बारहखड़ी

व्यंजन सभ में स्वर के मात्रा मिला के क्रम से लिखल सारणी
(ककहरा से अनुप्रेषित)

कई भारतीय भाषा सभ के लिखाई के सिस्टमन में वर्णमाला के व्यंजन वर्ण सभ के साथे स्वर वर्ण सभ के मिला के शुरू से अंत ले सगरी व्यंजन सभ के क्रम से लिखल जाला आ एह किसिम के पाठ चाहे सारिणी के बारहखड़ी के रूप में जानल जाला। उदाहरण खातिर, परंपरा अनुसार हिंदी में बारह गो स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः) मानल जालें आ इनहन के मात्रा कौनों व्यंजन में मिला के लिखले से ओह व्यंजन के बारहखड़ी बन जाला (जइसे अगर एह स्वरन के मात्रा क् वर्ण में मिलावल जाय तब क, का, कि, की, कु, कू, के, कै, को, कौ, कं, कः)।[1] वर्ण (अल्फाबेट) सभ के एह तरीका से मिला के लिखला के बाद बनल रूप सभ के कुछ लोग अक्षर[1] (सिलेबल के अरथ में) कहे ला — हालाँकि, सिलेबल तीन-चार चाहे अउरियो बेसी वर्ण (अल्फाबेट) भा अक्षर (लेटर) सभ से मिल के बनल भी हो सके लें।

ब्लैकबोर्ड प लिखल बारह खड़ी
मराठी भाषा के बारहखड़ी के ब्लैकबोर्ड प लिखल अंश

कंप्यूटर द्वारा लिखाई के पहिचान में, एगो एस्टीमेट के मोताबिक देवनागरी में अइसन बारहखड़ी के वेवस्था में 469 कैरेक्टर आ 5274 चीन्हा होखे के बात बतावल गइल बा।[2]

परंपरागत बारहखड़ी के एह बेवस्था में में कुछ अं (अनुस्वार) आ अः (विसर्ग) के स्वर ना माने ला — संस्कृत ध्वनिविज्ञान अनुसार; जबकि ऋ स्वर के शामिल करे ला। कुछ लोग ऋ के साथे साथ अं, अः अउरी अँ (अनुनासिक) के भी शामिल करे के वकालत करे ला।[1] अं, अः आ अँ के बारहखड़ी में शामिल ना करे के पाछे ई तर्क दिहल जाला कि ई कौनों व्यंजन में स्वर वर्ण मिला के लिखला से बनल सिलेबल (तथाकथित अक्षर) के साथे अलगा से लाग सके लें[3] - जइसे कि: कं, कां, किं, कीं, कुं, कूं, कें, कैं, कों, कौं।

काका कालेकर आ सावरकर नियन लोगन द्वारा स्वर सभ के स्वतंत्र अलग-अलग लिखाई के चीन्हा (वर्ण) सभ के जटिलता के ख़तम करे के कोसिस में अ के बारहखड़ी चलावे के कोसिस कइल गइल रहे - अ्, अ, आ, अि, अ‍ी, अु, अू, अ‍ृ, अॄ, अ‍े, अ‍ै, ओ, औ, अं, अः के रूप में।

बारहखड़ी के बाराखड़ी के अलावा ककहरा, अखरावट, चौंतीसाबत्तीसा नाम भी मिले ला।[4] मराठी भाषा के बाराखड़ी के रचना के श्रेय शोगावकर गजानन महाराज के दिहल जाला।[5]

परंपरागत बारहखड़ी

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नीचे देवनागरी लिखाई के बारहखड़ी दिहल गइल बा जे भोजपुरी में आ अउरी देवनागरी स्तेमाल करे वाली भाषा सभ में होखे ला:

