उत्तर प्रदेश के नाच
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लोकनाच में उत्तर प्रदेश के मय अंचल के आपन विशिष्ट चिन्हासी बा। समृद्ध विरासत के विविधता के संईतल ई आंगिक कलारूप लोक संस्कृति के प्रमुख वाहक बङुवे।
ख़्याल नृत्य
संपादन करींख़्याल नृत्य पुत्र जन्मोत्सव पे बुंदेलखण्ड में कईल जाला। एह में रंगीन कागज आ बांस के मदद से एगो मंदिर बनावल जाला आ ओकरा बाद ओकरा के माथा पे रख के नाच कइल जाला।[1]
रास नृत्य
संपादन करींरास नृत्य ब्रज में रासलीला के दौरान किया जाता है। रासक दण्ड नृत्य भी इसी क्षेत्र का एक आकर्षक नृत्य है। [2]
झूला नृत्य
संपादन करींझूला नृत्य भी ब्रज क्षेत्र का नृत्य है, जिसका आयोजन श्रावण मास में किया जाता है। इस नृत्य को इस क्षेत्र के मंदिरों में बड़े उल्लास के साथ किया जाता है।
मयूर नृत्य
संपादन करींमयूर नृत्य भी ब्रज क्षेत्र का ही नृत्य है। इसमें नर्तक मोर के पंख से बने विशेष वस्त्र धारण करते हैं।
धोबिया नृत्य
संपादन करींधोबिया नृत्य पूर्वांचल में प्रचलित है। यह नृत्य धोबी समुदाय द्वारा किया जाता है। इसके माध्यम से धोबी एवं गदहे के मध्य आजीविका संबंधों का भावप्रवण निरूपण किया जाता है।
चरकुला नृत्य
संपादन करींचरकुला नृत्य ब्रज क्षेत्रवासियों द्वारा किया जाता है। इस घड़ा नृत्य में बैलगाड़ी अथवा रथ के पहिये पर कई घड़े रखे जाते हैं फिर उन्हें सिर पर रखकर नृत्य किया जाता है।
कठफोड़वा नृत्य
संपादन करींकठघोड़वा नृत्य पूर्वांचल में माँगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसमें एक नर्तक अन्य नर्तकों के घेरे के अंदर कृत्रिम घोड़ी पर बैठकर नृत्य करता है।
जोगिनी नृत्य
संपादन करींजोगिनी नृत्य विशेषकर रामनवमी के अवसर पर किया जाता है। इसके अंतर्गत साधु या कोई अन्य पुरुष महिला का रूप धारण करके नृत्य करते हैं।
धींवर नृत्य
संपादन करींधींवर नृत्य अनेक शुभ अवसरों पर विशेषकर कहार जाति के लोगों द्वारा आयोजित किया जाता है।
शौरा नृत्य
संपादन करींशौरा या सैरा नृत्य बुंदेलखण्ड के कृषक अपनी फसलों को काटते समय हर्ष प्रकट करने के उद्देश्य से करते हैं।
कर्मा नृत्य
संपादन करींकर्मा व शीला नृत्य सोनभद्र और मिर्जापुर के खखार आदिवासी समूह द्वारा आयोजित किया जाता है।
पासी नृत्य
संपादन करींपासी नृत्य पासी जाति के लोगों द्वारा सात अलग अलग मुद्राओं की एक गति तथा एक ही लय में युद्ध की भाँति किया जाता है।
घोड़ा नृत्य
संपादन करींघोड़ा नृत्य बुंदेलखण्ड में माँगलिक अवसरों पर बाजों की धुन पर घोड़ों द्वारा करवाया जाता है।
धुरिया नृत्य
संपादन करींधुरिया नृत्य को बुंदेलखण्ड के प्रजापति (कुम्हार) स्त्री वेश धारण करके करते हैं।
छोलिया नृत्य
संपादन करींछोलिया नृत्य राजपूत जाति के लोगों द्वारा विवाहोत्सव पर किया जाता है। इसे करते समय नर्तकों के एक हाथ में तलवार तथा दूसरे हाथ में ढाल होती है।
छपेली नृत्य
संपादन करींछपेली नृत्य एक हाथ में रुमाल तथा दूसरे हाथ में दर्पण लेकर किया जाता है। इस के माध्यम से नर्तक आध्यात्मिक समुन्नति की कामना करते हैं।
