गोरख पाण्डेय
(गोरख पण्डे से अनुप्रेषित)
गोरख पाण्डेय (1945 – 29 जनवरी 1989[1]) भोजपुरी अउरी हिंदी भाषा कऽ एगो कवी रहलें। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिला के एगो गाँव में जनमल पांडे आपन पढ़ाई बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से कइलें[2] आ बैचारिक रूप से जनसंघर्ष के कवी मानल जालें। हिंदी के आधुनिक कबिता के कुछ बिसिस्ट कवी लोग में इनकरो नाँव लिहल जाला।[3]
गोरख पाण्डेय | |
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जनम | पंडित के मुड़ेरा, देवरिया जिला, उत्तर प्रदेश |
निधन | जेएनयू, दिल्ली |
भाषा | भोजपुरी, हिंदी |
राष्ट्रियता | भारतीय |
साहित्यिक आंदोलन | नक्सल आंदोलन, कम्युनिस्ट |
बाद में पांडे बनारस से जेएनयू, दिल्ली चल गइलें आ उहाँ रिसर्च एसोसियेट (आरए) रहलें। एह दौरान दिमागी बेमारी सिजोफ्रीनिया के चलते एक दिन जेएनयू के हास्टल के कमरा में आत्महत्या कइ लिहलें। इनके तीन गो संग्रह इनका मौत के बाद छ्पलें।[4]
रचना संसार
संपादन करीं- कबिता
- भोजपुरी के नौ गीत
- जागते रहो सोने वालों (1983)[5]
- स्वर्ग से बिदाई (1989)
- समय का पहिया (1990) आ
- लोहा गरम हो गया है (2004)
- बैचारिक गद्य
- धर्म की मार्क्सवादी व्याख्या
संदर्भ
संपादन करीं- ↑ "गोरख पांडेय". hindisamay.com. हिंदी समय, महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय. Retrieved 28 नवंबर 2018.
- ↑ मिश्र, रत्नेश. "कवि गोरख पांडेय ने बीएचयू के बारे में ये कहा था..." amarujala.com. अमर उजाला. Retrieved 28 नवंबर 2018.
- ↑ Adhunik Sahitya Chintan Aur Kuch Vishitha Sahityakar. वाणी प्रकाशन. pp. 53–.
- ↑ "गोरख पांडे". lokrang.in. लोकरंग. Archived from the original on 2016-11-02. Retrieved 28 नवंबर 2018.
- ↑ गोरख पाण्डेय (1983). जागते रहो सोने वालो. Rādhākr̥shṇa.
बाहरी कड़ी
संपादन करीं- जब जनेऊ तोड़ कर दिल्ली से घर आए थे गोरख पांडे (29 जनवरी 2018), द्वारा: प्रियंका दुबे. बीबीसी हिंदी खातिर. (अंग्रेजी में)
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