का कि की कु कू के कै को कौ कं कः
खा खि खी खु खू खे खै खो खौ खं खः
गा गि गी गु गू गे गै गो गौ गं गः
घा घि घी घु घू घे घै घो घौ घं घः
चा चि ची चु चू चे चै चो चौ चं चः
छा छि छी छु छू छे छै छो छौ छं छः
जा जि जी जु जू जे जै जो जौ जं जः
झा झि झी झु झू झे झै झो झौ झं झः
टा टि टी टु टू टे टै टो टौ टं टः
ठा ठि ठी ठु ठू ठे ठै ठो ठौ ठं ठः
डा डि डी डु डू डे डै डो डौ डं डः
ढा ढि ढी ढु ढू ढे ढै ढो ढौ ढं ढः
णा णि णी णु णू णे णै णो णौ णं णः
ता ति ती तु तू ते तै तो तौ तं तः
था थि थी थु थू थे थै थो थौ थं थः
दा दि दी दु दू दे दै दो दौ दं दः
धा धि धी धु धू धे धै धो धौ धं धः
ना नि नी नु नू ने नै नो नौ नं नः
पा पि पी पु पू पे पै पो पौ पं पः
फा फि फी फु फू फे फै फो फौ फं फः
बा बि बी बु बू बे बै बो बौ बं बः
भा भि भी भु भू भे भै भो भौ भं भः
मा मि मी मु मू मे मै मो मौ मं मः
या यि यी यु यू ये यै यो यौ यं यः
रा रि री रु रू रे रै रो रौ रं रः
ला लि ली लु लू ले लै लो लौ लं लः
वा वि वी वु वू वे वै वो वौ वं वः
शा शि शी शु शू शे शै शो शौ शं शः
षा षि षी षु षू षे षै षो षौ षं षः
सा सि सी सु सू से सै सो सौ सं सः
हा हि ही हु हू हे है हो हौ हं हः

असमिया भाषा में क के बारहखड़ी होखी: ক, কা, কি, কী, কু, কূ, কৃ, কে, কো, কৌ ।

'अ' के बारहखड़ी

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देवनागरी लिपि में सुधार खातिर महादेव गोविंद रानाडे के अध्यक्षता में एगो समीति के घटन भइल रहल। एकरा बाद काका कालेकर 'अ' के बारहखड़ी के रूप में लिखे के सलाह दिहले रहलें। एकर मकसद रहल अ्, अ, आ, अि, अ‍ी, अु, अू, अ‍ृ, अॄ, अ‍े, अ‍ै, ओ, औ, अं, अः के रूप में मात्रा सभ के लिखे के। एकर ई लाभ बतावल गइल रहल कि एकरा चलते स्वर सभ के चीन्हा भा मात्रा सभ के घटा दिहल जाई आ कम चीन्हा होखे के चलते लिखाई में आसानी आई।

एकरा के 'स्वरखड़ी' नाँव दिहल गइल रहे।[6] सावरकर के किताबिन में एकर इस्तेमाल भइल रहल। एकरे अलावा महात्मा गाँधी एकरा के स्वीकृति दिहलें आ उनुके अखबार हरिजन में एकर इस्तेमाल होखे के बात कहल जाला।[7]

हालाँकि, बाद में आचार्य नरेंद्र देव के अध्यक्षता में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित समीति एकरा के रिजेक्ट क दिहलस।[8]

  1. 1.0 1.1 1.2 द्विवेदी, रामराजपाल (2008). हिंदी व्याकरण: पारिभाषिक शब्दकोश (हिंदी में). परमेश्वरी प्रकाशन. p. 206. ISBN 978-81-88121-91-5. Retrieved 19 मई 2023.
  2. RAY, AJOY KUMAR; ACHARYA, TINKU (1 जनवरी 2004). INFORMATION TECHNOLOGY: PRINCIPLES AND APPLICATIONS (अंग्रेजी में). PHI Learning Pvt. Ltd. ISBN 978-81-203-2184-7.
  3. Sharma, Raju (1 सितंबर 2004). Samay Ke Saranarthi (हिंदी में). Rajkamal Prakashan. ISBN 978-81-7119-801-6.
  4. Parishad, Bihāra Rāshṭrabhāshā (1981). Parishad-patrikā - Bihāra Rāshtrabhāshā Parishad (हिंदी में). Bihāra Rāshtrabhāshā Parishad. p. 160. Retrieved 19 मई 2023.
  5. Shri Gulabravmaharaj: Sadhana aur Sahitya (हिंदी में). Vani Prakashan. p. 373. ISBN 978-81-7055-357-1.
  6. Varshney, L.S. (2009). हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिंदी में). Lokbharati Prakashan. p. 37. ISBN 978-81-8031-479-7. Retrieved 2 May 2024.
  7. Sharma, R. Bhashavigyan, Hindi Bhasha Aur Lipi (Tagalog में). Rajkamal Prakashan Pvt., Limited. p. 430. ISBN 978-81-8031-176-5. Retrieved 2 May 2024.
  8. Verma, O.N. (2020). Samanya Hindi (Indonesian में). Arihant Publication India Limited. p. 8. ISBN 978-93-252-9303-8. Retrieved 2 May 2024.