सोरठा एगो अर्धसम मात्रा वाला छंद हवे। ई दोहा के ठीक उल्टा होखे ला एह में दोहे नियर चार गो चरण होखे लें बाकी पहिला आ तिसरा (बिसम) चरण में 11-11 मात्रा होखे लीं आ दुसरा आ चउथा (सम) चरण में 13-13 मात्रा होखे लीं। पहिला आ तीसरा चरण के अंत में एगो गुरु आ एक ठो लघु (ऽ।) होखल जरूरी होला, सम चरण में अंत में वाचिक भार (।ऽ) दिहल जाला (अपवाद के रूप में जगण (।ऽऽ) आवे ला); सम चरण (दुसरा आ चौथा) के सुरुआत में जगण (।ऽ।) के मनाहीं हवे आ बिसम चरण एकही तुक पर खतम होखे लें जबकि सम चरण बिना तुक के होखे लें।[1]

सोरठा के कुछ उदाहरण नीचे दिहल जात बाड़ें:

खर कुआर के घाम, तेपर उमस पवन बिना।
के करि पाई काम, कृषक सरिस मैदान में॥ - धरीक्षण मिसिर, अलंकार दर्पण में।

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥ - तुलसीदास, रामचरितमानस में।

सोरठा से मिलत-जुलत एगो अउरी छंद होला जेकरा रोला कहल जाला। एह में अंतर बस ई होखे ला कि एकरे सम चरण में तुक होखे ला। दोहा आ रोला के मिला के कुंडलिया छंद बने ला।

इहो देखल जाय संपादन करीं

संदर्भ संपादन करीं

  1. Chaudhary, Dr Sanjeev Kumar. Chhand Vinyash (हिंदी में). Kavya Publications. ISBN 978-81-950111-2-4.