बुझनी बूझे बुझावे के चलन दक्खिन एशिया, माने की भारतीय उपमहादीप आ आसपास के इलाका सभ, में बहुत पुराना जमाना से बा। इहाँ साहित्यिक आ लोक-साहित्यिक दुनों परंपरा में बुझनी के महत्व के अस्थान रहल बा आ इहो बहुत गौर करे लायक बात बा कि एही इलाका में दुनिया के सभसे पुरान बुझनी जइसन रचना के उदाहरण मिले ला जे संस्कृत साहित्य के ऋग्वेद में बाटे। बाद के संस्कृत साहित्य में बुझनी-बुझौवल के बहुत उदाहरण मिले ले जे अपना में अद्भुत बाड़ें। बिचला काल में अमीर खुसरो नियर कबी के रचल बहुत सारा बुझउवल बाड़ी स जिनहन के आजू ले महत्त्व दिहल जाला।

शब्दाउत्पत्ती

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संस्कृत में बुझनी के खाती प्रहेलिका शब्द मिले ला जेकरा मूल उत्पत्ती के बारे में मालुम ना बा। हिंदी में इस्तेमाल होखे वाला शब्द पहेली एही संस्कृत वाले शब्द के बदलल रूप हवे। उर्दू-हिंदी के पुरान रूप, जेह में अमीर खुसरो आपन रचना कइलेन, एगो खास किसिम के बुझनी मिले लीं जिनहन के मुकरी कहल जाला। ई मुकर जाए, मने की अपना बात से पलट जाए, से बनल हवे।

भोजपुरी के शब्द बुझनी चाहे बुझौनी बूझे के क्रिया से बनल हवे। बुझनी बूझे-बुझावे के खेल के बुझउवल चाहे बुझनीबुझउवल कहल जाला। मैथिलि भाषा में एही के बदलल रूप बुझानी हवे।

तमिल भाषा में बुझनी के विदुकट्टाई कहल जाला जे साहित्य आ लोक दुनों में चलन में बाड़ीं।