दशरूपकम् संस्कृत भाषा में लिखल नाट्यशास्त्र के ग्रंथ हवे। एकर रचनाकार धनञ्जय हवें आ ई लगभग दसवीं सदी के रचना हवे। एह ग्रंथ में नाट्य के प्रकार आ लक्षण बतावल गइल बा। एह रचना के आधार भरतमुनि के नाट्यशास्त्र हवे। दशरूपक में कुल चार गो अध्याय बाड़ें जिनहन के आलोक नाँव दिहल गइल हवे। एह ग्रंथ में मुख्यतः अनुष्टुप छंद में लक्षण प्रकार वगैरह बतावल गइल बाड़ें आ एह पर धनिक द्वारा टीका लिखल गइल बा जेकरा के अवलोक नाँव से जानल जाला।

धनंजय 10वीं सदी के बिद्वान रहलें। इनके पिता के नाँव विष्णु रहल। ई तत्कालीन राजा मुंजराज (974-995 ई.) के दरबार में सभासद रहलें।[1]

एही ग्रंथ पर अवलोक के नाँव से वृत्ति लिखे वाला रचनाकार धनिक खुद एही धनंजय के छोट भाई रहलें।

भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में बीसवाँ अध्याय के बिसय दशरूपक-विकल्पन हवे। एही जा से धनंजय अपना किताब खातिर नाँव लिहले बाड़ें आ एह किताब के नाँव दशरूपक रखले बाड़ें।

  1. द्विवेदी, हजारी प्रसाद. नाट्यशास्त्र की भारतीय परंपरा और दशरूपक. नई दिल्ली: राजकम प्रकाशन. p. 33.

बाहरी कड़ी

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