सती प्रथा भारत में एगो रिवाज रहे जेवना में मरद की मू गइले पर मेहरारुओ ओहि की चिता में जरि के आपन जिनगी खतम क ले। ई प्रथा अंग्रेजन द्वारा सन् 1829 में गैर-कानूनी घोषित करे से पहिले चलन में रहे। हालांकि आजादी की बाद ले अइसन घटना होखले के कुछ उदाहरण मिलेला।

शब्द संपादन करीं

सती स्त्री लिंग शब्द ह एह शब्द के पुलिंग शब्द ह सत, जवन की हिंदी के "सत्य" शब्द के अपभ्रंश रूप ह भोजपुरी में "सत्य" के साँच कहल जाला। जइसे "साँच के आंच ना होला"।

प्रथा या रिवाज संपादन करीं

जब भोजपुरी में सती शब्द के प्रयोग कइल जाला तब वोकर मतलब होला "सत के आचरन करे वाली मेहरारू " मेहरारू के हक़ में वोकर सत ह वोकर मर्दाना कान्हे की जब कवनो कन्या के कन्या दान कइल जाला तब उ महतारी बाप खाती परया हो के दान प्राप्त मरद के अर्धांग्नी बन जाले। जब वोकर आधा अंग कवनो भी कारन ने नस्ट हो गइल तब ओकरा सत के रक्षा खाती समाज ओकरा मर्दाना के लहास के संगे ओकरो के सद्गति प्रदान कर देत रहन एह प्रकार से उ सत खाती अपना देंही के तिआग के सती हो जात रहली हा।

प्रथा क अंत संपादन करीं

बंगाल के प्रसिद्द समाज सुधारक राजा राममोहन राय क योगदान सबसे ढेर गिनल जाला। अंग्रेज सरकार 1829 में एह प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिहलस। हालांकि आजाद भारत में भी सती होखले के कुछ घटना प्रकाश में आइल बा [1]बाकि अब ई पूरा तरीका से एगो गैर कानूनी काम मानल जाला।

एकरा बावजूद अभी हाल में ले अइसन घटना के छिटपुट खबर मिलल बाटे।[2]

इहो देखल जाय संपादन करीं

संदर्भ संपादन करीं

  1. बारेठ, नारायण. "अब नहीं सुनाई देती सती की 'जयकार'" (हिंदी में). बीबीसी हिंदी. Retrieved 15 सितंबर 2015.
  2. "क्या अब भी ज़िंदा है सती प्रथा: पति की चिता में मिला पत्नी का शव - See more at: http://www.jansatta.com/national/sati-pratha-is-still-alive-on-the-funeral-dead-body-of-husband-people-found-his-wife-body-too/23215/#sthash.CoPC6T9r.dpuf". जनसत्ता. 1 अप्रैल 2015. Retrieved 15 सितंबर 2015. {{cite news}}: External link in |title= (help)

बाहरी कड़ी संपादन करीं