अथर्ववेद
अथर्ववेद, सभसे पुरान ग्रंथन के रूप परसिद्ध आ हिंदू धर्म में पवित्र मानल जाए वाला चारि गो वेद में से एगो वेद ह। एकरा के सभसे नया (चउथा) बेद मानल जाला, वेदत्रयी (ऋक यजु साम) में एकरा के ना शामिल कइल जाला आ ई ज्यादातर, ई लौकिक चीज[1] सभ के बारे में ज्ञान के भंडार के रूप में बा; आचार बेहवार के तरीका के संकलन हवे[2][3][4] जबकि पहिला तीन गो वेद के बिसय मुख्य रूप से देव स्तुती आ यग्य हवें। वैदिक साहित्य में अथर्ववेद के शामिल बाद में कइल गइल आ कई बिद्वान लोग एकरा के अनार्य परभाव भी स्वीकार करे ला।[5] एह संदर्भ में आर्य कौनों जाति भा प्रजाति (रेस) के अरथ में ना बलुक आर्यभाषा बोले वाला लोग के अरथ में इस्तेमाल होला। कुछ बिद्वान लोग एकरा के क्षत्रिय राजा लोग के अनुरोध चाहे प्रेरणा पर लौकिक कामकाज खाती लिखल गइल ग्रंथ भी माने ला।[6]
इहो देखल जाय
संपादन करीं- पृथिवी सूक्त - अथर्ववेद के 12 वाँ कांड के पहिला सूक्त।
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ राधा कुमुद मुखर्जी (1 जनवरी 2009). प्राचीन भारत. राजकमल प्रकाशन प्रा. लि. pp. 34–. ISBN 978-81-7178-082-2.
- ↑ Laurie Patton (2004), Veda and Upanishad, in The Hindu World (Editors: Sushil Mittal and Gene Thursby), Routledge, ISBN 0-415215277, page 38
- ↑ Carl Olson (2007), The Many Colors of Hinduism, Rutgers University Press, ISBN 978-0813540689, pages 13-14
- ↑ Laurie Patton (1994), Authority, Anxiety, and Canon: Essays in Vedic Interpretation, State University of New York Press, ISBN 978-0791419380, page 57
- ↑ प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास. आत्माराम & संस. pp. 278–. GGKEY:2HPL5X69NDA.
- ↑ हीरालाल जैन (2006). जैन शिलालेख संग्रह. भारतीय ज्ञानपीठ. pp. 105–. ISBN 978-81-263-1112-5.
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