नटवरी नृत्य
संपादन करींनटवरी नृत्य पूर्वांचल क्षेत्र के अहीरों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य गीत व नक्कारे के सुरों पर किया जाता है।
देवी नृत्य
संपादन करींदेवी नृत्य अधिकांशतः बुंदेलखण्ड में ही प्रचलित है। इस लोक नृत्य में एक नर्तक देवी का स्वरूप धारण कर अन्य नर्तकों के सामने खड़ा रहता है तथा उसके सम्मुख शेष सभी नर्तक नृत्य करते हैं।
राई नृत्य
संपादन करींराई नृत्य बुंदेलखण्ड की महिलाओं द्वारा किया जाता है। यहाँ की महिलाएँ इस नृत्य को विशेषतः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर करती हैं। इसको मयूर की भाँति किया जाता है, इसीलिेए यह मयूर नृत्य भी कहलाता है।
दीप नृत्य
संपादन करींबुंदेलखण्ड के अहीरों द्वारा अनेकानेक दीपकों को प्रज्ज्वलित कर किसी घड़े, कलश अथवा थाल में रखकर प्रज्ज्वलित दीपकों को सिर पर रखकर दीप नृत्य किया जाता है।
पाई डण्डा नृत्य
संपादन करींपाई डण्डा नृत्य गुजरात के डाण्डिया नृत्य के समान है जो कि बुंदेलखण्ड के अहीरों द्वारा किया जाता है।
कार्तिक नृत्य
संपादन करींकार्तिक नृत्य बुंदेलखण्ड क्षेत्र में कार्तिक माह में नर्तकों द्वारा श्रीकृष्ण तथा गोपियों का रूप धरकर किया जाता है।
कलाबाज नृत्य
संपादन करींकलाबाज नृत्य अवध क्षेत्र के नर्तकों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में नर्तक मोरबाजा लेकर कच्ची घोड़ी पर बैठ कर नृत्य करते हैं।
मोरपंख व दीवारी नृत्य
संपादन करींब्रज की लट्ठमार होली की तरह बुंदेलखण्ड विशेषकर चित्रकूट में दीपावली के दिन ढोल-नगाड़े की तान पर आकर्षक वेशभूषा के साथ मोरपंखधारी लठैत एक दूसरे पर ताबड़तोड़ वार करते हुए मोरपंख व दीवारी नृ्त्य व खेल का प्रदर्शन करते हैं।
ठडिया नृत्य
संपादन करींसोनभद्र व पड़ोसी जिलों में संतान की कामना पूरी होने पर ठडिया नृ्त्य का आयोजन सरस्वती के चरणों समर्पित होकर किया किया जाता है।
चौलर नृत्य
संपादन करींमिर्जापुर और सोनभद्र आदि जिलों में चौलर नृत्य अच्छी वर्षा तथा अच्छी फसल की कामना पूर्ति हेतु किया जाता है।
ढेढिया नृत्य
संपादन करींढेढिया नृत्य का प्रचलन द्वाबा क्षेत्र में है। राम के लंका विजय के पश्चात वापस आने पर स्वागत में किया जाता है। इसमें सिरपर छिद्रयुक्त मिट्टी के बर्तन में दीपक रखकर किया जाता है।
ढरकहरी नृत्य
संपादन करींसोनभद्र की जनजातियों द्वारा ढरकहरी नृत्य का आयोजन किया जाता है।
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ "आर्काइव कॉपी के बा". Archived from the original on 2013-07-04. Retrieved 2014-06-25.
- ↑ "आर्काइव कॉपी के बा". Archived from the original on 2012-06-15. Retrieved 2014-06-25.
बाहरी कड़ियाँ
संपादन करीं- भारत की विरासत Archived 2013-07-04 at the Wayback Machine
- भारत के लोकनृत्य Archived 2012-06-15 at the Wayback Machine
- "उत्तरप्रदेश के सभी लोक नृत्य की सूचि" Archived 2013-04-02 at the Wayback Machine