इत् संज्ञा
संस्कृत व्याकरण में इत् एगो संज्ञा हवे। संज्ञा के मतलब नाँव। उदाहरण खातिर माहेश्वर सूत्र सभ में अंतिम अक्षर सभ के नाँव इत् हवे।[नोट 1][2] इनहना के जरूरत प्रत्याहार बनावे में पड़े ला। सूत्र में दिहल कौनों अक्षर के साथे इत् जोड़ के बोलल जाय तब ओह अक्षर आ ओह इत् के बीच के सगरी अक्षर सभ के बोध होला। पाणिनि के व्याकरण में नियम सभ के सूत्र के रूप में लिखे खातिर एह छोट नाँव सभ के महत्व हवे। एह तरीका से सगरी अक्षर बेर-बेर गिनावे के बजाय प्रत्याहार रुपी छोट नाँव से ओह अक्षर सभ के बूझल जा सके ला।
पाणिनि के अष्टाध्यायी में सुरुआत में दिहल माहेश्वर सूत्र नीचे दिहल जात बाने, एह में इत् सभ के मोट अच्छर में देखावल गइल बा:
1. अ इ उ ण्
2. ऋ ऌ क्
3. ए ओ ङ्
4. ऐ औ च्
5. ह य व र ट्
6. लँ ण्
7. ञ म ङ ण न म्
8. झ भ ञ्
9. घ ढ ध ष्
10. ज ब ग ड द श्
11. ख फ छ ठ थ च ट त व्
12. क प य्
13. श ष स र्
14. ह ल्
एह तरीका से 14 गो इत् सभ - ण् क् ङ् च् ट् ण् म् ञ् ष् श् व् य् र् ल् हवें। एह 14 गो के अलावा छठवाँ सूत्र में लँ में आवे वाला अ के भी इत् मानल गइल हवे। एकर बिधान अष्टाध्यायी के उपदेशेऽजनुनासिक इत् (1। 3। 2) सूत्र से होला जबकि बाकी 14 गो के बिधान हलन्त्यम् (1। 3। 3) सूत्र से होला।[2]
इत् संबंधी सूत्र
संपादन करींअष्टाध्यायी में इत् संबंधी सूत्र पहिला पाद के तिसरा भाग के सुरुआत में दिहल गइल बाड़ें:[2]
- उपदेशेऽजनुनासिक इत् (1। 3। 2)
- हलन्त्यम् (1। 3। 3)
- न विभक्तौ तुस्माः (1। 3। 4)
- आदिर्ञिटुडवः (1। 3। 5)
- षः प्रत्ययस्य (1। 3। 6)
- चुटू (1। 3। 7)
- लशक्वतद्धिते (1। 3। 8)
- तस्य लोपः (1। 3। 9)
इहो देखल जाय
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संपादन करींसंदर्भ
संपादन करीं- ↑ स्वामी धरानन्द शास्त्री, p. 4.
- ↑ 2.0 2.1 2.2 भीमसेन शास्त्री, p. 5.
स्रोत ग्रंथ
संपादन करीं- स्वामी धरानन्द शास्त्री. लघुसिद्धान्तकौमुदी-वरदराज विरचित (हिंदी में). मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन. pp. 17–. ISBN 978-81-208-2214-6. Retrieved 11 अगस्त 2019.
- भीमसेन शास्त्री (2000). लघुसिद्धान्तकौमुदी - भैमी व्याख्या (हिंदी में) (4था ed.). दिल्ली: भैमी प्रकाशन.