अखाड़ा अइसन जगह हवे जहाँ कुश्ती लड़ल जाला। एकरे अलावा ई कुश्ती लड़े के इस्कूल के अरथ में इस्तेमाल होला, मने कि अइसन जगह जहाँ पहलवान लोग रह के कुश्ती सीखे। एही क्रम में, बिस्तार वाला अरथ में, ई कुश्ती आ लड़ाई के कला सीखे सिखावे वाला लोग के कौनों एगो दल बिसेस के भी कहल जाला जे लोग कौनों अखाड़ा से जुड़ल होखे आ उहाँ सीखत-सिखावत होखे। एगो दूसर बिस्तारित अरथ में ई साधू-संत लोग के समूह खाती भी इस्तेमाल होला जे लोग जुद्ध के कला भी सीखे ला; जहाँ गुरू-शिष्य परंपरा में, एगो समूह के रूप में रह के बिबिध बिद्या सीखे-सिखावे के काम होला।[1]

कुश्ती के ट्रेनिंग। कसरत करत एगो पहलवान।
कुंभ मेला में शाही नहान खातिर पीपा पुल पर से गुजर रहल एगो अखाड़ा (दल)।

हिंदू धर्म के दसनामी संप्रदाय में अखाड़ा के अरथ साधू-संत लोग के अलग-अलग समुदाय से हवे। उदाहरण खाती, कुंभ मेला में ई अलग-अलग दल परंपरा अनुसार शोभा यात्रा के रूप में मेला में शामिल होखे लें (पेशवाई), नहान करे जालें (जेकरा शाही स्नान कहल जाला) आ फिर मेला के समापन पर मेला छेत्र से बिदा होखे लें। एह में मुख्य रूप से नागा साधू लोग होलें; हालाँकि पहिले एह अखाड़ा सभ के गिनती दस गो रहल,[2] एह अखाड़ा में पहिले औरत लोग के स्थान ना रहल ना देवी के पूजा के कौनों बिधान रहल,[3] 2013 के कुंभ में औरत साधू लोग के "परी अखाड़ा" आ 2019 के अर्धकुंभ में किन्नर (हिजड़ा) लोगन के "किन्नर अखाड़ा" सामिल भइल सभसे नाया अखाड़ा बाने आ अब एह अखाड़ा सभ के कुल गिनती पंद्रह गो तक पहुँच चुकल बा।[4]

  1. राजेंद्र त्रिपाठी. प्रयागराज कुंभ कथा. प्रभात प्रकाशन. pp. 49–. ISBN 978-81-7721-382-9.
  2. पंकज विशेष (1 जनवरी 2013). प्रयाग महाकुम्भ-2013. प्रभात प्रकाशन. pp. 24–. ISBN 978-93-5048-308-4.
  3. सिद्धार्थ शंकर गौतम. सनातन संस्कृति का महापर्व सिंहस्थ. pp. 56–. ISBN 978-93-5186-829-3.
  4. चोपड़ा, धनंजय (13 जनवरी 2019). "मुग़लकाल के गज़ट में कुंभ मेले का पहला विवरण". बीबीसी हिंदी डॉट कॉम (हिंदी में). Retrieved 18 जनवरी 2019.