलक लउके ला।{{sfn|तिवारी|2014|pp=49|ps=<br>"जीवन उपदेस भाखीलाँ आदम्हे बिसाल<br>दोष बुद्ध्या तृषा बिसाराला।<br>नहीं मानै सोक घर धरम सुमिरला<br>अम्हे भइला सचेत के तम्ह कहारे बोले पूछीला।"<br>--'प्राण संकली' से।}} [[नाथ सम्प्रदाय]] के गुरु [[गोरखनाथ]] के रचना में भोजपुरी क्रिया सबदन के इस्तेमाल बहुतायत से बाटे।{{sfn|तिवारी|2014|pp=56}}
 
1100 से 1400 ई के काल के लोकगाथा काल के नाँव दिहल गइल बाटे। एही बेर के कुछो बिद्वान "चारण काल" आ "पँवारा काल" के नाँव भी दिहले बाड़ें।{{sfn|तिवारी|2014|pp=62}}