आदि शंकर
आदि शंकर भा आदि शंकराचार्य आठवीं-सदी के भारतीय दार्शनिक आ धर्मशास्त्री रहलें। हिंदू दर्शन के अद्वैत वेदांत शाखा के समुचित रूप से संगठित आ बेवस्थित रूप दिहलें आ वर्तमान हिंदू धर्म के बिबिध बिचार-धारा सभ के अस्थापित कइलें।
आदि शंकर | |
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जनम | शंकर 788 CE[1] कालादि वर्तमान कोच्चि, केरल, भारत |
निधन | 820 CE[1] (उमिर 32) केदारनाथ वर्तमान उत्तराखंड, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पदवी/उपाधि/सम्मान | जगद्गुरु |
अस्थापक | दशनामी संप्रदाय अद्वैत वेदांत |
गुरु | गोविंद भगवत्पाद |
दर्शन | अद्वैत वेदांत |
जानल जाला | अद्वैत वेदांत के परतिष्ठा खाती |
कांची कामकोटि पीठ | |
इनसे पहिले | बनवलें |
इनके बाद | सुरेश्वराचार्य |
आदि शंकराचार्य के संस्कृत में लिखल रचना सभ में आत्मन आ निर्गुण ब्रह्म के होखे के बात कहल गइल बा। अपना एह मत के अस्थापित करे खातिर शंकराचार्य वैदिक परंपरा के कई ग्रंथ सभ (ब्रह्म सूत्र, उपनिषद, आ भगवद्गीता) पर बिस्तार से टीका लिखलें। शंकर ओह समय के कर्मकांड प्रमुख मीमांसा शाखा के आलोचना कइलें आ हिंदू आ बौद्ध धर्म में साफ़ अंतर अस्थापित कइलें कि हिंदू धर्म माने ला कि आत्मन् के अस्तित्व बा जबकि बौद्ध धर्म कौनों आत्मा के अस्तित्व होखे के नकार देला।
शंकराचार्य पूरा भारत के भ्रमण कइलें आ बिद्वानन से शास्त्रार्थ कइलें अउरी आपन मत के परतिष्ठा कइलेन। इनके द्वारा भारतीय उपमहादीप में चार गो मठ के अस्थापना कइल गइल।
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ 1.0 1.1 Sharma 1962, p. vi.
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