प्रत्याहार संस्कृत व्याकरण में कई अक्षर सभ के एक साथ बतावे खातिर इस्तेमाल होखे वाला छोट नाँव हवें। माहेश्वर सूत्र सभ में दिहल खास तरीका से व्यवस्थित अक्षर सभ में से अलग-अलग अक्षर समूह के चिन्हित करे खाती प्रत्याहारन के इस्तेमाल होला। सूत्र में दिहल अंतिम अक्षर सभ के इत् संज्ञा होले आ कौनों अक्षर के साथ आगे आवे वाला इत् जोड़ के प्रत्याहार बनावल जा सके लें। गणना के अनुसार माहेश्वर सूत्र सभ से कुल 281 प्रत्याहार बनावल संभव बा हालाँकि, पाणिनि अपना व्याकरण (अष्टाध्यायी) में 42 प्रत्याहार सभ के इस्तेमाल कइले बाने। जबकि दू गो प्रत्याहार बाद के बिद्वान लोग के बनावल हवे। एह तरीका से संस्कृत व्याकरण में कुल 44 गो प्रत्याहार के इस्तेमाल भइल बा।[1]

अष्टाध्यायी में इनहन के बिधान नीचे दिहल सूत्र से होला:

आदिरन्त्येनसहेता (1।1।70)

लघुकौमुदी में एह सूत्र के वृत्ति बा - अन्त्येनेता सहित अदिर्मध्यगानां स्वस्य च संज्ञा स्यात् । अंतमे आवे वाला इत् के साथ सुरुआती अक्षर, अपना आ बीचा में आवे वाला सगरी अक्षर सभ के संज्ञा (नाँव) होला।

मतलब कि एह प्रत्याहार सभ के रचना माहेश्वर सूत्र के कौनों अक्षर आ इत् के जोड़ के होला आ ओह खास अक्षर आ इत् के बीचा में जेतना अक्षर आवे लें उनहन में से इत् सभ के लोप करा के बाकी बचल अक्षर सभ के ओही नाँव बूझल जाला।

उदाहरण खाती अक् प्रत्याहार लिहल जाव तब माहेश्वर सूत्र में देखल जा सके ला कि 1. अ इ उ ण्2. ऋ ऌ क् में दिहल अ इ उ ऋ ऌ के गिनल जाई आ ण् आ खुद क् के लोप हो जाई। एह तरीका से प्रत्याहार अक् = अ इ उ ऋ ऌ। मने कि पाणिनि के व्याकरण में जहाँ अक् कहल जाय ओकर मतलब कि एकरा से अ इ उ ऋ ऌ के बोध होखी। अक् एह तरीका से अ इ उ ऋ ऌ सभ के कोड नाँव हवे।

  1. भीमसेन शास्त्री (2000). लघुसिद्धान्तकौमुदी - भैमी व्याख्या (हिंदी में) (4था ed.). दिल्ली: भैमी प्रकाशन. p. 13.